(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 : भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, पंचायती राज, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध : सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)
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संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Right Commission : NHRC) के अध्यक्ष और न्यायमूर्ति डॉ.विद्युत रंजन सारंगी एवं प्रियांक कानूनगो ने सदस्य के रूप में पदभार ग्रहण किया। न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन ने न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा का स्थान लिया है।
NHRC के बारे में
- NHRC एक सांविधिक निकाय (statutory body) है जिसका का गठन 12 अक्तूबर, 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत किया गया।
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 में वर्ष 2006 और 2019 में संशोधन करके कुछ अन्य प्रावधानों को शामिल किया गया है।
आयोग की संरचना
- आयोग एक बहुसदस्यीय निकाय है इसमें एक अध्यक्ष, पांच पूर्णकालिक सदस्य तथा सात पदेन सदस्य होते हैं।
- अध्यक्ष : आयोग का अध्यक्ष भारत का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश अथवा अन्य न्यायाधीश
- वर्ष 2019 में संशोधन के बाद सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अलावा अन्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भी NHRC का अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है।
- पूर्णकालिक सदस्य :
- एक सदस्य, उच्चतम न्यायालय के कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- एक सदस्य, किसी उच्च न्यायालय के कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- दो सदस्य ,ऐसे होंगे जिन्हे मानवाधिकारों से संबंधित विषयों का ज्ञान एवं व्यवहारिक अनुभव हो
- इसके आलावा वर्ष 2019 में संशोधन के बाद एक महिला सदस्य को भी शामिल किया गया जिसके बाद पूर्णकालिक सदस्यों की संख्या, चार से बढ़कर पांच हो गई है।
- पदेन सदस्य : मूल अधिनियम में ,राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ,राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्षों को NHRC के सदस्यों के रूप मे शामिल किया गया था।
- हालाँकि संशोधन के बाद राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और विकलांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त को NHRC के सदस्य के रूप में शामिल करने का प्रावधान किया गया।
- नियुक्ति : आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक छह सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- समिति में प्रधान मंत्री के अलावा लोकसभा अध्यक्ष,राज्यसभा के उपसभापति, संसद के दोनों सदनों के विपक्ष के नेता एवं केन्द्रीय गृहमंत्री शामिल होते हैं।
- अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल : तीन वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक, इनमे से जो भी पहले हो।
- मूल अधिनियम में अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष (इनमे से जो भी पहले हो) था जिसे वर्ष 2019 में संशोधित करके 3 वर्ष कर दिया गया।
- पुनर्नियुक्ति : मूल अधिनियम NHRC के सदस्यों को पांच साल की अवधि के लिए पुनर्नियुक्ति की अनुमति देता है
- हालांकि वर्ष 2019 में किए गए संशोधन के बाद पुनर्नियुक्ति के लिए पांच साल की सीमा को हटा दिया गया है।
- पदच्युति एवं त्यागपत्र : आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य किसी भी समय राष्ट्रपति को संबोधित करके अपना त्यागपत्र दे सकते हैं।
- राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित परिस्थितियों में अध्यक्ष एवं सदस्यों को उनके पद से हटाया जा सकता है –
- यदि वह दिवालिया हो जाए अथवा
- यदि वह अपने कार्यकाल के दौरान, अपने कार्यक्षेत्र से बाहर से किसी प्रदत्त रोजगार में संलिप्त हों अथवा
- यदि वह मानसिक व शारीरिक कारणों से कार्य करने में असमर्थ हों, अथवा
- यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तथा सक्षम न्यायालय ऐसी घोषणा करे, अथवा
- यदि वह न्यायालय द्वारा किसी अपराध का दोषी हो।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति, अध्यक्ष तथा किसी भी सदस्य को उसके दुराचरण या अक्षमता के कारण भी पद से हटा सकता।
- हालाँकि इस स्थिति में राष्ट्रपति इस विषय को सर्वोच्च न्यायालय को जाँच के लिए भेजेंगे यदि जाँच के उपरांत उच्चतम न्यायालय इन आरोपों को सही पाता है तो उसकी सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा इन सदस्यों व अध्यक्ष को उनके पद से हटाया जा सकता है।
- अध्यक्ष व सदस्यों के वेतन एवं भत्ते : आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन,भत्तों एवं अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
- हालाँकि नियुक्ति के पश्चात उनमे किसी भी प्रकार का अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
आयोग की शक्तियाँ एवं कार्य
शक्तियाँ
अधिनियम के अंतर्गत आयोग के पास शिकायतों की जाँच के संदर्भ में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन निम्नलिखित विषयों पर ऐसी सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी जो सिविल न्यायालय को प्राप्त होती हैं जिनमे शामिल हैं –
- साक्षियों को समन जारी करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उनकी परीक्षा करना
- किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना
- शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना
- किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि प्राप्त करना
- साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना
- कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।
कार्य
- स्वप्रेरणा से या किसी पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा या न्यायालय के निदेश पर प्रस्तुत किसी मुद्दे पर मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना
- न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
- जेलों व बंदीगृहों का निरीक्षण करना व इस बारे में सिफारिशें करना।
- मानवाधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशें करना।
- आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना, जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।
- मानवाधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन व उनको प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिशें करना।
- मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और इसे प्रोत्साहित करना।
- लोगों के बीच मानवाधिकारों से संबंधित जानकारी का प्रसार व उनकी सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपायों के प्रति जागरूक करना।
- मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना।
- ऐसे आवश्यक कार्यों को करना, जो कि मानवाधिकारों के प्रचार के लिए आवश्यक हों।
अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु
- आयोग ऐसे किसी मामले की जाँच के लिए अधिकृत नहीं है जिसे घटित हुए एक वर्ष से अधिक हो गया हो।
- आयोग को मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को न तो दंड देने का अधिकार है, और न ही पीड़ित व्यक्ति को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता देने संबंधी अधिकार है।
- आयोग की भूमिका मुख्यतः सलाहकारी प्रकृति की होती है। इसकी सिफारिशों संबंधित सरकार अथवा अधिकारी पर बाध्य नहीं हैं।
- परंतु उसकी सलाह पर की गई कार्यवाही पर उसे,आयोग के एक महीने के भीतर सूचित करना होता है।
- आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट केंद्र सरकार एवं संबंधित राज्य सरकारों को भेजता है तथा सरकारों द्वारा आयोग द्वारा भेजी गई रिपोर्ट को विधायिका के समक्ष रखवाया जाता है।
भारत में मानवाधिकारों की स्थिति
- भारत में मानवाधिकार का मुद्दा देश के बड़े आकार और जनसंख्या तथा विविध संस्कृति के कारण जटिल है।
- हालाँकि भारत, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा(Universal Declaration of Human Rights) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शामिल है।
- भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधान ,मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 से काफी प्रभावित था। जिसमें भाग III के अंतर्गत मौलिक अधिकार एवं भाग IV राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत जैसे प्रावधान शामिल हैं -
- संविधान में शामिल धार्मिक स्वतंत्रता,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, साथ ही कार्यपालिका और न्यायपालिका का पृथक्करण तथा देश के भीतर और विदेश में आवागमन की स्वतंत्रता संबंधी प्रावधान मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा से काफी मिलते-जुलते हैं।
- इसके अलावा संविधान में विभिन्न संशोधनों के माध्यम से कुछ ऐसे अन्य प्रावधान भी शामिल किए गए हैं जो मानवाधिकारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते है।
- मौलिक अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 21(प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) के भाग के रूप में समय समय पर विभिन्न वादों के मध्यम से इसका दायरा बढ़ाया जाता रहा है जिसमें प्रमुख मानवाधिकारों को शामिल किया गया है –
- स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार
- निजता का अधिकार
- निःशुल्क विधिक सहायता
- निद्रा का अधिकार
- सूचना का अधिकार
- 86वें संविधान संशोधन के द्वारा जोड़े गये अनुच्छेद 21(क) के तहत 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा।
- इसके अलावा वर्ष 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम,के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना करना जो भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की जाँच करता है।
इसे भी जानिए
राज्य मानवाधिकार आयोग
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 केंद्र के साथ ही राज्यों में भी मानव अधिकार आयोगों की स्थापना का प्रावधान करता है।
- राज्य मानव अधिकार आयोग केवल उन्हीं मामलों में मानव अधिकारों के उल्लंघन की जाँच कर सकता है, जो संविधान की राज्य सूची (सूची-II) एवं समवर्ती सूची के (सूची-III) अंतर्गत आते हैं।
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- हालाँकि यदि इस प्रकार के किसी मामले की जाँच पहले से ही राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग या किसी अन्य विधिक निकाय द्वारा की जा रही है तब राज्य मानव अधिकार आयोग ऐसे मामलों की जाँच नहीं कर सकता है।
- इसके अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश के आधार पर राज्यपाल द्वारा की जाती है हालाँकि उनकी पदच्युति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- उनके केवल उसे आधार और प्रक्रिया द्वारा पद से हटाया जा सकता है जिससे NHRC के अध्यक्ष और सदस्यों को हटाया जाता है।
- इसके अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल भी तीन वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक (इनमे से जो भी पहले हो) होता है।
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