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नार्को-आतंकवाद

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3 : विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका)

संदर्भ 

जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत नार्को-आतंकवाद (Narco-Terrorism) के आरोप में जम्मू एवं कश्मीर में छह सरकारी अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया। बर्खास्त किए गए लोग पहले से ही नार्को आतंकवाद के मामले में जेल में थे।

क्या है नार्को-आतंकवाद

  • नार्को-आतंकवाद को ‘ड्रग उत्पादकों एवं आतंकवादी हमलों को अंजाम देने वाले विद्रोही समूह के बीच गठबंधन’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
  • इसमें आतंकवादी संगठन या विद्रोही समूह अवैध ड्रग व्यापार के माध्यम से अपनी गतिविधियों को वित्तपोषित करते हैं।
  • यह शब्द 1983 में पेरू के तत्कालीन राष्ट्रपति फर्नांडो बेलांडे द्वारा लैटिन अमेरिका में मादक पदार्थ रोधी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के खिलाफ संगठित आपराधिक गिरोहों द्वारा किए गए हिंसक कृत्यों का वर्णन करने के लिए गढ़ा गया था।

नार्को-आतंकवाद में शामिल तत्त्व 

  • नार्को-टेररिज्म गतिविधियों को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :
    • ड्रग तस्करी नेटवर्क द्वारा आतंकी रणनीति का इस्तेमाल। इसमें ड्रग तस्करी करने वाले सिंडिकेट हिंसा का इस्तेमाल करके इलाकों पर कब्ज़ा करने, सरकारों को नियंत्रित करने और बड़े इलाकों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए करते हैं। 
    • आतंकवादी संगठनों द्वारा अपनी गतिविधियों के लिए धन के स्रोत के रूप में नशीली दवाओं का उत्पादन व व्यापार। 
      • दक्षिण एशिया में ‘गोल्डन क्रिसेंट’ (पाकिस्तान, अफगानिस्तान व ईरान तक विस्तृत) ड्रग-तस्करी का केंद्र है जो दुनिया के सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। यह अल-कायदा और हक्कानी नेटवर्क को अफीम के उत्पादन व व्यापार से लाभ प्रदान करता है।

भारत में नार्को-आतंकवाद से प्रभावित क्षेत्र 

  • भारत दुनिया के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों के बीच में स्थित है।
    • गोल्डन ट्राइंगल क्षेत्र : म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और वियतनाम।
    • गोल्डन क्रिसेंट क्षेत्र : पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान।
  • पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, असम, मणिपुर व मिजोरम जैसे राज्यों के अधिक लोग अवैध ड्रग्स से प्रभावित हैं।

अनुच्छेद 311

  • संविधान के अनुच्छेद 311 में किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त करने या पद से हटाए जाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों का उल्लेख किया गया है।
  • यह सरकार की मनमानी कार्रवाइयों के विरुद्ध एक ढाल के रूप में कार्य करता है तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को कायम रखता है।
  • अनुच्छेद 311 में दो आधारों पर लोक सेवकों की बर्खास्तगी या पदावनति का प्रावधान है :
    • दक्षता : यदि लोक सेवक का कार्य निष्पादन या आचरण असंतोषजनक या सरकार के कुशल कामकाज के लिए हानिकारक पाया जाता है।
    • नैतिक आचरण : यदि कर्मचारी भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी या नैतिक अधमता से जुड़े किसी अन्य अपराध में शामिल है।
  • उचित जांच के बिना लोक सेवक को बर्खास्त, हटाया या पदावनत नहीं किया जा सकता है।
    • लोक सेवक को उस पर लगे आरोपों के बारे में सूचित किया जाता है और उन्हें बचाव करने का उचित अवसर प्रदान किया जाता है।
  • अपवाद : लोक सेवक को बिना जांच के बर्खास्त किया जा सकता है, यदि कोई लोक सेवक किसी आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है।
    • राज्य की सुरक्षा के हित में राष्ट्रपति या राज्यपाल ऐसे लोक सेवक को सेवा से बर्खास्त कर सकता है।
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