(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित तथा/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
संदर्भ
61वां म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (Munich Security Conference) 14 से 16 फरवरी, 2025 तक म्यूनिख (जर्मनी) में आयोजित किया गया। भारत की ओर से विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इस सम्मेलन में भाग लिया।
म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के बारे में
- परिचय : यह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नीति एवं महत्वपूर्ण सुरक्षा चिंताओं पर चर्चा करने के लिए दुनिया का अग्रणी कूटनीतिक मंच है।
- यह आधिकारिक एवं गैर-आधिकारिक दोनों प्रकार की राजनयिक पहलों व विचारों के लिए एक स्थान प्रदान करता है।
- आदर्श वाक्य : संवाद के माध्यम से शांति की स्थापना
- स्थापना : वर्ष 1963 में
- उद्देश्य : अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समुदाय के भीतर निरंतर, सुव्यवस्थित एवं अनौपचारिक संवाद को बनाए रखते हुए संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान में योगदान देना।
म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के प्रमुख निष्कर्ष
एक युग का अंत
- नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) की स्थापना वर्ष 1949 में की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य पूर्व सोवियत संघ के यूरोपीय विस्तार को रोकना था।
- हालाँकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नाटो के रूप में स्थापित सुरक्षा व्यवस्था वर्तमान में यूरोप के लिए निष्प्रभावी हो गई है क्योंकि अमेरिका नाटो में सक्रिय तो अवश्य है किंतु यूरोप अब अमेरिका पर अपनी सुरक्षा के लिए निर्भर नहीं रह सकता है।
यूक्रेन की नीति में परिवर्तन
- यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए अमेरिका एवं रूस समझौता करने जा रहे हैं, चाहे यूरोप व यूक्रेन से इस समझौते को समर्थन प्रदान किया जाए या नहीं।
- रूस एवं अमेरिका के मध्य इस मुद्दे पर सऊदी अरब में वार्ता की संभावना है।
- हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति ने बार-बार कहा है कि वे अपने देश की सहमति के बिना किए गए किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे।
यूरोप द्वारा रक्षा व्यय में वृद्धि
- यदि यूरोप को नव-उग्र रूस को रोकने की कोई उम्मीद है तो उसे अपने रक्षा खर्च में तेजी से वृद्धि करनी होगी।
- वर्तमान में नाटो द्वारा निर्धारित व्यय सकल घरेलू उत्पाद के न्यूनतम 2% से बढ़कर 3% होने की संभावना है।
- हालाँकि, यूरोप ने यूक्रेन को सहायता देने के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है।
- कुल मिलाकर, यूरोप ने वित्तीय एवं मानवीय सहायता के लिए €70 बिलियन और सैन्य सहायता के लिए €62 बिलियन आवंटित किए हैं।
- जबकि अमेरिका ने सैन्य सहायता के लिए €64 बिलियन और वित्तीय एवं मानवीय आवंटन के लिए €50 बिलियन की सहायता प्रदान की है।
अमेरिका के दृष्टिकोण में बदलाव
- अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के अनुसार, यूरोप के लिए सबसे बड़ा ख़तरा रूस एवं चीन या कोई अन्य बाह्य ताकत नहीं है बल्कि अपने कुछ सबसे बुनियादी मूल्यों से पीछे हटना है जो अमेरिका के साथ साझा किए जाते हैं।
- उन्होंने यूरोपीय देशों पर अपने मूल्यों से पीछे हटने तथा प्रवासन एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मतदाताओं की चिंताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है।
- यूरोप की नीतियों की आलोचना को इस सम्मेलन में कई प्रतिनिधियों ने अनुचित एवं अपमानजनक बताया है।
आपसी फूट एवं मतभेद
- जब यूरोप म्यूनिख सम्मेलन में भू-राजनीतिक चर्चाओं में व्यस्त था, तब डोनाल्ड ट्रम्प ने मार्च 2025 से सभी इस्पात एवं एल्यूमीनियम आयातों पर 25% टैरिफ लगाने की योजना की घोषणा की।
- यह इस बात का प्रमाण है कि व्यापार से लेकर रूस के साथ व्यवहार तक विभिन्न मुद्दों पर अमेरिका एवं यूरोप के रुख के बीच अब स्पष्ट मतभेद उभर रहे हैं।