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भारत में शिपिंग सेक्टर के विकास की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : बुनियादी ढाँचा- ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि)

संदर्भ

विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने शिपिंग की क्षमता को महसूस किया है। उदाहरण के लिये समुद्रों तथा समुद्री मार्गों पर नियंत्रण चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक प्रमुख घटक है। चीन हिंद महासागर क्षेत्र और बंगाल की खाड़ी पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है।

चीन की भौगोलिक स्थिति

  • अत्यधिक जलवायु विविधता और तटों की कमी- भारत भौगोलिक रूप से चीन से अधिक लाभ की स्थिति में है। चीन की जलवायु में अत्यधिक विविधता है। चीन के पूर्व में ही तटीय क्षेत्र स्थित है, फिर भी, विश्व नौवहन परिषद के अनुसार, विश्व के शीर्ष 10 कंटेनर बंदरगाहों में से सात चीन में हैं। इस प्रकार, चीन की संवृद्धि में मज़बूत समुद्री व्यापार और बुनियादी ढाँचे सहायक है।
  • भारत में शिपिंग- 16 वीं शताब्दी से पहले भारत और चीन दोनों जी.डी.पी. के स्तर पर समान प्रतिस्पर्धी थे। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि भारत का विश्व में समुद्री वर्चस्व रहा है। हालाँकि, पिछले 70 वर्षों में शिपिंग में भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को गहरा धक्का पहुँचा है।

विदेशी शिपिंग यात्री पोत की सहायता

  • दूरदर्शिता की कमी- स्वतंत्र भारत में नए बंदरगाहों की स्थापना से लेकर ईरान में वर्तमान चाबहार पोर्ट की स्थापना तक शिपिंग के मोर्चे पर भारत की लगभग सभी गतिविधियाँ और कार्रवाइयाँ किसी न किसी को काउंटर करने का परिणाम रही हैं। इसका कारण प्रशासन में दूरदर्शिता की कमी है।
  • अल्पकालिक समाधान- प्रायद्वीपीय भारत में स्थित लगभग सभी शिपिंग अवसंरचना केवल विदेशी शिपिंग यात्री पोतों की मदद करते हैं। इस प्रकार, भारत ने केवल अल्पकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • संतुलित बुनियादी ढाँचा- अतीत में औपनिवेशिक व्यापारियों के पास मज़बूत व्यापारिक बेड़े थे परंतु उन्होंने अपने व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये सड़क और रेल कनेक्टिविटी के साथ समुद्र और तटों पर संतुलित बुनियादी ढाँचे का विकास किया गया था। साथ ही, वहन क्षमता की आवश्यकता को पूरा करने के लिये तट-आधारित बुनियादी ढाँचे का विकास किया गया था।
  • पोत स्वामित्त्व का आभाव- भारत ने अभी भी अपनी वहन क्षमता को अनुकूलित नहीं किया है। विदेशी मुद्रा का अधिकांश हिस्सा प्रतिदिन के लेन-देन और संचालन लागत के रूप में चला जाता है। ऐसी स्थिति को देखते हुए भारत के समुद्री व्यापारी समुदाय स्वयं जहाज़ के मालिक या कंटेनर लाइनर बनने के बजाय विदेशी जहाज़ मालिकों या कंटेनर लाइनरों के एजेंट बनना पसंद किया हैं। यह एक ऐतिहासिक गलती होने के साथ-साथ देश के लिये एक बड़ी आर्थिक विफलता है।
  • इसी कारण देश में वहन क्षमता और बहु-स्तरीय कार्गो विकास के बीच व्यापक अंतर है। तटीय शिपिंग के नाम पर बने कानूनों से केवल विदेशी कंटेनर ले जाने वाली कंपनियों को फायदा होता है न कि भारतीय जहाज़ मालिकों को।

