(प्रारंभिक परीक्षा : योजनाएं एवं कार्यक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन : बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि) |
संदर्भ
केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम ‘पर्वतमाला’ परियोजना के तहत समुद्र तल से 15000 फीट की ऊंचाई पर उत्तराखंड में दो प्रमुख रोपवे (रज्जुमार्ग) परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान की है।

रोपवे परियोजनाओं के बारे में
- परियोजना स्थल : गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब जी (12.4 किमी.) तक और सोनप्रयाग से केदारनाथ (12.9 किमी.) तक
- आवश्यकता : वर्तमान में गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब की यात्रा 21 किमी. और गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर की यात्रा 16 किमी. की चढ़ाई के माध्यम से की जाती है जिसे पैदल या टट्टू, पालकी व हेलीकॉप्टर से पूरा किया जाता है।
- कुल लागत : दोनों परियोजनाओं की कुल लागत लगभग 6,811 करोड़ रुपए
- विकास : इन्हें डिजाइन, निर्माण, वित्त, संचालन एवं हस्तांतरण (DBFOT) मोड पर विकसित किया जाएगा जोकि सार्वजनिक-निजी भागीदारी या पी.पी.पी. मॉडल का एक रूप है।
- लाभ : रोपवे परियोजना से केदारनाथ यात्रा का समय मौजूदा 8-9 घंटे से घटकर 36 मिनट रह जाएगा जबकि हेमकुंड साहिब के लिए यात्रा का समय घटकर 42 मिनट रह जाएगा।
- यह परियोजना आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के साथ ही दोनों धार्मिक स्थलों (हेमकुंड साहिब जी एवं केदारनाथ) में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।
रोपवे परियोजनाओं से संबंधित प्रमुख बिंदु
- हेमकुंड साहिब परियोजना का निर्माण गोविंदघाट से घांघरिया तक मोनोकेबल डिटैचेबल गोंडोला (MDG) तकनीक और घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक ट्राइकेबल डिटैचेबल गोंडोला (3S) तकनीक का उपयोग करके किया जाएगा।
- इसकी डिज़ाइन क्षमता प्रति घंटे प्रति दिशा 1,100 यात्रियों (PPHPD) की होगी, जिसमें प्रतिदिन 11,000 यात्रियों की अधिकतम वहन क्षमता होगी।
- सोनप्रयाग से केदारनाथ रोपवे में ट्राई-केबल डिटैचेबल गोंडोला (3S) तकनीक होगी, जिसकी डिजाइन क्षमता प्रति घंटे प्रति दिशा 1,800 यात्रियों की होगी तथा प्रतिदिन 18,000 यात्री जा सकेंगे।
राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम : पर्वतमाला परियोजना
- आरंभ : इस परियोजना की घोषणा केंद्रीय बजट 2022-23 में की गई थी।
- संबंधित मंत्रालय : सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय
- फरवरी 2021 में भारत सरकार (व्यवसाय आवंटन) नियम, 1961 में संशोधन किया गया था जो सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को रोपवे व वैकल्पिक परिवहन के विकास की देखभाल करने में सक्षम बनाता है।
- उद्देश्य : दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक सड़कों के स्थान पर संधारणीय पारिस्थितिक विकल्प के रूप में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर रोपवे विकास को बढ़ावा देना।
- इस परियोजना का उद्देश्य दुर्गम क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देना और यात्रियों के लिए संपर्क एवं सुविधा में सुधार करना है।
- शामिल राज्य : यह परियोजना उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, जम्मू एवं कश्मीर व अन्य पूर्वोत्तर राज्यों जैसे क्षेत्रों में क्रियान्वित की जा रही है।
क्या आप जानते हैं?
भारत का एकमात्र रोपवे कॉरपोरेशन हिमाचल प्रदेश का HPRDTS है जिसे केवल रोपवे एवं रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के विकास के लिए गठित किया गया है।
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रोपवे परियोजनाओं के लाभ
- भूमि की कम आवश्यकता : रोपवे परियोजनाएँ अधिकांशत: पहाड़ी क्षेत्रों में सीधी रेखा में निर्मित की जाती हैं जिससे परियोजना की भूमि अधिग्रहण लागत कम हो जाती है। इसमें केबल को टावरों पर फिट किया जाता है, जिससे भूमि की कम आवश्यकता होती है।
- संवेदनशील क्षेत्रों के लिये आदर्श : यह परियोजना दुर्लभ/चुनौतीपूर्ण/संवेदनशील क्षेत्रों के लिये आदर्श है। इस प्रणाली में लंबी केबल स्पैन के माध्यम से बिना किसी बाधा के नदियों, इमारतों, खड्डों या सड़कों को पार किया जा सकता है।
- लोगों को गतिशीलता प्रदान करने में सहायक : यह परिवहन माध्यम दुर्गम क्षेत्रों में लोगों को गतिशीलता प्रदान करने, आसानी से उपज का परिवहन करने और उन्हें मुख्यधारा में लाने में मदद करेगा।
- लागत प्रभावी : रोपवे में एक ही पावर-प्लांट एवं ड्राइव मैकेनिज्म द्वारा संचालित कई कारें (रोपवे लिफ्ट बॉक्स) होती हैं जो इसके निर्माण एवं रखरखाव लागत को कम करता है। रोपवे के लिए ऑपरेटर की कम संख्या से श्रम लागत में कमी आ जाती है।
- अधिक किफायती परिवहन साधन : सड़क मार्ग की तुलना में प्रति किलोमीटर रोपवे की निर्माण लागत अधिक होने के बावजूद ये अधिक किफायती होती है।
- द्रुत गति के परिवहन साधन : रोपवे तीव्र एवं द्रुत गति के परिवहन साधन उपलब्ध कराते हैं।
- पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल : ये पर्यावरण अनुकूल परिवहन साधन है जिनसे धूलकणों का उत्सर्जन कम होता है। इसके अतिरिक्त, रोपवे परियोजनाएँ 6000-8000 यात्रियों को प्रति घंटे ले जाने में सक्षम है।
- पहाड़ी क्षेत्रों के लिये आदर्श परिवहन साधन : रोपवे तथा केबल मार्ग (केबल क्रेन) में बड़े ढलानों एवं ऊँचाई अंतराल को संतुलित करने की क्षमता होती है। किसी सड़क या रेलमार्ग को स्विचबैक या सुरंगों की आवश्यकता होती है जबकि रोपवे ऊपर व नीचे फॉल लाइन पर गमन करते हैं।
हेमकुंड साहिब जी एवं केदारनाथ मंदिर के बारे में
हेमकुंड साहिब जी के बारे में
- उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित यह गुरुद्वारा मई से सितंबर के बीच साल में लगभग 5 महीने के लिए खुला रहता है।
- यह हिमालय में 4632 मीटर (15,192.96 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है।
- हेमकुंड साहिब सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की तपस्थली है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 1.5 से 2 लाख तीर्थयात्री आते हैं।
केदारनाथ मंदिर के बारे में
- केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में 3,583 मीटर (11968 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में से एक होने के साथ-साथ चार धाम एवं पंच केदार में से भी एक है।
- यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख तीर्थयात्री आते हैं। इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था।
भारत एवं विश्व का सबसे लंबा रोपवे
- एमआई टेलीफ़ेरिको रोपवे दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में बोलीविया के ला पाज एवं एल ऑल्टो शहरों को जोड़ने वाला दुनिया का सबसे बड़ा अर्बन रोपवे है। इसकी लंबाई 33.8 किलोमीटर है।
- भारत के सबसे लंबे रोपवे को हिमाचल प्रदेश में तारादेवी-शिमला रोपवे के तौर पर विकसित किया जाएगा। यह विश्व में दूसरे नंबर का सबसे लंबा रोपवे होगा जोकि लगभग 14 किमी. लंबा होगा।
- भारत के अन्य प्रमुख रोपवे-
- गुलमर्ग गंडोला (जम्मू एवं कश्मीर में एशिया की सबसे ऊँची केबल कार परियोजना)
- औली रोपवे (उत्तराखंड)
- नैना देवी (हिमाचल के बिलासपुर में)
- नामची रोपवे (सिक्किम)
- गंगटोक रोपवे (सिक्किम)
- गलेनमोर्गन रोपवे (तमिलनाडु)
- दार्जिलिंग रोपेवे (पश्चिम बंगाल)
- गिरनार रोपवे (गुजरात के जूनागढ़ में)
ट्राई-केबल डिटैचेबल गोंडोला
- इस रोपवे प्रणाली में गोंडोला या लिफ्ट बॉक्स/केबिन को तीन केबलों द्वारा सहारा दिया जाता है और यात्रियों को चढ़ाने-उतारने के लिए गोंडोला को स्टेशनों पर केबल से अलग किया जा सकता है।
- ट्राई-केबल डिटैचेबल गोंडोला में मोनोकेबल प्रणालियों की तुलना में अधिक क्षमता, टावरों के बीच अधिक दूरी तथा लागत अधिक होती है जो एकल केबल पर गमन करती हैं।
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