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नैनो-सल्फर

(प्रारंभिक परीक्षा : समान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव-विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन) 

संदर्भ

टेरी (The Energy and Resources Institute : TERI) के वैज्ञानिकों ने नैनो सल्फर विकसित किया है जो सरसों की उपज में 30-40% तक वृद्धि करने और भारत की तिलहन उत्पादकता को बढाने के लिए एक व्यवहार्य समाधान है।

नैनो-सल्फर के बारे में 

  • क्या है : जैविक तरीकों से तैयार किया गया नैनो-आकार (कणों का आकर 50 से 100 नैनोमीटर) वाला उर्वरक 
  • उद्देश्य : फसलों की उत्पादकता बढ़ाना और पोषक तत्वों की दक्षता को बेहतर बनाना 
  • लाभ : सल्फर को अत्यंत सूक्ष्म रूप में पौधों तक पहुँचाने से इसका अवशोषण तेज व अधिक प्रभावी होना 

नैनो-सल्फर की प्रमुख विशेषताएँ

  • जैविक उत्पादन प्रक्रिया : जैविक विधियों से तैयार किए जाने से यह पारिस्थितिकीय रूप से सुरक्षित व किसानों के लिए एक संधारणीय विकल्प है।
  • उच्च दक्षता : यह पारंपरिक सल्फर उर्वरकों की तुलना में 20-30% अधिक दक्षता प्रदान करता है तथा फसल की जड़ों तक त्वरित एवं गहन अवशोषण सुनिश्चित करता है।
  • अधिक प्रभावी : पारंपरिक उर्वरकों के मुकाबले काफी कम मात्रा में उपयोग करके बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं जिससे उर्वरक लागत में कमी आती है।

सरसों की खेती में प्रभाव

  • उपज में 20-30% एवं तेल की मात्रा 28-30% की वृद्धि
  • इनपुट लागत एवं अत्यधिक सल्फर उर्वरकों पर निर्भरता में कमी
  • पौधों की वृद्धि एवं स्वास्थ्य में सुधार
  • मृदा में सल्फर की बेहतर उपलब्धता
  • नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम जैसे अन्य पोषक तत्वों का बेहतर अवशोषण

खेती में सल्फर का प्रयोग

  • परिचय : सल्फर (S) या गंधक फसलों के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrient) 
  • लाभ : विशेषकर फसलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण
  • फसलों में सल्फर का उपयोग : 
    • प्रोटीन संश्लेषण में आवश्यक : सल्फर से अमीनो एसिड (जैसे- सिस्टीन, मेथियोनिन) का निर्माण होता हैं।
    • क्लोरोफिल निर्माण में सहायक : यह पत्तियों को हरा रखने एवं प्रकाश-संश्लेषण में सहायक होता है।
    • तिलहन फसलों (जैसे- सरसों, सोयाबीन, तिल आदि) के बीज में तेल की प्रतिशतता में वृद्धि करता है।
    • सल्फर युक्त यौगिकों से फसल में सुगंध एवं स्वाद आता है, जैसे- प्याज, लहसुन, गोभी आदि।
  • सल्फर की आवश्यकत सरसों (अत्यधिक मात्रा में), प्याज़ व लहसुन (अधिक मात्रा में), सोयाबीन, गन्ना, चना, मूंगफली (मध्यम मात्रा में) और धान व गेहूँ (अल्प मात्रा में) आदि फसलों में होती है। 
  • सल्फर की कमी के लक्षण : नई पत्तियों का पीला होना, फसल का कमजोर होना, बीज का हल्का होना व तेल प्रतिशत घटना तथा फूल एवं फल निर्माण में कमी। 
  • कृषि में सल्फर के स्रोत : सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), अमोनियम सल्फेट, जिप्सम (विशेषकर क्षारीय मृदा में उपयोगी) आदि।

नैनो-सल्फर का महत्व

  • खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में योगदान : सरसों एवं अन्य तिलहन फसलों की उपज व गुणवत्ता बढ़ाकर यह खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की दिशा में मदद करता है।
  • किसानों की आय में वृद्धि : कम लागत में अधिक उत्पादन से यह विशेष रूप से लघु एवं सीमांत किसानों के लिए लागत प्रभावी विकल्प बन जाता है। 
  • सतत कृषि के लिए आवश्यक : इसके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है। यह मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करता है जिससे सतत कृषि को बढ़ावा मिलता है। 
  • पर्यावरणीय संरक्षण : जैविक विधि से निर्मित होने के कारण यह मृदा एवं जल प्रदूषण को न्यूनतम करता है।
  • कृषि में नवाचार : नैनो-प्रौद्योगिकी को कृषि में सफलतापूर्वक अपनाकर इससे भारत में कृषि नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • नीति-निर्माण एवं अनुसंधान में सहायक : टेरी जैसे संस्थानों द्वारा विकसित यह तकनीक शोध एवं नीति-निर्धारण के लिए आदर्श मॉडल बन सकती है।
    • यह भारत सरकार की मेक इन इंडिया, किसानों की आय को दोगुना करने और आत्मनिर्भर भारत जैसे लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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