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नरसिंहपेट्टई नागस्वरम

चर्चा में क्यों

हाल ही में, तमिलनाडु के तंजावुर ज़िले के नरसिंहपेट्टई में बने संगीत वाद्ययंत्र ‘नागस्वरम’ को भौगोलिक संकेतक (जी.आई.) प्रदान किया गया। इससे कारीगरों को भारत सरकार से सहायता तथा अन्य लाभ प्राप्त करने में मदद मिलेगी तथा व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।

नागस्वरम

  • यह दक्षिण भारत का एक दोहरी रीड (Reed) वाला वायु वाद्य यंत्र है। इसका उपयोग तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में पारंपरिक शास्त्रीय वाद्य यंत्र के रूप में किया जाता है। यह ‘अचा मारम’ पेड़ से बना है, जिसे इसकी मज़बूती के लिये जाना जाता है।
  • इसके सामने का भाग ‘अनुसू’ वागई लकड़ी का बना होता है तथा ‘सीवली’ या रीड एक प्रकार की घास से बनाई जाती है, जो कावेरी और कोलिडम के तट पर उगती है।
  • यह विश्व के सबसे तेज़ गैर-पीतल ध्वनिक यंत्रों में से एक है। यह आंशिक रूप से उत्तर भारतीय शहनाई के समान एक वायु वाद्य यंत्र है।
  • नागस्वरम वादक ‘परी’ नागस्वरम बनने से पूर्व छोटे ‘तिमिरी’ नागस्वरम का उपयोग करते थे। इस पर ‘सुधा मध्यमा’ नहीं बजाया जा सकता था। इसीलिये राजारथिनम पिल्लई ने सुधा मध्यमा बनाने में सक्षम एक उपकरण डिज़ाइन करने का फैसला किया, जिस पर संगीतकार इसे सहजता से बजा सकें।
  • इसे दक्षिण भारतीय संस्कृति में बहुत शुभ माना जाता है तथा यह दक्षिण भारतीय परंपरा के लगभग सभी हिंदू विवाहों और मंदिरों में बजाया जाने वाला एक प्रमुख संगीत वाद्ययंत्र है।

भौगोलिक संकेतक के बारे में

  • जी.आई. टैग किसी कृषि, प्राकृतिक अथवा विनिर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प तथा औद्योगिक वस्तु) को प्रदान किया जाता है, जो किसी विशिष्ट क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है या जिसे किसी निश्चित क्षेत्र में ही उगाया या निर्मित किया जाता है। जी.आई. टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण हेतु पेरिस कन्वेंशन के अंतर्गत बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPRs) के घटक के रूप में शामिल किया जाता है।
  • माल भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 भारत में पंजीकरण और जी.आई. टैग वस्तुओं को सुरक्षा प्रदान करता है। भारत के लिये भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री चेन्नई में स्थित है।

 

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