(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएं)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)
संदर्भ
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में कुछ ‘जातीय सशस्त्र संगठन’ भी शामिल हो गए हैं। जुंटा शासन के विरुद्ध उनका विरोध बढ़ता जा रहा है। साथ ही, सेना भी इनके विरुद्ध हवाई हमलों से पीछे नहीं हट रही है, जिससे देश में राजनीतिक के साथ-साथ क्षेत्रीय अशांति पैदा हो गई है।
कई राज्यों में तनाव
- म्यांमार के दक्षिण-पूर्वी करेन (वर्तमान में कायिन) राज्य में कुछ जवाबी कार्रवाईयों में म्यांमार की सेना ने थाईलैंड की सीमा पर स्थित ‘करेन नेशनल यूनियन’ के प्रभाव वाले गांवों पर हमला कर दिया है, जिससे लगभग 24000 लोग विस्थापित हुए हैं।
- करेन म्यांमार के कई जातीय अल्पसंख्यक समूहों में से एक हैं, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में बिखरे हुए बसे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, करेन नेशनल यूनियन ने साल्वीन नदी के पास एक सैन्य चौकी पर हमला किया था। यह नदी थाईलैंड के साथ लगने वाली म्याँमार सीमा पर बहती है।
- उत्तरी हिस्से में चीन से सटे और भारत के साथ त्रिकोण बनाने वाले काचिन राज्य में कई दिनों से हवाई हमले जारी है, क्योंकि काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी ने भी पुलिस चौकियों और सैन्य अड्डे पर हमला कर दिया था। वहाँ लगभग 5,000 लोग विस्थापित हुए हैं।
- मिजोरम की सीमा पर स्थित म्यांमार के पश्चिमी चिन राज्य में भी सशस्त्र संघर्ष जारी है। चिन भी वहाँ का एक जातीय समूह है।
महासंघ बनने का अधूरा होता सपना
- जातीय सशस्त्र संगठनों द्वारा प्रतिरोध ने म्यांमार की सेना को आश्चर्यचकित कर दिया है। कुल मिलाकर 21 जातीय सशस्त्र संगठनों सहित कई उग्रवादी संगठन म्यांमार के सीमावर्ती राज्यों में सक्रिय हैं। उनमें से कई ऐसे है, जो दशकों से राज्य के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध कर रहे हैं।
- ‘आंग सान सू की’ की पार्टी ने वर्ष 2015 से 2020 तक म्यांमार पर शासन किया और इस चुनाव में भी उसको बहुमत प्राप्त हुआ। सत्ता के दौरान आंग सान की प्राथमिकताओं में अपने पिता ‘जनरल आंग सान’ के प्रयासों को आगे ले जाना भी शामिल था, जिन्होंने अंग्रेजों से आजादी के लिये आंदोलन का नेतृत्व किया था। वे बामर बहुसंख्यक और जातीय अल्पसंख्यकों के मध्य समन्वय से संघीय म्यांमार बनाने के लिये प्रयासरत थे।
- हालांकि, वर्ष 2015 में 12 जातीय सशस्त्र संगठनों के साथ संघर्ष विराम समझौते के बाद आंग सान की सरकार इस मामले में अधिक प्रगति करने में असमर्थ रही और अन्य समूहों को साथ लाने का प्रयास असफल रहा। पहले कार्यकाल के अंत तक ‘सू की’ को यह विश्वास हो गया कि जब तक देश के संविधान में सुधारों के माध्यम से सेना पर नियंत्रण नहीं किया जाता, तब तक म्यांमार कभी भी महासंघ नहीं बन पाएगा।
बामर और अन्य जातीय समूह
- सेना, बहुसंख्यक बामरों और अल्पसंख्यक जातीय समूहों के बीच विभाजन के साथ-साथ स्वयं जातीय समूहों के मध्य आपसी शत्रुता से अपने अधिकार और शक्ति को मजबूती प्रदान करती है। हालांकि, 1 फरवरी के तख्तापलट के बाद युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले कुछ जातीय सशस्त्र संगठनों सहित कई अन्य संगठनों ने लोकतंत्र समर्थकों के साथ एकजुटता दिखाई है।
- सेना ने सभी समूहों से युद्ध विराम की पेशकश की थी परंतु काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी और करेन नेशनल यूनियन सहित कई प्रभावशाली समूहों ने इसे अस्वीकार कर दिया था। करेन नेशनल यूनियन और चिन नेशनल फ्रंट (CNF) वर्ष 2015 के युद्धविराम के हस्ताक्षरकर्ता रहे हैं। चिन समूहों ने सबसे पहले विद्रोह किया और मिजोरम में शरण मांगी थी।
- तीन सीमावर्ती राज्यों में अशांति ने यंगून सहित देश के केंद्रीय हिस्सों में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों से सेना का ध्यान भटका दिया है। यदि अन्य जातीय सशस्त्र संगठन सेना का विरोध करते है तो म्यांमार के सशस्त्र बल स्वयं सीमावर्ती क्षेत्रों में कई छोटे-छोटे युद्धों में संलग्न हो सकते हैं। ये संगठन 1990 के दशक की तरह स्वयं को पुन: प्रकाश में लाना चाहते हैं।
- एक रिपोर्ट के अनुसार जातीय सशस्त्र संगठनों और अन्य उग्रवादी समूहों की संयुक्त ताकत लगभग 1,00,000 है, जबकि म्यांमार की सेना की शक्ति लगभग 350,000 है और सेना द्वारा वायु शक्ति का उपयोग इन संगठनों को पीछे हटने के लिये एक चेतावनी हो सकती है।
शांति के लिये आसियान की योजना
- शायद सीमावर्ती क्षेत्रों में संघर्ष के कारण ही जुंटा शासन ने कहा है कि वह म्यांमार में किसी समाधान और संकल्प के लिये आसियान द्वारा आगे की योजना पर विचार करेगा परंतु इसके लिये उसने म्याँमार में ‘शांति व स्थिरता बहाली’ की शर्त रखी है।
- जकार्ता में म्यांमार की सेना के जनरल के लिये ‘पाँच-सूत्रीय आसियान सर्वसम्मति योजना’ प्रस्तुत की गई थी।ये पांच बिंदु इस प्रकार हैं: म्यांमार की सेना द्वारा हिंसा पर तत्काल रोक लगाना; सभी पक्षों के बीच बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान; आसियान के विशेष दूत द्वारा मध्यस्थता; विशेष दूत द्वारा म्याँमार की यात्रा और आसियान से मानवीय सहायता।
- प्रदर्शनकारियों ने इस योजना को खारिज कर दिया है, क्योंकि इसमें ‘सू की’ और जुंटा द्वारा गिरफ्तार अन्य व्यक्तियों की रिहाई के मुद्दे को शामिल नहीं किया गया है। साथ ही, प्रदर्शनकारियों ने सेना द्वारा तैयार किये गए वर्ष 2008 के संविधान को भी समाप्त करने की मांग की है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, म्यांमार का राजनीतिक संघर्ष, जातीय और क्षेत्रीय संघर्ष में बदलता जा रहा है। यह संघर्ष अब त्रिकोणीय संघर्ष का रूप ले चुका है। इसमें सेना, राजनीतिक विरोध और लोकतंत्र की मांग करने वाले समूह तथा सशस्त्र विद्रोही गुट शामिल हैं। इससे शांति और स्थिरता बहाली के प्रयासों को धक्का लगेगा, जो शांतिपूर्ण और समन्वयकारी संघीय म्याँमार की स्थापना में बाधक है।