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भारत में नक्सल समस्या

(प्रारम्भिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 3: विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध।)

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 से पहले देश से नक्सल को पूरी तरह खत्म करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। नक्सलवाद या वामपंथी उग्रवाद (LWE) भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जो माओवाद के आदर्श वाक्य, “शक्ति बंदूक की नली से निकलती है”, से प्रेरित है।

लाल गलियारा(Red Corridor)

  • भारत में वामपंथी उग्रवाद के प्रभाव क्षेत्र को लाल गलियारा या रेड कॉरिडोर कहा जाता है। भारत के मध्य, दक्षिणी और पूर्वी राज्यों में इसका विस्तार देखा जा सकता है।
  • इस गलियारे के दायरे में मुख्य रूप से ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड के हिस्सों सहित 11 राज्य शामिल होते हैं को कवर करता हैं। 
  • हालाँकि, इसके भौगोलिक विस्तार और हिंसक घटनाओं में लगातार गिरावट हो रही है।

भारत में नक्सल आंदोलन की शुरुआत

  • भारत में नक्सल आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव में जमींदारों के खिलाफ आदिवासी-किसान विद्रोह से हुई थी।
    • विद्रोह का नेतृत्व चारु मजूमदार और कानू सान्याल जैसे नेताओं ने किया था।
  • बाद में, यह उग्रवादी आंदोलन पूरे पश्चिम बंगाल में फैल गया और विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में अन्य समूहों द्वारा आगे बढ़ाया गया।
  • नक्सलवादी अति वामपंथी कट्टरपंथी कम्युनिस्ट हैं, जिनकी राजनीतिक विचारधारा चीनी क्रांतिकारी नेता माओत्से तुंग से प्रेरित है। 
  • 1969 में माओवादी विचारधारा पर आधारित सीपीआई मार्क्सवादी-लेनिनवादी (एमएल) पार्टी की स्थापना हुई।
  • वर्ष 2004 में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, दो मुख्य नक्सली समूह, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (MCCI) और पीपुल्स वार ने विलय करके सीपीआई (माओवादी) पार्टी बनाई।
  • अंततः वर्ष 2008 तक अधिकांश अन्य नक्सली समूहों का विलय भी सीपीआई (माओवादी) में हो गया। 

नक्सलवाद के उदय के लिए जिम्मेदार कारक 

  • आर्थिक असमानता : व्यापक गरीबी और आय असमानता की असंतोष और अशांति को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका थी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। 
    • ऐसे लोग जिनके पास जीविका का कोई साधन नहीं होता वे नक्सलवादी विचारों से जल्दी प्रभावित होते हैं।
  • भूमि स्वामित्व के मुद्दे : ऐतिहासिक भूमि अलगाव और हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेष रूप से आदिवासी और जनजातीय आबादी के लिए भूमि अधिकारों की कमी ने असंतोष को बढ़ाया।
    • 1980 के वन (संरक्षण) अधिनियम जैसे कानूनों ने आदिवासियों वन उपज के संग्रह से भी वंचित किया। 
  • सामाजिक अन्याय : समाज में तथाकथित निचली जातियों और आदिवासी समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव व बहिष्कार ने हाशिए पर होने की भावनाओं को और बढ़ाया।
  • शासन की विफलता : अप्रभावी शासन, भ्रष्टाचार और ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक सेवाओं की अपर्याप्त पहुँच ने राज्य के प्रति असंतोष को जन्म दिया। 
  • बुनियादी विकास की कमी : अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के विकास और ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा ने स्थानीय आबादी के बीच परित्याग और निराशा की भावना पैदा की।
  • राजनीतिक अलगाव : मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से प्रतिनिधित्व और जवाबदेही की कथित कमी ने भी कुछ समूहों को कट्टरपंथी विकल्पों की ओर धकेला।

नक्सलवाद की समाप्ति के लिए सरकारी प्रयास

सुरक्षा अभियान

  • ऑपरेशन ग्रीन हंट : यह वर्ष 2009-10 में चलाया गया एक प्रमुख अर्धसैनिक बल अभियान था, जिसका उद्देश्य नक्सली ढांचे को नष्ट करना और उनके प्रभाव को कम करना था।
  • केंद्रीय बलों की तैनाती : सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और सीमा सुरक्षा बल (BSF) जैसे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है।
  • ऑपरेशन समाधान (SAMADHAN) : वर्ष 2017 में शुरू किया गया यह अभियान उग्रवाद का मुकाबला करने और प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण पर केंद्रित है।

