(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: आतंरिक सुरक्षा, विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश) |
संदर्भ
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कहा है कि भारत एक राष्ट्रीय सैन्य अंतरिक्ष नीति एवं सिद्धांत पर कार्य कर रहा है, जिसका अगले कुछ माह में अनावरण किया जाएगा।
राष्ट्रीय सैन्य अंतरिक्ष नीति के बारे में
- यह नीति हमारी राष्ट्रीय सीमाओं से परे खतरों की निगरानी, प्रतिकूल गतिविधियों पर नज़र रखने तथा वास्तविक समय पर खुफिया जानकारी एकत्र करने में सशस्त्र बलों के लिए एक मार्गदर्शक नीति के रूप में कार्य करेगी।
- यह नीति अंतरिक्ष में उपग्रह रोधी हथियारों, अंतरिक्ष मलबे और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के बढ़ते खतरे पर ध्यान केंद्रित करेगी।
- इस नीति के तहत, भारत 52 सैन्य उपग्रहों का प्रक्षेपण भी करेगा जो खुफिया, निगरानी और टोही कार्यों के लिए समर्पित होंगे।
- इससे अंतरिक्ष आधारित परिसंपत्तियों के माध्यम से भारत की सैन्य क्षमताओं में वृद्धि होगी।
- वर्ष 2019 में, भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश बन गया था, जिसके पास अंतरिक्ष में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने के लिए निम्न भूकक्षा (LEO) में एक उपग्रह को नष्ट करने की क्षमता थी।
अन्य देशों से तुलना
- संयुक्त राज्य अमेरिका : अमेरिकी रक्षा विभाग, पेंटागन, का अमेरिकन स्पेस फोर्स के रूप में एक अलग अंतरिक्ष शाखा है, जो सैन्य संचालन और सुरक्षा के लिए पूरी तरह से समर्पित है।
- चीन : चीन ने भी अपनी सैन्य अंतरिक्ष नीति को बहुत मजबूती से विकसित किया है और यह अपनी अंतरिक्ष सेना के निर्माण की दिशा में बढ़ रहा है।
- रूस : रूस अंतरिक्ष से सैन्य संचालन और सुरक्षा के लिए उपग्रहों का उपयोग करता है और इसके पास रूसी स्पेस फोर्स जैसी शाखाएं हैं जो अंतरिक्ष से संबंधित सैन्य कार्यों को नियंत्रित करती हैं।
भविष्य में चुनौतियाँ
- अंतरिक्ष युद्ध की बढ़ती संभावना : अंतरिक्ष में सैन्य संचालन की बढ़ती महत्ता के कारण अंतरिक्ष युद्ध की संभावना भी बढ़ सकती है। इससे संबंधित सुरक्षा और युद्ध रणनीतियों को तैयार करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- उपग्रहों की सुरक्षा : उपग्रहों की सुरक्षा एक प्रमुख चुनौती होगी, क्योंकि यह अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। एंटी-सैटेलाइट मिसाइलों जैसे नए हथियारों के विकास से उपग्रहों की सुरक्षा में खतरा हो सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय तनाव : जब देश अपनी सैन्य अंतरिक्ष नीति को बढ़ाते हैं, तो इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव बढ़ सकता है, खासकर उन देशों के साथ जो अंतरिक्ष संसाधनों का समान उपयोग चाहते हैं।
- प्रौद्योगिकी की तेज़ी से बढ़ती मांग : अंतरिक्ष तकनीक तेजी से विकसित हो रही है, और भारत को इन बदलावों के साथ तालमेल बनाए रखना होगा। इसमें लागत, नवाचार, और शुद्ध तकनीकी दक्षता की जरूरत होगी।
समाधान
- अंतरिक्ष रक्षा रणनीति : भारत को एक सशक्त अंतरिक्ष रक्षा रणनीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें उपग्रहों की सुरक्षा, खतरों का शीघ्रता से पता लगाने और उनका मुकाबला करने के उपाय शामिल हों।
- वैश्विक सहयोग और नियम : अंतरिक्ष में सैन्य संचालन पर अंतरराष्ट्रीय समझौते और नियमों का निर्माण करने की आवश्यकता है ताकि अंतरिक्ष में शांति बनी रहे और संघर्षों को टाला जा सके।
- नवाचार और प्रौद्योगिकी में निवेश : भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में नवाचार और नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करना होगा ताकि वह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रह सके।
- मानव संसाधन विकास : अंतरिक्ष में सैन्य संचालन की सफलता इसके मानव संसाधनों पर निर्भर करती है। इसके लिए उच्च स्तर के प्रशिक्षण और विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी।
आगे की राह
- स्पेस फोर्स की स्थापना : एक समर्पित स्पेस फोर्स की स्थापना से अंतरिक्ष में सैन्य संचालन को अधिक प्रभावी और संरचित किया जा सकता है।
- वर्तमान क्षमताओं को बढ़ाना : भारत को अपनी मौजूदा अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है, खासकर उच्च गुणवत्ता वाले उपग्रहों, मिसाइल रक्षा प्रणालियों और अन्य आवश्यक सैन्य तकनीकों के विकास में।
- सामूहिक सुरक्षा प्रणाली का निर्माण : अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर अंतरिक्ष में सामूहिक सुरक्षा प्रणालियाँ विकसित की जा सकती हैं। इससे अंतरिक्ष में शांति बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
- नागरिक और सैन्य अंतरिक्ष सहयोग : नागरिक और सैन्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बीच सहयोग बढ़ाकर भारत अपनी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का अधिकतम लाभ उठा सकता है।
निष्कर्ष
भारत की राष्ट्रीय सैन्य अंतरिक्ष नीति का निर्माण देश की रक्षा क्षमता को बढ़ाने और अंतरिक्ष से संबंधित सुरक्षा मामलों में अग्रणी बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसे प्रभावी ढंग से लागू करने से न केवल भारत की सैन्य शक्ति मजबूत होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की स्थिति सशक्त होगी।