(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1, 2 व 3: जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, सामाजिक सशक्तीकरण; जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गोंकी रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र; समावेशीविकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
- श्रम और रोज़गार मंत्रालय के अनुरोध पर नीति आयोग ने, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों तथा प्रवासी मज़दूरों के लिये एक छत्रक नीति (umbrella policy) का मसौदा तैयार किया है।
- यह मसौदा नीति, प्रवासी श्रमिकों की समाज में भूमिका, उनकी समस्याओं व सुभेद्यता को पहचानने में विभिन्न हितधारकों की भूमिका और ज़िम्मेदारियों की बात करती है।
क्या होनी चाहिये आदर्श नीति की विशेषताएँ?
- श्रमिकों से जुड़ी किसी भी नीति का निर्माण मानवाधिकार, संपत्ति के अधिकार, आर्थिक-सामाजिक विकास जैसे मानकों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की प्रतिबद्धताओं और सतत् विकास लक्ष्यों, विशेषकर श्रम-अधिकारों की सुरक्षा से जुड़े सतत् विकास लक्ष्य (SDG- 8.8), को भी नीति-निर्माण के समय ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- सभी श्रमिकों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान किये जाने को भी नीति में प्रमुखता दी जानी चाहिये।
मसौदा नीति के प्रमुख बिंदु
- नीति में प्रवासी मज़दूरों की संवेदनशील स्थितिसे जुड़े विभिन्न कारणों,जैसे श्रमिकों की उपेक्षा, उनका राजनीतिक और सामाजिक बहिष्कार,अनौपचारिक कार्य-व्यवस्था, उनका शोषण, श्रम अधिकारों की उपेक्षा आदि की बात की गई है, साथ ही, मानव संसाधन से जुड़े मुद्दों जैसे सामाजिक सुरक्षा, उनके कौशल, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास आदि को भी नीति में जगह दी गई है।
- यह मसौदा नीति श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा व उनके मतदान के अधिकारकी बात भी करती है। साथ ही, निर्धन लोगों से जुड़े विकास कार्यों और उनकी आजीविका के लिये भी प्रावधान सुनिश्चित करती है।
- नीति के कार्यान्वयन के लिये श्रम मंत्रालय, नोडल मंत्रालय और समर्पित इकाई के रूप में कार्य करेगा, जो अंतर-मंत्रालय और केंद्र-राज्य समन्वय के लिये केंद्र-बिंदु होगा।
- साथ ही यह नीति, यहनीति अंतर-राज्यीय प्रवास से जुड़े प्रशासनिक प्रयासों व इन प्रयसों के समन्वय के लिये एक विशिष्ट तंत्र की बात भी करती है। कुल मिलाकर,यह मसौदा नीति का यहप्रारूप एक ऐसा ढाँचा तैयार करना चाहता है, जिसके द्वारा प्रवासी श्रमिक और उनका परिवार उस राज्य (जहाँ वे रोज़गार के लिये आए हैं) के निवासियों को मिलने वाली सभी सुविधाएँ प्राप्त कर सकें।
किनमुद्दों पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है?
श्रमिकों के प्रवास के कारण :
- वर्ष 1991 में राष्ट्रीय ग्रामीण श्रम आयोग (National Commissionof Rural Labor) ने अपनी रिपोर्ट में पलायन के लिये ‘असमान विकास’ को उत्तरदाई ठहराया था।
- ध्यातव्य है कि पिछले तीन दशकों में असमान विकास की वजह से असमानताएँ लगातार बढ़ी हैं और इस दिशा में नीतिगत सुधार के प्रयास नहीं किये गए हैं।
- बिना नीतिगत प्रयासों के मज़दूरों के प्रवास और पलायन को नहीं रोका जा सकता लेकिन रिपोर्ट में इस तरह के सुधारों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया है।
- रिपोर्ट में शहरी स्थानीय सरकारों द्वारा प्रवासियों कीउपेक्षा को भी रेखांकित किया गया है लेकिन विकास कार्यों के कार्यान्वयन में होने वाली रणनीतिक उपेक्षा के मूल कारणों पर प्रकाश डालने में यह रिपोर्ट विफल रही है।
सामाजिकसुरक्षाकी उपेक्षा
- सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक मानवाधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है।साथ ही, भारत के संविधान में इसे उचित स्थान भी दिया गया है, लेकिन ग्रामीण श्रम आयोग की यह रिपोर्ट प्रवासियों और अनौपचारिक श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा की उपेक्षा करती प्रतीत होती है।
- असंगठित क्षेत्र के उद्यमों के लिये राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Enterprises in the Unorganised Sector - NCEUS) ने वर्ष 2006 में स्पष्ट किया था कि देश में आर्थिक व प्रशासनिक रूप से सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा का न्यूनतम स्तर प्रदान करना संभव है।
- साथ ही, आयोगनेसार्वभौमिक पंजीकरण प्रणाली और स्मार्ट सामाजिक सुरक्षा कार्ड जारी करने की भी सिफारिश की थी, लेकिन दुर्भाग्य सेइसकी सिफारिशें अभी भी एक मृत पत्र बनी हुई हैं।
निष्कर्ष
- संक्षेप में, मसौदा नीति ढाँचागत समस्याओं की पहचान तो करती है, किंतु समस्याओं की जड़ में निहित नीतिगत विकृतियों को दूर करने में विफल प्रतीत होती है।
- ऐसी आशा है कि इस नीतिगत मसौदे से जुड़े सभी संभावित सुधारों की बात की जाएगी, जिससे भविष्य में प्रवासी श्रमिकों को अपने अधिकारों के लिये भटकना न पड़े।