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सिविल सेवकों के लिये एक समुचित स्थानांतरण नीति की आवश्यकता : समय की माँग

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 4 : लोक प्रशासन में सिविल सेवाओं की भूमिका, लोक/सिविल सेवा मूल्य और लोक प्रशासन में नैतिकता)

संदर्भ

सुशासन और विकास के लिये बेहतर प्रशासन पूर्व-शर्त है किंतु लोक सेवकों के बार-बार तबादलों ने व्यवस्थित प्रशासन की राह को कठिन बना दिया है। सिविल सेवकों का बार-बार स्थानांतरण बेहतर प्रशासन और विकास में बाधक हैं।

सिविल सेवकों के स्थानांतरण की समस्या

  • कम-कम अंतराल पर सिविल सेवकों के स्थानांतरण की समस्या समस्त शासन व्यवस्था में विद्यमान है, जिसके लिये राजनीतिक, प्रशासनिक और क्षेत्रवाद जैसे कारक ज़िम्मेदार हैं।
  • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के ‘कर्मचारियों से संबंधित ऑनलाइनएकल उपयोगकर्ता प्लेटफ़ॉर्म’ (Single User Platform Related to Employees Online- SUPREMO) के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में सिविल सेवकों की औसत पोस्टिंग अवधि केवल 15 महीने के आस-पास है।
  • बिना कारण और त्वरित स्थानांतरणसे दायित्व के प्रति उनके समर्पण, नवोन्मेष और कुशलता में कमी के साथ-साथ उनका मनोबल भी प्रभावित होता है। इससे बेहतर प्रशासन में बाधा आती है।

जम्मू और कश्मीर का उदाहरण

  • जम्मू और कश्मीर में प्रशासन का उद्देश्य, शांति व विकास सुनिश्चित करना है। समुचित स्थानांतरण नीति के अभाव में इस उद्देश्य के प्राप्ति की संभावना कम ही रहती है। यहाँ अधिकारियों का प्रायः स्थानांतरण कर दिया जाता है। शोपियाँ ज़िले में पिछले लगभग 13 वर्षों में 13 डिप्टी कमिश्नरों का तबादला किया गया है।
  • सामान्यतः अधिकारियों के इस प्रकार कम समयांतराल में स्थानांतरण के लिये अधिकांशत: स्थानीय राजनेताओं के हस्तक्षेप को उत्तरदाई माना जाता है, किंतु वर्तमान में जम्मू और कश्मीर में कोई निर्वाचित विधायक नहीं है। निर्वाचित प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में शासन और विकास में स्थानीय लोगों की भागीदारी सिविल सेवकों के माध्यम से होती है और कम अंतराल पर बारंबार स्थानांतरण से इस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • इस तरह के त्वरित स्थानांतरण के चलते सिविल सेवकों को आधिकारिक भूमिका में ढलने का समय नहीं मिल पाता, जिससे उनकी दक्षता और प्रभावशीलता में कमी आती है।
  • इससे विकास और शासन भी प्रभावित होता है, जो उस क्षेत्र और जनसंख्या के लिये सामूहिक सज़ा से कम नहीं होता। इससे अविश्वास और अलगाव में भी वृद्धि होती है।

प्रभाव

  • स्थानांतरण प्राय: प्रशासनिक पक्षपात व प्रभाववाद (Favoritism) को जन्म देता है, जो सिविल सेवकों के बीच विभाजन पैदा करता है। चूँकि ऐसा प्राय: राजनीतिक प्रभाव के चलते किया जाता है, इससे प्रशासकों की तटस्थता, निष्पक्षता और पहचान भी प्रभावित होती है।
  • साथ ही, बारंबार स्थानांतरण से सिविल सेवकों को अपनी सेवा व कार्य के संबंध में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव भी नहीं हो पाता, जो सुशासन के लिये एक बड़ी समस्या है।
  • बार-बार स्थानांतरण के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि ऐसा करना ‘प्रशासन के हित में’ है। हालाँकि, यह प्रशासन को कमज़ोर करता है।
  • विशेषरूप से राजनीतिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि मेंबड़े पैमाने पर स्थानांतरण के उदाहरण अभी भी सामान्य हैं। राजस्थान और उत्तर प्रदेश इसके हालिया उदाहरण हैं।