क्षेत्रीय कार्गो-विशिष्ट बंदरगाह की आवश्यकता

  • कार्गो-विशिष्ट बंदरगाह- प्रायद्वीपीय भारत में क्षेत्रीय कार्गो-विशिष्ट बंदरगाह बनाने के बजाय नौकरशाही ने बहु कार्गो-हैंडलिंग पोर्ट में कई बार एक जैसे संरचनात्मक विकास की अनुमति दी है। परिणामस्वरूप भारतीय बंदरगाह समान कार्गो/माल के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  • ट्रांसशिपमेंट हब का विकास- यदि भारत अपने प्रमुख बंदरगाहों को कार्गो-विशिष्ट बनाने के साथ-साथ वैश्विक मानकों के अनुरूप आधारभूत संरचना का विकास करता हैं और उन्हें हिंटरलैंड (ग्रामीण क्षेत्रों) के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्गों से जोड़ता है तो वे स्वचालित रूप से ट्रांसशिपमेंट हब बन जाएंगे।
  • लघु पोत तटीय संचालन- भारत को क्षेत्रीय ट्रांसशिपमेंट केंद्रों के लिये योगदान करने वाले बंदरगाहों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसके लिये लघु पोत तटीय संचालन में सुधार अनिवार्य है।
  • साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला लॉजिस्टिक्स में मज़बूत और लागत प्रभावी होने के लिये प्रतिस्पर्धी मूल्य पर वैश्विक बाजारों में गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की आवश्यकता है और यह तभी संभव है जब तट के साथ-साथ समुद्र में संतुलित बुनियादी ढाँचे का विकास किया जाए।

उपाय

  • सागरमाला- देश के लॉजिस्टिक क्षेत्र के प्रदर्शन में वृद्धि के लिये सागरमाला कार्यक्रम एक आशा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण, विश्व स्तरीय लॉजिस्टिक्स संस्थानों का विकास और तटीय सामुदायिक विकास है। साथ ही, इससे घरेलू वहन क्षमता में भी विकास होगा।
  • मानसिक बदलाव- भारत में छोटे पोत स्वामित्त्व समुदाय भी घरेलू पंजीकरण के बजाय अपने जहाजों के लिये विदेशों में पंजीकरण कराना पसंद करते हैं। इसमें बदलाव के लिये अधिकारियों और समुद्री कारोबारी समुदाय की मानसिकता में बदलाव की ज़रुरत है।
  • पोत स्वामित्त्व उद्यमशीलता- मेक इन इंडिया के नारों और बहु-आयामी कार्गो विकास के साथ भारत को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये जहाज़ों की आवश्यकता है। साथ ही, छोटी समुद्री और नदी यात्राओं के साथ-साथ पोत स्वामित्त्व उद्यमशीलता को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • जहाज़रानी महानिदेशालय के कार्य में सुधार- मंत्रालय द्वारा जहाज़ निर्माण और स्वामित्व को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। नेशनल शिपिंग बोर्ड (NSB) एक स्वतंत्र सलाहकार निकाय है, जिसको जहाज़रानी महानिदेशालय (DGS) के कामकाज पर प्रश्न पूछने का अधिकार होना चाहिये। जहाज़रानी महानिदेशालय देश में वहन क्षमता को बढ़ावा देने के लिये जिम्मेदार है।
  • कौशल उपयोग- तटीय समुदायों को शामिल करते हुए उनके नौकायन कौशल का उपयोग करने की आवश्यकता है। यह पहल तट और अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से तैयार माल की ढुलाई को प्रोत्साहित करेगा।
  • मानव संसाधनों का उचित उपयोग- अपने व्यापार के लिये भारतीय कार्गो पर निर्भर अधिकतर वैश्विक शिपिंग कंपनियों के वाणिज्यिक प्रमुख या क्रू मेंबर भारतीय है और इन रचनात्मक मानव संसाधनों का देश के लिये उपयोग न कर पाना यहाँ मौजूद सर्वाधिक युवा जनसँख्या के महत्त्व को कम कर देता है।
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