मध्यस्थता के लिए परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की आवश्यकता
(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान इत्यादि) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)
संदर्भ
भारत सरकार ने वर्ष 2023 में मध्यस्थता अधिनियम पारित किया था। इसका उद्देश्य व्यापार सुगमता एवं निवेशकों में विश्वास बहाली के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान सहित अनुबंध प्रवर्तन व वाणिज्यिक विवाद समाधान व्यवस्था को पुनर्जीवित तथा मजबूत करना है।भारत के विवाद समाधान ढांचे में मध्यस्थता को और अधिक गहराई से एकीकृत करने और मध्यस्थों की एक नई पीढ़ी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के प्रमुख बिंदु
यह कानून मध्यस्थता को व्यापक मान्यता प्रदान करने और न्यायालय से बाहर विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान की संस्कृति का विकास करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मध्यस्थता सुधार है।
मध्यस्थता अधिनियम, 2023 विवादित पक्षों द्वारा अपनायी जाने वाली मध्यस्थता के लिये विधायी ढांचा तैयार करता है।
यह विशेषकर संस्थागत मध्यस्थता के मामले में महत्त्वपूर्ण है जहां भारत में एक मजबूत एवं प्रभावकारी मध्यस्थता पारितंत्र स्थापित करने के लिये विभिन्न हितधारकों की पहचान की गयी है।
मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधानों में अन्य बातों के साथ-साथ पक्षों द्वारा न्यायालय या न्यायाधिकरण के पास जाने से पूर्व नागरिक या वाणिज्यिक विवाद के मामलों में स्वैच्छिक पूर्व-मुकदमेबाजी (Voluntary Pre-litigation) मध्यस्थता से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
मध्यस्थता की प्रक्रिया अधिकतम 180 दिनों की अवधि में पूरी की जानी चाहिये।
‘मध्यस्थ की नियुक्ति एवं मध्यस्थता के संचालन की प्रक्रिया’, ‘मध्यस्थता सेवा प्रदाताओं व मध्यस्थता संस्थानों के कार्य’, ‘मध्यस्थता से उत्पन्न मध्यस्थता समझौता’ सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के प्रावधानों के अनुसार अंतिम, बाध्यकारी एवं लागू करने योग्य है।
ऑनलाइन मध्यस्थता भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना और अन्य बातों के साथ-साथ मध्यस्थता के संचालन के लिये नियम एवं विनियम बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
मध्यस्थता के लाभ
प्रतिकूल टकराव से ध्यान हटाकर मतभेदों को सुलझाने एवं संबंधों को सुधारने पर केंद्रित।
पक्षकारों के बीच संबंधों को बनाए रखने में सहायक होने के साथ-साथ जीवन सुगमता और अर्थव्यवस्था के विकास में भी लाभकारी।
खुले संवाद के लिए एक लोकतांत्रिक स्थान को बढ़ावा देने से व्यक्तियों को अपनी भावनाओं एवं शिकायतों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति।
इससे आपसी समझ एवं समाधान की बहाली का मार्ग प्रशस्त होता है।
मध्यस्थता के बढ़ते दायरे को प्रदर्शित करने के साथ-साथ कानूनी एवं आर्थिक विवाद समाधान को सुव्यवस्थित करने महत्वपूर्ण भूमिका में वृद्धि।
मध्यस्थता निकाय के रूप में लोक अदालतें सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध एक व्यवहार्य वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र।
यहाँ अदालतों में या मुकदमे-पूर्व चरण में लंबित विवादों/मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटान/समझौता किया जाता है।
विभिन्न प्रशिक्षण विधियाँ उभरते मध्यस्थों को गहन समझ एवं व्यावहारिक अनुभव से लैस करमें में महत्त्वपूर्ण।
ये जटिल विवादों को प्रभावी ढंग से और आत्मविश्वास से संभालने के लिए महत्वपूर्ण है।
मध्यस्थता की चुनौतियां
मध्यस्थों के लिए अनुभव की आवश्यकत : इच्छुक मध्यस्थों के पास अभ्यास के लिए अर्हता प्राप्त करने से पहले 15 वर्ष का पेशेवर अनुभव होना चाहिए। यह आवश्यकता बहुत कठोर हो सकती है और संभावित मध्यस्थों के कार्य को सीमित कर सकती है, जिससे एक व्यवहार्य विवाद-समाधान पद्धति के रूप में मध्यस्थता के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
कानूनी शिक्षा में अलगाव : वर्तमान कानूनी शिक्षा एवं अभ्यास वकालत को प्राथमिकता देते हैं, जो मध्यस्थता में आवश्यक तटस्थता के बिल्कुल विपरीत है। यह एक अलगाव पैदा करता है।
प्रभावी मध्यस्थता के लिए उपाय
विशिष्ट कौशल की आवश्यकता : मध्यस्थता की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए पारंपरिक कानूनी विशेषज्ञता से परे मध्यस्थता के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल को पहचानना आवश्यक है।
नवीन प्रशिक्षण विधियाँ : सह-मध्यस्थता एवं छाया मध्यस्थता जैसी अभिनव प्रशिक्षण विधियों को युवा वकीलों के लिए मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के तहत शामिल किया जाना चाहिए।
सह-मध्यस्थता वास्तविक मध्यस्थता सत्रों में अनुभवी समकक्षों के साथ नए मध्यस्थों से संबद्ध करती है, जिससे सीखने का एक गतिशील माहौल बनता है जहाँ कौशल को सक्रिय रूप से देखा और अभ्यास किया जा सकता है।
व्यावहारिक अनुभव साझाकरण : इस तरह के व्यावहारिक अनुभव साझा किए जाने चाहिए, जिससे उभरते मध्यस्थों में जटिल विवादों को प्रभावी ढंग से निपटाने के लिए आवश्यक सूक्ष्म कौशल एवं आत्मविश्वास विकसित हो सके।
पाठ्यक्रमों में मध्यस्थता का संयोजन : विधि विद्यालय के पाठ्यक्रम में एक संरचित मध्यस्थता प्रशिक्षण मॉड्यूल को शामिल करना महत्वपूर्ण है, ताकि विधि छात्रों को मध्यस्थता प्रशिक्षण से जल्दी परिचित कराने से उनकी रुचि जागृत हो सके।
मध्यस्थता के अन्य विकल्प
मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 और भारतीय मध्यस्थता परिषद : इस अधिनियम में वर्ष 2019 में संशोधन किया गया। यह अन्य बिन्दुओं के साथ-साथ मध्यस्थ संस्थानों की ग्रेडिंग को नियंत्रित करने वाली नीतियां बनाने और मध्यस्थों की मान्यता प्रदान करने वाले पेशेवर संस्थानों को मान्यता देने के उद्देश्य से भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है।
भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र अधिनियम, 2019 : इसके माध्यम से नयी दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र का नाम बदलकर भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र कर दिया गया।