SAMADHAN रणनीति के घटक

  • S -smart leadership (कुशल नेतृत्व)
  • A -aggressive strategy (आक्रामक रणनीति)
  • M -motivation and training (प्रेरणा और प्रशिक्षण)
  • A -actionable intelligence (कार्रवाई योग्य इंटेलिजेंस)
  • D -dashboard based key performance indicators and key result areas (डैशबोर्ड आधारित मुख्य परिणाम क्षेत्र और मुख्य प्रदर्शन संकेतक)
  • H -harnessing technology (तकनीक का उपयोग)
  • A -action plan for each threat (प्रत्येक खतरे के लिए कार्ययोजना)
  • N -no access to financing (वित्तपोषण तक कोई पहुँच नहीं)
  • सलवा जुडूम : इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ में वर्ष 2005 में माओवादियों के खिलाफ़ सरकार द्वारा समर्थित “लोगों के प्रतिरोध आंदोलन” के रूप में हुई थी। 
    • दंतेवाड़ा और बस्तर के आदिवासियों की गोंडी भाषा में, सलवा जुडूम का मतलब शांति मार्च होता है। लेकिन असल में, इसमें माओवादियों से लड़ने के लिए अधिकारियों द्वारा आदिवासी ग्रामीणों को हथियार दिए गए थे।
  • ग्रेहाउंड्स : यह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पुलिस विभागों की एक पुलिस विशेष बल इकाई है, जो नक्सली और माओवादियों के विरुद्ध उग्रवाद विरोधी अभियानों में माहिर हैं।
  • ब्लैक पैंथर : ग्रेहाउंड इकाई की तर्ज पर छत्तीसगढ़ राज्य के लिए ब्लैक पैंथर नामक सुरक्षा बल को बनाया गया है। यह एक नक्सल विरोधी विशेष लड़ाकू बल है।
  • झारखंड जगुआर : वर्ष 2008 में झारखंड में उग्रवादी गतिविधियों के उन्मूलन के लिए स्पेशल टास्क फोर्स (STF) गठित किया गया। बाद में इसको “झारखंड जगुआर” नाम दिया गया।

प्रमुख विकासीय कार्यक्रम

  • एकीकृत कार्य योजना : वर्ष 2010 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा और शैक्षिक सुविधाएं का विकास करना था।
  • जिला खनिज फाउंडेशन : इसका उद्देश्य खनिज समृद्ध और नक्सल प्रभावित जिलों में विकास का समर्थन करने के लिए खनन गतिविधियों से प्राप्त धन का उपयोग करना है।
  • मोबाइल टावर परियोजना : इसका उद्देश्य सुदूर गावों को इंटरनेट कवरेज प्रदान करके उन्हें दुनिया से जोड़ना है। 
  • वित्तीय समावेशन : नक्सल प्रभावित और सुदूरवर्ती क्षेत्रों में बैंक शाखाओं व एटीएम की स्थापना की जा रही है। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों के लोगों को वित्तीय सेवाओं से जोड़ना है।

नीतियां और कानून

  • गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए-1967) : यह कानून विद्रोही गतिविधियों और संगठनों से निपटने के लिए कानूनी उपाय प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना (2015) : सुरक्षा और विकास दोनों पहलुओं पर जोर देते हुए नक्सलवाद से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की रूपरेखा तैयार करती है।
  • सरकार आप के द्वार : झारखंड सरकार की इस योजना के माध्यम से सरकारी सेवाओं का लाभ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुनिश्चित किया गया है और नक्सलियों द्वारा चलाई जा रही ‘जन अदालतों’ के स्थान पर सरकार की भूमिका को मजबूत किया गया है। 

आत्मसमर्पण और पुनर्वास

  • आत्मसमर्पण नीति : सरकार नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है, जिसमें वित्तीय सहायता, शैक्षिक अवसर और नौकरी की व्यवस्था शामिल है।
    • छत्तीसगढ़ प्रत्येक नक्सली को समर्पण पर प्रोत्साहन के लिए 25 हजार रुपये की राशि प्रदान करती है। सक्रिय, पांच लाख या अधिक के इनामी नक्सली को आत्मसमर्पण पर 10 लाख की राशि पृथक से देने, समर्पित हथियार के बदले देय मुआवजा राशि का प्रावधान है। 
  • पुनर्वास योजनाएँ : इसके अंतर्गत ऐसे कार्यक्रम हैं, जो पूर्व नक्सलियों को मुख्यधारा के समाज में पुनः शामिल करने में सहायता करते हैं।
    • छत्तीसगढ़ की सरकार नक्सल पुनर्वास नीति के तहत यदि समर्पित नक्सली द्वारा तीन वर्ष के भीतर कृषि भूमि क्रय की जाती है तब दो एकड़ तक भूमि पर स्टांप ड्यूटी व पंजीयन शुल्क में पूर्ण छूट देने का प्रावधान है।

