New
IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

एक उचित पूर्व-विधान परामर्श नीति की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2; संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।)

संदर्भ

  • केंद्र सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किये जाने के लिये 29 विधेयकों (26 नए और तीन लंबित) को सूचीबद्ध किया है। वर्ष 2014 में ‘पूर्व-विधान परामर्श नीति’ को अपनाए जाने के बाद से संसद में पेश किये गए 301 विधेयकों में से 227 विधेयक बिना किसी पूर्व परामर्श के प्रस्तुत किये गए हैं।
  • इसके अतिरिक्त, सुझाव के लिये सार्वजनिक डोमेन में रखे गए 74 में से 40 विधेयकों के मामले में न्यूनतम 30-दिन की समय सीमा का पालन भी नहीं किया गया।

पूर्व-विधान परामर्श नीति

  • पूर्व-विधान परामर्श नीति (PLCP) 2014 के अनुसार, सरकार जब भी किसी कानून (विधेयक , नियम, विनियम इत्यादि) का निर्माण करेगी, तो उसे उस विधेयक का मसौदा संस्करण न्यूनतम 30 दिनों तक सार्वजनिक डोमेन में रखना होगा। इस नीति का पालन करना अनिवार्य बनाया गया था।
  • इसके अनुसार, इस मसौदे के साथ-साथ सरल भाषा में कानून की व्याख्या करने और प्रस्ताव को न्यायोचित ठहराने, इसके वित्तीय निहितार्थ, पर्यावरण एवं मौलिक अधिकारों पर प्रभाव तथा विधेयक की सामाजिक एवं वित्तीय लागतों पर अध्ययन वाला एक नोट भी अपलोड करना होगा। संबंधित विभागों को प्रक्रियाधीन मसौदे पर प्राप्त सभी फीडबैक का सारांश भी अपलोड करना होगा।
  • पी.एल.सी.पी. को संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग (2002) तथा सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् (2013) की व्यापक सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था। इसका उद्देश्य विधि निर्माण की प्रक्रियाओं में सार्वजनिक भागीदारी को संस्थागत बनाना है।

नीति का महत्त्व

  • यह नीति, विधि निर्माण के प्रारंभिक चरणों के दौरान नागरिकों तथा संबंधित हितधारकों को कार्यपालिका में नीति निर्माताओं के साथ बातचीत करने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
  • हाल के दिनों में कृषि कानून, सूचना का अधिकार संशोधन अधिनियम, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम आदि को लेकर विरोध प्रदर्शन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि बड़े पैमाने पर जनता तथा संबंधित हितधारकों के मध्य असंतोष है, क्योंकि इन कानूनों को तैयार करते समय आवश्यक नियमों का पालन नहीं किया गया था।

नीति के कार्यान्वयन की स्थिति

  • 16वीं लोकसभा (मई 2014 से मई 2019) के दौरान संसद में 186 में से 142 विधेयक बिना पूर्व परामर्श के प्रस्तुत किये गए। सुझाव के लिये सार्वजनिक डोमेन में रखे गए 44 विधेयकों में से 24 के मामले में न्यूनतम 30 दिन की समय सीमा का पालन नहीं किया गया।
  • 17वीं लोकसभा (जून 2019 से वर्तमान) के दौरान, पेश किये गए 115 में से 85 विधेयकों पर कोई सुझाव आमंत्रित नहीं किये गए तथा 30 में से 16 के संदर्भ में न्यूनतम समय सीमा का पालन नहीं किया गया।
  • शीतकालीन सत्र में कुल 29 विधेयकों को पेश करने और पारित करने के लिये सूचीबद्ध किया गया है। इनमें से 17 पर कोई पूर्व सुझाव आमंत्रित नहीं किया गया है, जबकि सार्वजनिक डोमेन में रखे गए 12 में से केवल 6 विधेयकों ने 30 दिन की समय सीमा का पालन किया है।

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • हालाँकि, यह आवश्यक है कि सभी सरकारी विभागों द्वारा इस अनुमोदित नीति के आदेशों का पालन किया जाए, किंतु वैधानिक या संवैधानिक अधिकार की अनुपस्थिति ने इसके प्रभाव को कम कर दिया है।
  • नीति के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये कार्यकारी प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देशों, जैसे- संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली तथा कैबिनेट की लिखित पुस्तिका में अनुवर्ती संशोधन की आवश्यकता है।
  • हालाँकि, संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली में अनुवर्ती संशोधन के दौरान संसदीय कार्य मंत्रालय ने कानून एवं न्याय मंत्रालय के अनुरोध को अनदेखा कर दिया, जिसमें मंत्रालय ने नियमावली में पी.एल.सी.पी. प्रावधानों को शामिल करने की बात कही थी। 

निष्कर्ष

मंत्रिमंडल,  लोकसभा तथा राज्यसभा की प्रक्रियाओं में पूर्व-विधायी परामर्श को शामिल करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। इसी प्रकार, मंत्रियों द्वारा विधेयक को पेश करते समय पूर्व-विधान परामर्श के विवरण पर एक परिशिष्ट नोट प्रस्तुत करना आवश्यक बनाया जाना चाहिये। वैधानिक और संवैधानिक प्रतिबद्धता के माध्यम से नागरिकों के पूर्व-विधायी परामर्श में भाग लेने के अधिकार को सशक्त बनाना एक परिवर्तनकारी कदम सिद्ध हो सकता है।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR