(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 आर्थिक विकास : बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा)
संदर्भ
भारत की डीकार्बोनाइजेशन (वातावरण से कार्बन उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया) नीति को उत्प्रेरित करने में हरित हाइड्रोजन (GH) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एक विस्तृत ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन नीति’ की घोषणा की है, जो हरित हाइड्रोजन के प्रयोग को प्रोत्साहित करेगी। साथ ही, इससे भारत को स्वच्छ ऊर्जा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
राष्ट्रीय हाइड्रोजन नीति, 2022
- उद्देश्य: वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना।
- हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया निर्माता किसी भी पावर एक्सचेंज से अक्षय ऊर्जा खरीद सकते हैं अथवा स्वयं अक्षय ऊर्जा इकाई स्थापित कर सकते हैं।
- हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया निर्माता अपनी अप्रयुक्त अक्षय ऊर्जा को 30 दिनों तक वितरण कंपनी (डिस्कॉम) के पास जमा कर सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर इसे वापस प्राप्त कर सकते हैं।
- डिस्कॉम लाइसेंसधारी अपने राज्यों में हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के निर्माताओं को रियायती कीमतों पर अक्षय ऊर्जा की खरीद एवं आपूर्ति कर सकते हैं।
- हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के उन निर्माताओं, जो जून 2025 से पूर्व परियोजनाओं का परिचालन शुरू किया करेंगे, उन्हें 25 वर्षों की अवधि के लिये अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन शुल्क में छूट दी जाएगी।
- प्रक्रियात्मक विलंब से बचने के लिये हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया तथा नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र के विनिर्माताओं को प्राथमिकता के आधार पर ग्रिड से कनेक्टिविटी दी जाएगी।
- नवीकरणीय ऊर्जा खपत के लिये हाइड्रोजन और हरित अमोनिया निर्माताओं और वितरण लाइसेंस धारकों को नवीकरणीय खरीद दायित्व (Renewable Purchase Obligation : RPO) का लाभ प्रदान किया जाएगा।
- हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के निर्माताओं को निर्यात या शिपिंग द्वारा उपयोग के लिये हरित अमोनिया के भंडारण हेतु बंदरगाहों के पास बंकर स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी। इसके लिये भूमि, संबंधित पत्तन प्राधिकरणों द्वारा लागू शुल्क पर उपलब्ध कराई जाएगी।
- नीति में पौधों से हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से मंज़ूरी दी जाएगी। इस प्रकार, हाइड्रोजन और अमोनिया भविष्य में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करेंगे।
- नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा व्यापार सुगमता सुनिश्चित करने हेतु एकल पोर्टल स्थापित किया जाएगा।
हरित हाइड्रोजन, ऊर्जा का स्वच्छ स्रोत है। इसके उत्पादन के लिये जल से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पृथक किया जाता है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रोलाइज़र का प्रयोग होता है। इलेक्ट्रोलाइज़र नवीकरणीय ऊर्जा का प्रयोग करता है। इसमें सौर और पवन दोनों तरह की ऊर्जा शामिल है।
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हरित हाइड्रोजन : महत्त्व
- गौरतलब है कि भारत ने कॉप-26 में वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की घोषणा की है तथा वर्ष 2030 तक 45% की कार्बन तीव्रता में कटौती का लक्ष्य घोषित किया है।
- हरित हाइड्रोजन में ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को 15-25% तक कम करने की क्षमता है, अतः पूर्ण रूप से अक्षय ऊर्जा या निम्न कार्बन शक्ति से उत्पन्न हरित हाइड्रोजन इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
- घरेलू हरित हाइड्रोजन भारत के तेल, गैस और कोयले के आयात को कम कर भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी।
- 'हार्ड-टू-एबेट' क्षेत्रों अर्थात् ऐसे क्षेत्र, जिनके लिये प्रौद्योगिकी की कमी या अत्यधिक लागत के कारण ऊर्जा संक्रमण सरल नहीं होता, जैसे- स्टील, सीमेंट, उर्वरक और रसायन आदि, उनमें उच्च ग्रेड प्रक्रिया तापन हेतु हरित हाइड्रोजन का प्रयोग फीडस्टॉक में किया जा सकता है।