सामुदायिक सहभागिता

  • ग्राम सभा सशक्तीकरण : सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने और स्थानीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए ग्राम सभा जैसी स्थानीय शासन संस्थाओं को मजबूत किया जा रहा है।
  • सामुदायिक विकास पहल : ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रहने की स्थिति, बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के लिए विभिन्न परियोजनाओं पर कार्य कोइया जा रहा है।

क्षमता निर्माण

  • प्रशिक्षण कार्यक्रम : सुरक्षा कर्मियों को उनके आतंकवाद-रोधी कौशल और परिचालन प्रभावशीलता में सुधार करने के लिए नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है।
  • प्रौद्योगिकी और उपकरण : बेहतर निगरानी और परिचालन दक्षता के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी और उपकरणों का प्रावधान किया गया है।

स्वास्थ्य और शिक्षा पहल

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (2014) : यह मिशन दूरदराज और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए-2001) : यह अभियान ग्रामीण और संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में सुधार पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय : इसका उद्देश्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के जनजातीय ब्लॉकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है।
  • कौशल विकास : वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में आईटीआई और कौशल विकास केंद्रों (एसडीसी) की स्थापना पर जोर दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना और आर्थिक विषमता को काम करना है। 

सरकारी प्रयासों के परिणाम

  • 2022 में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसक घटनाओं की संख्या में वर्ष 2010 और वर्ष 2018 की तुलना में क्रमशः 76 प्रतिशत और 36 प्रतिशत की कमी आई है।
  • सुरक्षा बल एवं नागरिकों की मौतों के आंकड़े वर्ष 2010 के 1005 व्यक्ति से घटकर 98 रह गए है, इसमें 90 प्रतिशत की कमी आई है।
  • वामपंथी उग्रवाद संबंधी हिंसा के भौगोलिक विस्‍तार में भी कमी आई और हिंसा की घटनाओं वाले जिलों की संख्‍या भी 96 (वर्ष 2010) से घटकर 45 (वर्ष 2022) रह गई है।

सुझाव 

  • शिक्षा पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता :संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए शैक्षिक कार्यक्रम विकसित किए जाने चाहिए, जैसे कि आदिवासी क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देने और नक्सलियों द्वारा भर्ती को कम करने के लिए "शांति के लिए शिक्षा" पहल।
  • बेहतर आजीविका के अवसर उपलब्ध कराने पर जोर : युवा रोजगार के लिए "दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना" (DDU-GKY) के समान, स्थायी आजीविका विकल्प प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कौशल विकास कार्यक्रम और माइक्रोफाइनेंस योजनाएं लागू की जानी चाहिए।
  • स्थानीय शासन को मजबूत के मजबूती पर बल : संघर्ष-ग्रस्त जिलों मेंस्थानीय प्रशासन और संघर्ष समाधान में सुधार के लिए स्थानीय शासन निकायों (जैसे, ग्राम पंचायतों) के लिए प्रशिक्षण और संसाधन बढ़ाएँ जाने चाहिए।
  • बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश किया जाना चाहिए : ग्रामीण कनेक्टिविटी में सुधार के उद्देश्य से "प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना" (PMGSY) के समान, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें, स्कूल और स्वास्थ्य सेवा सुविधाएँ बनाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • संवाद और शांति पहल को बढ़ावा : शिकायतों को दूर करने और शांतिपूर्ण समाधान के लिए सरकार और स्थानीय नेताओं या कार्यकर्ताओं के बीच संवाद की सुविधा का विकल्प प्रदान किया जाना चाहिए। 
  • प्रौद्योगिकी का लाभ : विभिन्न वैश्विक संदर्भों में आतंकवाद विरोधी अभियानों में उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकी के समान, कठिन इलाकों में बेहतर निगरानी और समन्वय के लिए ड्रोन व उपग्रह इमेजरी जैसी उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
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