प्रशासनिक अनुशंसाएँ

  • सिविल सेवा को अधिक दक्ष और भ्रष्टाचार रहित बनाने के लियेगठित ‘पी. सी. होटा समिति’ ने बारंबार स्थानांतरणों का विरोध किया है। समिति के अनुसार, अधिकारियों के निश्चित कार्यकाल का अभाव सरकारी नीतियों के सुस्त कार्यान्वयन, जवाबदेहिता की कमी और सार्वजनिक धन की बर्बादी के लिये ज़िम्मेदार कारकों में से एक है। साथ ही, कार्यक्रमों के अपर्याप्त पर्यवेक्षण और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार से सार्वजनिक धन की हानि होती है।
  • पाँचवें वेतन आयोग ने अनुशंसा की थी कि एक निश्चित समय से पहले स्थानांतरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये और प्रत्येक पद के लिये एक न्यूनतम कार्यकाल निर्धारित होना चाहिये ताकि प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित हो सके।
  • केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्री ने वर्ष 2016 में राज्यों में अधिकारियों के लगातार स्थानांतरण के संदर्भ में सार्वजनिक रूप से अपनी विवशता को स्वीकार किया था।

स्थानांतरण के पक्ष में तर्क

  • संविधान का अनुच्छेद 310 और 311 निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा सिविल सेवकों को पदच्युत या पदावनत करने संबंधी शक्ति पर अंकुश लगाता है।
  • अधिक समय तक एक ही स्थान पर पोस्टिंग से सिविल सेवकों और स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों के मध्य गठजोड़ विकसित हो जाता है, जिससे पक्षपात, लाल-फीताशाही और भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।

स्थानांतरण नीति में पारदर्शिता की आवश्यकता

  • यदि सिविल सेवक अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के कारण प्रतिकूल परिणामों का सामना करते हैं तो इससे उनकेआदर्शवाद की नींव कमज़ोर होने लगती है और उनके उत्साह एवं प्रेरणा में कमी आती है, जिससे उनकी कार्य क्षमता प्रभावित होती है।
  • इसके अलावा, राजनेताओं द्वारा नौकरशाही को नियंत्रित करने के कारण कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कुशल अधिकारियों की नियुक्ति नहीं हो पाती।
  • साथ ही, कैरियर से जुड़ी चिंताओं के कारण कनिष्ठ नौकरशाहों के कौशल में भी कमी आती है और वे सफलता के लिये राजनेताओं के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करने लगते हैं।

सरकार और न्यायपालिका के प्रयास

  • उच्चतम न्यायालय के ‘टी.एस.आर.सुब्रह्मण्यम और अन्य बनाम भारत संघ’ (2013) मामले में कुछ प्रतिष्ठित सेवानिवृत्त सिविल सेवकों ने केंद्र और राज्य स्तरों पर सिविल सेवकों की सत्यनिष्ठा, निडरता औरस्वतंत्रता के संरक्षण के लिये विभिन्न सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • केंद्र और राज्यों में स्वतंत्र ‘सिविल सेवा बोर्ड’ सिविल सेवकों की पोस्टिंग और स्थानांतरण पर सिफारिशें करेगा। हालाँकि, जिन राज्यों में सिविल सेवा बोर्ड का गठन किया गया है, वहाँ भी मनमाने ढंग से स्थानांतरण और पोस्टिंग सामान्य हैं।

सुझाव

  • राजनीतिक प्राधिकारियों और कानून निर्माताओं द्वारा सिविल सेवकों को दिये जाने वाले निर्देशों और आदेशों की औपचारिक रिकॉर्डिंग भी की जानी चाहिये।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग और पाँचवें वेतन आयोग ने भी केंद्र और राज्यों के स्तर पर समयपूर्व स्थानांतरण के मामलों को विनियमित करने के लिये एक उच्च-संचालित सिविल सेवा बोर्डका समर्थन किया है।
  • केंद्र सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर स्ट्रेंथ का निर्धारण) विनियम,1955 (वर्ष 2010 में संशोधित) की शुरुआत की है, जो राज्यों में सिविल सेवकों के लिये न्यूनतम कार्यकाल सुनिश्चित करता है।
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