संदर्भ
हाल ही में, संसद द्वारा ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम’ पारित किया गया।
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NGT) अधिनियम में वर्तमान संशोधन
- ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम’ का उद्देश्य विभिन्न हितधारकों की भूमिका में अस्पष्टता को दूर करना तथा केंद्र सरकार के साथ सामंजस्य स्थापित करने हेतु दिल्ली सरकार में हितधारकों के लिये एक रचनात्मक नियम-आधारित ढाँचा प्रदान करना है।
- इस संशोधन का उद्देश्य ‘सरकार’ शब्द की परिभाषा को स्थिरता तथा औपचारिक रूप प्रदान करना भी है, जिसे दिल्ली विधानसभा पहले ही स्वीकार कर चुकी थी।
- इस अधिनियम में उपराज्यपाल (LG) की भूमिका को अधिक जवाबदेह बनाने संबंधी प्रस्ताव पेश किया गया है। एल.जी. को संदर्भित विधायी प्रस्तावों एवं प्रशासनिक मामलों से संबंधित नियमों में निर्णय लेने के लिये अधिकतम समय सीमा निर्धारित करके ऐसा किया जा सकता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- 20 दिसंबर 1991 को गृहमंत्री एस. बी. चव्हाण ने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 239 क (क) तथा 239 क (ख) शामिल करने के लिये लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया था। इस विधेयक को लोकसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
- इसी संशोधित अधिनियम (69वाँ संशोधन अधिनियम) से दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) के लिये विधान सभा एवं मंत्री-परिषद् स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। दिल्ली विधान सभा की स्थापना के पश्चात् मदन लाल खुराना दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने।
- वर्ष 1991 में पारित यह संशोधन अधिनियम संसद को संवैधानिक प्रावधानों की पूरक विधियों को लागू करने का अधिकार देता है।
- इसके तहत दिल्ली सरकार को राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के निर्दिष्ट मामलों के संबंध में विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गई है।
- दिल्ली सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था तथा भूमि से संबंधित मामलों में कोई विधायी शक्ति प्राप्त नहीं है। यद्यपि यह राज्य सूची के विषय हैं, किंतु यह केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू नहीं होते हैं। दिल्ली विधानसभा द्वारा इन विषयों पर किये गए अतिक्रमण का इस पर गंभीर प्रभाव हो सकता है।
सहकारी संघवाद को मज़बूत करने हेतु प्रयास
- वर्तमान सरकार ने सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिये कई ठोस कदम उठाए हैं। नीति आयोग का निर्माण, जी.एस.टी. परिषद् की स्थापना तथा केंद्रीय योजनाओं का पुनर्गठन, पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करना आदि सरकार के राज्यों को समान भागीदार बनाने व राजकोषीय संघवाद को बढ़ावा देने के स्पष्ट उदाहरण हैं।
- वर्ष 2019 के अपने चुनावी घोषणापत्र में सरकार ने नीति निर्माण एवं शासन के सभी पहलुओं में राज्यों की अधिकतम भागीदारी की बात की, जिसने संघवाद को मज़बूती प्रदान की।
- सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिये विश्वास व आपसी सहयोग की आवश्यकता होती है। इसके लिये भूमिकाओं व उत्तरदायित्वों के विशिष्ट विभाजन, अस्पष्टता को कम करने तथा हितधारकों के मध्य आदेश की स्पष्ट शृंखला को परिभाषित करने की आवश्यकता है।
- जून 2015 में, दिल्ली विधान सभा ने ‘दिल्ली नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी विधेयक पास कर इसे स्वीकृति के लिये राष्ट्रपति के पास भेजा था। इसमें ‘सरकार’ शब्द को ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार’ के रूप में परिभाषित किया था।
- जनवरी 2017 में, उपराज्यपाल ने दिल्ली विधान सभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर यह कहा था कि राष्ट्रपति ने विधेयक को वापस कर दिया है, क्योंकि इसमें ‘सरकार’ शब्द को असंगत रूप से परिभाषित किया गया था।
- इसके पश्चात् दिल्ली विधानसभा ने विधेयक का संशोधित संस्करण पारित किया, जिसमें ‘राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एन.सी.टी. दिल्ली के उपराज्यपाल’ को ‘सरकार’ की परिभाषा के रूप में वर्णित किया गया।
निष्कर्ष
- दिल्ली विधानसभा के नियमों को लोकसभा नियमों के अनुरूप बनाने से अधिक स्पष्टता सुनिश्चित हो सकेगी एवं सहयोग का वातावरण निर्मित होगा। ये संशोधन दिल्ली विधान सभा की शक्तियों को कम या अधिक नहीं करते अपितु ये एन.सी. टी. क्षेत्र में सहयोगी वातावरण के निर्माण महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे।
- यह संशोधन इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में संसद, न्यायपालिका, राजनयिक मिशन तथा राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थान हैं। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी होने के साथ-साथ संप्रभुता का प्रतीक भी है।