(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत को प्रभावित करने वाले करार)
संदर्भ
पिछले कुछ वर्षों में भारत-चीन संबंध अत्यंत तनावपूर्ण रहे हैं, किंतु हाल ही में, भारत के नई दिल्ली स्थित ‘अनंता एस्पेन सेंटर’ एवं चीन के बीजिंग स्थित ‘चीन सुधार मंच’ के मध्य ट्रैक-2 वार्ता संपन्न हुई।
भारत-चीन के मध्य विवाद के बिंदु
- चीन द्वारा ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) को सीमा रेखा नहीं मानना तथा अरुणाचल प्रदेश को अपना क्षेत्र बताना।
- इसके अलावा सिक्किम, भूटान तथा तिब्बत की सीमा पर स्थित डोकलाम क्षेत्र भी विवाद का एक प्रमुख कारण है।
- भारत-चीन सीमा पर स्थित गलवान घाटी क्षेत्र पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों की सेनाओं के मध्य हुई हिंसक झड़प विवाद का एक ज्वलंत मुद्दा रहा।
- एक अन्य मसला पूर्वी लद्दाख स्थित पैंगोंग झील से संबंधित रहा, जहाँ भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना की घुसपैठ को नाकाम किया।
- भू-सामरिक दृष्टिकोण से देखें तो ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बाँध बनाए जाने की योजना को लेकर भी विवाद की स्थिति है।
- चीन द्वारा भारत के ‘अक्साई चिन’ क्षेत्र में अपनी ‘वन वेल्ट-वन रोड परियोजना’ के तहत सड़क निर्माण करना भी विवाद का प्रमुख विषय है। चीन की यह सड़क परियोजना भारत के लिये इसलिये अधिक चिंतनीय है क्योंकि यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को जोड़ेगी।
- भारत-अमेरिकी संबंधों में आती निकटता तथा क्वाड का बढ़ता प्रभाव चीन के लिये चिंता का विषय है। इसके अलावा, वर्ष 2020 में आयोजित हुआ मालावार नौसेना अभ्यास, जिसमें पहली बार भारत-अमेरिका-जापान के साथ आस्ट्रेलिया ने भी भाग लिया, यह भी चीन को चुनौती देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- सीमा-पार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन तथा उसका बचाव भी विवाद का एक प्रमुख कारण है।
- चीन द्वारा ‘परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह’ (Nuclear Suppliers Group – NSG) में भारत के प्रवेश तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर गतिरोध उत्पन्न करना भी विवाद के प्रमुख बिंदु हैं।
विभिन्न कूटनीतिक वार्ताएँ
- प्रथम स्तरीय वार्ता (ट्रैक-1)– इस वार्ता के अंतर्गत दो देशों के राजनीतिक प्रमुख/सैन्य प्रमुख आपसी बातचीत के माध्यम से संबंधों को सुधारने का प्रयास करते हैं।
- द्वितीय स्तरीय वार्ता (ट्रैक-2)– इस वार्ता के अंतर्गत दो देशों के मध्य आपसी संवाद को बनाए रखने के लिये गैर-सरकारी स्तर पर बातचीत को बढ़ावा दिया जाता है।
- तृतीय स्तरीय वार्ता (ट्रैक-3)– इस वार्ता में दो देशों की आम जनता के मध्य संपर्क बढ़ाकर संबंधों को सुधारने का प्रयास किया जाता है।
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भारत-चीन के मध्य सहयोग के बिंदु
- वर्ष 2002 में भारत सरकार ने येलुजंगबु में चीन के साथ एक समझौता किया था। इस पाँच वर्षीय समझौते के तहत चीन को बाढ़ के मौसम के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी के जल-स्तर संबंधी सूचना भारत के साथ साझा करनी थी।
- दिसंबर 2010 में दोनों देशों ने बाढ़ के मौसम के दौरान सतलुज नदी के जल स्तर संबंधी सूचना आपस में साझा करने संबंधी समझौता किया था।
- वर्ष 2013 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री की आधिकारिक चीन दौरे के समय, दिल्ली-बीजिंग, कोलकाता-कुनमिंग तथा बंगलौर-चेंगडु के मध्य ‘सिस्टर सिटी साझेदारी’ स्थापित करने के लिये तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- वर्ष 2018 में चीन के वुहान में दो तथा भारत के मामल्लपुरम में दो ‘अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों’ का आयोजन किया गया था। जो दोनों देशों के मध्य संबंधों को सुधारने की दिशा में किया गया महत्त्वपूर्ण प्रयास था।
- निवर्तमान भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा भी सिस्टर-सिटी और सिस्टर-राज्य संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे, जिसके अंतर्गत कर्नाटक-सिचौन, चेन्नई -छोंगकिंग, हैदराबाद-किंगडाओ तथा औरंगाबाद-दुनहुआंग शहरों को शामिल किया गया है।
- व्यापार के दृष्टिकोण से देखें तो एक वर्ष पूर्व भारत-चीन व्यापार 87.6 बिलियन डॉलर का था तथा ‘चीन’ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना गया था। इस दौरान भारत ने चीन से लगभग 66.7 बिलियन डॉलर की मशीनरी, चिकित्सा उपकरणों व अन्य सामान का आयात किया था, जबकि भारत ने चीन को लगभग 20 बिलियन डॉलर का रिकॉर्ड निर्यात किया था।
भारत द्वारा उठाये गये कदम
- भारत-चीन के मध्य बढ़ते गतिरोध के कारण भारत सरकार द्वारा चीन की विभिन्न मोबाइल एप्लीकेशन को प्रतिबंधित किया गया तथा अप्रत्यक्ष रूप से चीनी सामान के आयात को हतोत्साहित किया।
- नवंबर माह के अंत में चीन का भारत में आयात करीब 59 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें 13 प्रतिशत गिरावट आई है। इससे भारत को अपना व्यापार घाटा कम करने में मदद मिली है। भारत का व्यापार घाटा पिछले वर्ष 6 अरब डॉलर था, जो अब घटकर 40 अरब डॉलर रह गया है। वर्ष 2005 के बाद से पहली बार भारत के व्यापार घाटे में ऐसी गिरावट दर्ज की गई है।
आगे की राह
- भारत को चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को संतुलित करने की आवश्यकता है, जिसमें सेवा क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- दोनों देशों को अपने सीमा विवाद को सुलझाने के लिये सीमा को पुनः परिभाषित करने तथा उसका सटीक सीमांकन करने की आवश्यकता है।
- दोनों देशों को अपने संबंधों को सुधारने तथा मज़बूती प्रदान करने के लिये विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सहयोग बढ़ाने की भी आवश्यकता है।