प्रारंभिक परीक्षा
(पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
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संदर्भ
हाल ही में, गोवा-महाराष्ट्र सीमा से कुछ किलोमीटर दूर शोधकर्ताओं ने कुम्ब्राल में एक पवित्र उपवन ‘मिरिस्टिका दलदली वन’ की खोज की है जिसे स्थानीय समुदाय द्वारा संरक्षित किया जाता है।
मिरिस्टिका मैग्निफ़िका दलदली वन के बारे में
- परिचय : यह मीठे पानी के दलदली वन (Swamp Forest) का एक प्रकार है जो मुख्य रूप से मिरिस्टिका की प्रजातियों से बना है।
- मिरिस्टिका कर्नाटक एवं केरल में पाई जाने वाली पौधे की एक प्रजाति है, जिसे (IUCN) की लाल सूची में संकटग्रस्त (EN) श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
- यह पौधा सदाबहार जंगलों में नदियों के किनारे दलदली आवासों में उगता है।
- इससे पहले इस प्रकार के वन महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के बाम्बार्डे गाँव में पाए गए थे। ऐसे में कुम्ब्राल महाराष्ट्र का दूसरा ऐसा गाँव बन गया है, जहाँ इस तरह का जंगल मिला है।
- विस्तार : यह पवित्र उपवन 8,200 वर्ग मीटर में फैला हुआ है, जिसमें पौधों की 39 प्रजातियों का दस्तावेजीकरण किया गया है। दलदली जंगल में 70 प्रजातियों की प्रमुख उपस्थिति मिरिस्टिका मैग्निफ़िका की है।
- धार्मिक महत्व : इसे भगवान शिव के नाम पर सदियों से ग्रामीणों द्वारा संरक्षित किया जाता रहा है, जिन्हें स्थानीय रूप से भालंदेश्वर के नाम से जाना जाता है।
- पर्यावरणीय महत्व : यह विभिन्न प्रजातियों, जैसे- हॉर्नबिल, संकटग्रस्त एशियाई छोटे पंजे वाले ऊदबिलाव आदि के लिए आवास प्रदान करता है।
- मिरिस्टिका दलदली वन का यह हिस्सा भूजल पुनर्भरण, कार्बन पृथक्करण, बाढ़ के खिलाफ प्राकृतिक अवरोध, जलीय एवं विभिन्न जीव प्रजातियों के लिए आवास और भोजन जैसी कई पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करता है।
दलदली वन (Swamp Forest)
- मीठे पानी का दलदली जंगल एक प्रकार का आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र है।
- ये जंगल आम तौर पर निचले इलाकों, नदी के किनारों और बाढ़ के मैदानों में पाए जाते हैं जहाँ मीठे पानी की लगातार आपूर्ति होती है।
- ये वन जैव विविधता से समृद्ध होते हैं और कई तरह के पौधों एवं जानवरों की प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करते हैं।
- ये वन भारी बारिश के दौरान अतिरिक्त पानी को सोखकर बाढ़ के खिलाफ प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करते हैं। साथ ही, पानी को फ़िल्टर करके प्रदूषकों से पानी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
- ये वन कार्बन सिंक के रूप में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण हैं।
- स्थानीय समुदाय प्राय: लकड़ी, गैर-लकड़ी वनोत्पादों (जैसे- फल, शहद) और मछली जैसे संसाधनों के लिए इन पर निर्भर रहते हैं।
- ये वन शहरीकरण, विकास, जल निकासी एवं कृषि के कारण काटाई के प्रति संवेदनशील हैं।
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पवित्र उपवन (Sacred Grove)
- पवित्र उपवन स्थानीय समुदायों द्वारा द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र हैं, जिनका आमतौर पर संरक्षण करने वाले समुदाय के लिए विशेष धार्मिक महत्व होता है। यह प्रकृति पूजा के सिद्धांत पर आधारित मान्यता है।
- इस प्रकार के विश्वासों ने कई चिरकालीन वनों को प्राचीन रूप में संरक्षित रखा है। इन पवित्र उपवनों को देवी-देवताओं के उपवन भी कहा जाता है।
- पवित्र उपवन प्राकृतिक वनस्पतियों वाले ऐसे भू-क्षेत्र होते हैं, जिनका धार्मिक एवं सांस्कृतिक आधार पर प्राचीन काल से संरक्षण किया जाता है। ये क्षेत्र भारत के उत्तर-पूर्व हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, तटीय क्षेत्र, केंद्रीय पठार और पश्चिमी भागों में पाए जाते हैं।
- वनों के इन भागों में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप पर प्रतिबंध होता है। हालांकि, शहद संग्रह और सूखी लकड़ी संग्रह जैसे वन उपयोग के अन्य रूपों को कभी-कभी स्थायी आधार पर अनुमति दी जाती है।
- भारत में वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के तहत पवित्र उपवनों को ‘सामुदायिक रिजर्व’ के अंतर्गत कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है।
- ऐतिहासिक रूप से, पवित्र उपवनों का उल्लेख हिंदू, जैन एवं बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। इन्हें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है :
राज्य
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नाम
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आंध्र प्रदेश
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पवित्रक्षेत्रलु
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अरुणाचल प्रदेश
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गुम्पा वन
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असम
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थान, मदाइको
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छत्तीसगढ़
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सरना, देवलास, मंदार, बूढ़ादेव
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हरियाणा
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बीड़ या बोली, बानी, बन्न (बान), जंगलात, शामलात
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हिमाचल प्रदेश
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देव कोठी, देवबन, बखू देवबन
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झारखंड
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सरना
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कर्नाटक
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देवराकाडु, देवकाड
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केरल
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कावु, सर्पा कावु
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महाराष्ट्र
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देवराई
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मणिपुर
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उमंग लाई, गमखाप, मौहक
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उड़ीसा
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जाहेरा, ठकुरम्मा
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तमिलनाडु
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कोविल कडु
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उत्तराखंड
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देवभूमि, बौन, बुग्याल
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पश्चिम बंगाल
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गरमथान, हरिथान, जाहेरा, साबित्रिथन
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राजस्थान
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ओरण (जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर), केनकारी (अजमेर), वाणी (मेवाड़), शामलात डीह, देवबनी (अलवर), जोगमाया
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पवित्र उपवन
- यह एक पर्यावरणीय संकल्पना है। मराठी भाषा में इसे ‘देवराई’ तथा विदेशों में ‘चर्च फॉरेस्ट’ के नाम से जाना जाता है।
- ये क्षेत्र जैव विविधता में समृद्ध होने के साथ-साथ कई महत्त्वपूर्ण प्रजातियों के आवास स्थल भी होते हैं। ये क्षेत्र अधिकांशत: किसी बारहमासी जल स्रोत के पास स्थित होते हैं।
- वर्तमान में भी भारत के कई समुदाय वृक्षों की उपासना करते हैं एवं उनका संरक्षण करते हैं। गोंड समुदाय हरे वृक्षों की कटाई नहीं करते है।
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