संभावनाएँ और चुनौतियाँ
- अनुमानित तौर पर एक विशाल घरेलू बाज़ार की उपलब्धता के कारण वर्ष 2030 तक हरित हाइड्रोजन की मांग 8 मिलियन टन तक हो सकती है, अतः संभावित मांग और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के कारण भारत हरित हाइड्रोजन का वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन सकता है।
- भारत के इस क्षमता विस्तार से इलेक्ट्रोलाइज़र, जल उपचार उपकरण, कम्प्रेसर और पाइपलाइन सामग्री समेत संपूर्ण आपूर्ति शृंखला के लिये विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने में मदद मिल सकती है। इससे नए रोज़गार सृजित होंगे एवं नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा।
- हालाँकि, हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र अभी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन कई प्रमुख निजी विद्युत उत्पादन कंपनियाँ अपने अंतिम उपभोक्ताओं को विद्युत आपूर्ति हेतु ऊर्जा उत्पादन इकाइयों में विविधता लाने के लिये हरित हाइड्रोजन के विकल्प को अपनाने के लिये प्रयासरत हैं।
हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक व्यवहार्यता के निर्धारक
- इनपुट ऊर्जा का विकल्प : नवीकरणीय ऊर्जा की वृहद् एवं निरंतर उपलब्धता हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में स्वच्छ विद्युत आपूर्ति का माध्यम बन उत्पादन लागत को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- विधिक प्रक्रियाओं में सुधार : भारत सरकार को भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को सरल बनाने, निकासी अवसंरचना (evacuation infrastructure) में सुधार लाने तथा ग्रिड के आधुनिकीकरण और सस्ती स्वच्छ ऊर्जा की स्थिर आपूर्ति हेतु एक स्थायी और अनुकूल नीतिगत ढाँचे को सुनिश्चित करने पर बल देना चाहिये।
- नीतिगत अनुसमर्थन (उत्पादन सुगमता) : चूँकि स्वदेशी इलेक्ट्रोलाइज़र के उत्पादन से पारिचालन लागत में कमी आएगी, परिणामस्वरुप हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। अतः इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन सुगमता पर विशेष बल दिया जाना चाहिये।
- भारत सरकार की उत्पादन से जुडी प्रोत्साहन (PLI) योजना के माध्यम से इलेक्ट्रोलाइज़र्स तथा अन्य हरित हाइड्रोजन आपूर्ति शृंखला से संबंधित स्थानीय उत्पादन इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहन मिल सकता है।
- बुनियादी ढाँचे का विस्तार: चूँकि हाइड्रोजन गंधहीन, ज्वलनशील, विस्फोटक, वाष्पशील और हवा की तुलना में हल्की होती है, जिससे परिवहन और भंडारण एक चुनौती बन जाता है। अतः इसके लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना आवश्यक है।
- हरित हाइड्रोजन के परिवहन नेटवर्क के लिये उच्च दाब क्षमता की पाइपलाइनों को या तो नए सिरे से निर्मित करना होगा अन्यथा मौज़ूदा पाइपलाइनों को पुनः विकसित करना होगा।
- कराधान से उपभोग प्रतिस्थापन: भारत सरकार को प्रारंभिक स्तर पर कम जोखिम वाले उपायों के द्वारा वाणिज्यिक अनुसमर्थन प्रदान करना चाहिये। जैसे- ग्रे हाइड्रोजन का उपयोग करने वाले क्षेत्रों को हरित हाइड्रोजन की तरफ उन्मुख करना।
- गौरतलब है कि विश्व में जीवाश्म ईंधनों, जैसे- प्राकृतिक गैस द्वारा हाइड्रोजन के उत्पादन (ग्रे-हाइड्रोजन) का हिस्सा कुल हाइड्रोजन उत्पादन का 95% है। इसे कार्बन टैक्स के आरोपण एवं जी.एच. खरीद दायित्वों के माध्यम से हतोत्साहित कर हरित हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन : भारत सरकार को धन, कम ब्याज वाले ऋण, सब्सिडी और टैक्स ब्रेक के माध्यम से इलेक्ट्रोलाइज़र्स के अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये। यह स्वचालित एवं कुशल निर्माण प्रक्रियाओं के विकास को सक्षम बनाएगा।
निष्कर्ष
हरित हाइड्रोजन के उत्पादन एवं अनुप्रयोग को बढ़ावा देने के लिये तकनीकी, आर्थिक एवं नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, हरित हाइड्रोजन के उपयोग को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य और लागत प्रतिस्पर्धी बनाना होगा। आगामी राष्ट्रीय नीति को इस दिशा में कार्य करना चाहिये।