(प्रारंभिक परीक्षा- भारत का इतिहास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू)
संदर्भ
वर्तमान समय में भारतीय राजनीति के साथ-साथ सोशल मीडिया पर ताजमहल चर्चा के केंद्र में है। इस बात का जिक्र कई बार किया गया कि शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण करने वाले श्रमिकों के हाथ काट दिये थे। हालाँकि, इसे एक प्रसिद्ध शहरी मिथक माना जाता है। शाहजहाँ द्वारा ऐसा किये जाने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। 1960 के दशक के आसपास इस मिथक की चर्चा ने पुन: ज़ोर पकड़ा। इस विवाद को समझने और वास्तविकता जानने के लिये मुगलों के लिखित रिकॉर्ड का विश्लेषण आवश्यक है।
ताजमहल
ताजमहल, राष्ट्रीय महत्व का स्मारक होने के साथ-साथ यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल भी है। यूनेस्को ने इसे ‘संकल्पना, उपचार और निष्पादन के संदर्भ में स्थापत्य शैली की उत्कृष्ट कृति’ के रूप में वर्णित किया है। इसका निर्माण 17वीं सदी में किया गया था।
विशेषता
- ताजमहल का निर्माण शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की स्मृति में करवाया था। यूनेस्को के अनुसार, अरबी लिपि के कई ऐतिहासिक साक्ष्यों और शिलालेखों से ताजमहल के निर्माण को समझने में सहायता मिलती है।
- स्मारक के निर्माण के लिये संपूर्ण साम्राज्य के अतिरिक्त मध्य एशिया और ईरान से भी राजमिस्त्री, पत्थर काटने वाले, नक्काशी करने वाले, चित्रकार, सुलेखक, गुंबद बनाने वाले और अन्य कारीगरों को बुलाया गया था।
- यूनेस्को के अनुसार, ताजमहल को इंडो-इस्लामिक वास्तुकला में सबसे महान वास्तुशिल्प उपलब्धि माना जा सकता है।
निर्माण एवं भुगतान संबंधी कुछ तथ्य
- मुगल अभिलेखों और लेखा पुस्तकों में श्रमिकों को किये जाने वाले भुगतान का उल्लेख है। इसके अनुसार, अता मुहम्मद नाम के राजमिस्त्री को प्रति माह ₹500 का भुगतान किया गया था।
- मुल्तान के एक राजमिस्त्री मुहम्मद सज्जाद और एक बाह्य सज्जाकार (Façade Worker) चिरंजीलाल को क्रमशः ₹590 और ₹800 प्रति माह का भुगतान किया गया था।
- जबकि इस काल में इस कार्य के लिये प्रशिक्षित श्रमिकों का सामान्य वेतन लगभग ₹15 रुपये प्रति माह था। हालाँकि, ऐसा माना जाता है कि उच्च भुगतान पाने वाले ये लोग टीम के प्रमुख (Team Leader) थे और इनको एक निश्चित कार्य करना होता था। वे इस धनराशि का पुनर्वितरण स्थानीय और अन्य श्रमिकों के बीच भी करते थे।
- कामगारों के अतिरिक्त कई अन्य उस्तादों का भी उल्लेख ऐतिहासिक रिकॉर्ड में है। इनमें से कुछ उस्ताद मुग़ल दरबार के अभिजात्य वर्ग में शामिल थे या उनको बाद में दरबार में स्थान मिला।
प्रमुख उस्ताद
अमानत खान- विशिष्ट सुलेखक (Calligrapher)
- अमानत खान मूल रूप से ईरान के शिराज़ के एक सुलेखक थे और 1608 ईस्वी में अपने बड़े भाई अफजल खान के साथ मुगल दरबार में आए थे। अफजल खान को जल्द ही प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
- अमानत खान को आगरा में मकबरा/समाधि पर सुलेख डिजाइन करने के लिये नियुक्त किया गया था, जिसे बाद में ताजमहल के नाम से जाना जाने लगा। उनके कार्य से प्रभावित होकर शाहजहाँ ने ही उन्हें 'अमानत खान' की उपाधि से सम्मानित किया और एक 'मनसब' प्रदान किया।
उस्ताद अहमद लाहौरी- प्रमुख वास्तुकार
- उस्ताद अहमद लाहौरी एक सम्मानित वास्तुकार थे, जो उस समय के कुलीन वर्ग के ही समतुल्य था। दरबारी इतिहासकार अब्दुल हमीद लाहौरी के पुत्र लुत्फुल्लाह मुहंदिस ने उस्ताद अहमद लाहौरी और मीर अब्दुल करीम नामक दो वास्तुकारों का उल्लेख किया है।
- ध्यातव्य है कि उस्ताद अहमद लाहौरी ने दिल्ली में लाल किले की नींव रखी थी, जबकि मीर अब्दुल करीम पूर्व बादशाह जहाँगीर के पसंदीदा वास्तुकार थे।
- कई डिजाइनरों और वास्तुकारों सहित लगभग 37 उस्तादों का उल्लेख मुगल इतिहास में मिलता है। संभवत: इन सभी ने मिलकर ताजमहल को आकार देने का काम किया है।
- अन्य प्रमुख उस्ताद निम्नलिखित हैं :
- इस्माइल खान- तुर्की में ओटोमन के लिये निर्माण कार्य और ताजमहल के गुंबदों का निर्माण किया था।
- साथ ही, लाहौर के एक सुनार काज़िम खान और दिल्ली के एक प्रमुख राजमिस्त्री मोहम्मद हनीफ का भी उल्लेख मिलता है।
निष्कर्ष
ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि कारीगरों और श्रमिकों के प्रयास एवं कड़ी मेहनत ने ताजमहल के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके लिये शाहजहाँ द्वारा उन सभी को सम्मानित और पुरस्कृत किया गया था। मुग़ल रिकॉर्ड अंततः यह स्पष्ट करते हैं कि कारीगरों के हाथ काटने की बात अफवाह पर आधारित थी, जो बाद में एक प्रसिद्ध शहरी मिथक बन गया।