प्रारंभिक परीक्षा- समसामयिकी, मुदिमानिक्यम गांव, बादामी के चालुक्य, बादामी के चालुक्यों की मंदिर निर्माण कला मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन, पेपर-1, वास्तुकला |
चर्चा में क्यों-
हाल ही में मुदिमानिक्यम गांव में 1,300- 1,500 वर्ष पुराने दो बादामी चालुक्य मंदिर और 1,200 साल पुराने लेबल शिलालेख खोजे गए।
मुख्य बिंदु-
- मुदिमानिक्यम गांव तेलंगाना के नलगोंडा जिले में कृष्णा नदी के किनारे स्थित है।
- दोनों मंदिर 543 ईस्वी और 750 ईस्वी के बीच के हैं।
- लेबल शिलालेख 8वीं या 9वीं शताब्दी ईस्वी के हैं।
- इस दौरान इस क्षेत्र में बादामी चालुक्यों का शासन रहा है।
मंदिर के बारे में-
- ये मंदिर असाधारण हैं, क्योंकि मंदिर निर्माण की रेखा नागर प्रारूप के कदंब नागर शैली में हैं।
- यह तेलंगाना में स्पष्ट वास्तुकला का एकमात्र उदाहरण है।
- ये मंदिर तेलंगाना में बादामी के चालुक्य काल के साक्ष्य के रूप में काम कर सकते हैं।
लेबल शिलालेख के बारे में-
- लेबल शिलालेख को 'गंडालोरंरू' के रूप में पढ़ा गया है।
- 'गंडालोरंरू' का अर्थ स्पष्ट नहीं है।
- कन्नड़ में 'गंडा' का अर्थ 'नायक' भी होता है, इसलिए यह संभवतः एक ‘वीर’ उपाधि हो सकती है।
- लेबल शिलालेख गांव में पांच मंदिरों के समूह के एक स्तंभ पर लिखा गया है।
- पांच मंदिरों के समूह को ‘पंचकुट’ के नाम से जाना जाता है।
- ये भी बादामी चालुक्य काल के हैं।
बादामी के चालुक्यों की मंदिर निर्माण कला-
- यह नागर और द्रविड़ शैली की विशेषताओं से युक्त बेसर शैली है।
- इनके कला की शुरुआत ऐहोल से हुई।
- इस कला का चरमोत्कर्ष बादामी और पट्टदकल में देखा जा सकता है।
- इस काल में चट्टानों को काटकर संयुक्त कक्ष और विशेष ढाँचे वाले मंदिरों का निर्माण किया जाता था।
- बादामी के गुफा मंदिरों में खंभों वाला बरामदा, मेहराब युक्त कक्ष, छोटा गर्भगृह और उनकी गहराई प्रमुख है।
- बादामी में मिली चार गुफाएँ शिव, विष्णु, विष्णु अवतार व जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ से संबंधित हैं।
बादामी के चालुक्य-
- बादामी के चालुक्य वंश का वास्तविक संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था।
- इस समय ब्राह्मण धर्म उन्नति पर था।
- चालुक्य नरेश विष्णु अथवा शिव के उपासक थे।
- ये धार्मिक रूप से सहिष्णु थे तथा जैनियों एवं बौद्धों का आदर करते थे।
- इन्होंने इन देवताओं की पूजा के लिये पट्टकल, बादामी आदि स्थानों पर भव्य मंदिर निर्मित किए।
- मंदिर सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के विशिष्ट केंद्र थे।
- ऐहोले, मेगृति और बादामी के मंदिरों से दक्षिण के मंदिरों का इतिहास प्रारंभ होता है।
- पट्टकल के मंदिरों में इनके विकास का दूसरा चरण परिलक्षित होता है।
- इन मंदिरों में मूर्तियों की संख्या में वृद्धि के साथ ही इनकी शैली का भी विकास होता है।
- ठोस चट्टानों को काटकर मंदिरों का निर्माण करने की कला में अद्भुत कुशलता दिखलाई पड़ती है।
- श्रीगुंडन् अनिवारिताचारि ने लोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
बादामी चालुक्य शासक
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शासनकाल (ई.)
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पुलकेशिन प्रथम
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543–566
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कीर्तिवर्मन प्रथम
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566–597
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मंगलेश
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597–609
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पुलकेशिन द्वितीय
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609–642
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विक्रमादित्य प्रथम
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655–680
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विनयादित्य
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680–696
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विजयादित्य
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696–733
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विक्रमादित्य द्वितीय
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733–746
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कीर्तिवर्मन द्वितीय
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746–753
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- बादामी के चालुक्यों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- बादामी के चालुक्यों का वास्तविक संस्थापक मंगलेश था।
- बादामी के चालुक्य नरेश जैन धर्म के उपासक थे।
नीचे दिए गए कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिए।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर- (d)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- बादामी के चालुक्यों की मंदिर निर्माण शैली को स्पष्ट कीजिए।
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