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भारतीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के गठन की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास, सतत् विकास, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहलें आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र सेवाओं के विकास व प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी ने भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र की बदहाल स्थिति को उजागर कर दिया है। इस दौरान नैदानिक ​​​​प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले ‘केयर स्टाफ’ को संक्रमण का अत्यधिक खतरा है। ऐसे में, ‘ब्रिटिश राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ पर आधारित ‘भारतीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ के गठन पर विचार करने की आवश्यकता है।

वर्तमान परिदृश्य

  • राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को संकट से उबारने के लिये पुनर्गठित किये जाने की आवश्यकता है। हालाँकि केंद्र और राज्य सरकारें इस क्षेत्र में आपसी समन्वय स्थापित कर रही हैं। उदाहरणस्वरूप, रेलवे द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति हेतु विशेष ट्रेनों का संचालन, सेना को आपूर्ति श्रृंखला में शामिल किया जाना आदि।
  • इसके अतिरिक्त, कर्नाटक सरकार ने निजी अस्पतालों में 75% बेड कोरोना रोगियों के लिये आरक्षित किये हैं। निजी अस्पतालों को इसका भुगतान एक राजकीय योजना के तहत किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लेते हुए ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने और सार्वभौमिक टीकाकरण के लिये एक राष्ट्रीय योजना बनाने का सुझाव दिया है।
  • इसके बावजूद, राजनीतिज्ञों द्वारा अदालती आदेश की अनदेखी की गई तथा निजी अस्पतालों द्वारा सरकारी आदेशों की अवहेलना की गई। ऐसे में, कोविड-19 को नियंत्रित करना और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया।

स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ

  • वर्तमान में भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में विभिन्न समस्याएँ विद्यमान हैं। इनमें स्वास्थ्य क्षेत्र में सीमित निवेश, अपर्याप्त स्वास्थ्य अवसंरचना, जनसंख्या के अनुपात में स्वास्थ्य केंद्रों व स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी इत्यादि प्रमुख हैं। ऐसे में, भारत के लगभग 1.4 बिलियन लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना गंभीर चुनौती है।
  • 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तक़रीबन 1,511 लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ‘1,000 लोगों पर एक डॉक्टर’ के मानक से बहुत अधिक है। इसके अलावा, प्रशिक्षित नर्स-आबादी अनुपात 1:670 है, जो कि डब्ल्यू.एच.ओ. के मानक 1:300 के दोगुने से भी अधिक है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2018 में भारत में कुल पंजीकृत डॉक्टर 11.54 लाख, नर्स 29.66 लाख तथा फार्मासिस्ट 11.25 लाख थे। भारत में गोवा में डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:380 है, जबकि नागालैंड में 1:17,060 है। नर्सों के मामले में केरल में यह 1:111 हैं, जबकि झारखंड में 1:4,019 है। बिहार, झारखंड, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों में नर्सों की अत्यधिक कमी है।
  • इसके अतिरिक्त, देशभर के मेडिकल कॉलेजों में सीटों का वितरण भी असमान है। एम.बी.बी.एस. की कुल सीटों में से दो-तिहाई सीटें सिर्फ सात राज्यों, यथा– तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में ही केंद्रित हैं।
  • अस्पतालों में बेड्स की संख्या भी जनसंख्या की तुलना में साम्य नहीं रखती है। भारतीय अस्पतालों में कुल बेड्स का लगभग 60 प्रतिशत निजी क्षेत्र के पास है।
  • भारत में प्रति 1,000 की आबादी पर 1.4 बेड उपलब्ध हैं, जबकि चीन में यह संख्या 4 से अधिक है। श्रीलंका, यू.के. और अमेरिका में प्रति 1,000 की आबादी पर बेड्स की संख्या 3 है। थाईलैंड तथा ब्राज़ील में यह संख्या 2 से अधिक है।
  • इसके अलावा, भारत स्वास्थ्य क्षेत्र पर जी.डी.पी. के 1 प्रतिशत से थोड़ा अधिक ही खर्च करता है, जो वित्तीय वर्ष 2021-22 में लगभग दोगुना हो सकता है।
  • भारत में ‘चिकित्सा व्यय’ व्यक्तिगत ऋण का प्रमुख करणों में से एक है। ‘लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका’ के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण करीब 1.7 मिलियन मौतें हुईं। वर्तमान में, भारत में वायु प्रदूषण की वार्षिक अनुमानित व्यावसायिक लागत $95 बिलियन है, जो भारत की जी.डी.पी. का लगभग 3% है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा : एक बेहतर विकल्प

  • कोविड-19 से उपजी परिस्थितियों के आलोक में ‘भारतीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ स्थापित करने पर विचार किया जा सकता है। हालाँकि यह कोई नया विचार नहीं है। वर्ष 1946 में, सिविल सेवक ‘सर जोसेफ भोरे’ ने तत्कालीन औपनिवेशिक सरकार को ‘ब्रिटिश राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ पर आधारित एक भारतीय ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ (NHS) स्थापित करने का सुझाव दिया था। इसमें सभी स्तरों पर निवारक और उपचारात्मक दवाओं को एकीकृत किये जाने की सिफारिश की गई थी।
  • यह मसौदा वर्ष 1930 के दशक की दयनीय स्वास्थ्य स्थितियों पर तैयार किया गया था। इसका उद्देश्य ‘सार्वभौमिक नि:शुल्क सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा’ स्थापित करना था।
  • ब्रिटेन में ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ पूर्णतः सरकार द्वारा वित्त पोषित है। इसके तहत बजट के माध्यम से चिकित्सकों को भुगतान करने की व्यवस्था भी की जाती है।
  • यू.के. के कुछ क्षेत्रों में चिकित्सक द्वारा पर्ची पर उल्लिखित दवाओं व चिकित्सीय उपकरणों के संदर्भ में रोगियों को एक निश्चित अनुपात में ही भुगतान करना होता है, जबकि अस्पताल में सभी इलाज और दवाएँ नि:शुल्क प्रदान की जाती हैं। इन सेवाओं के सुचारू संचालन के लिये ब्रिटिश सरकार जनता पर कर लगाती है।
  • लगभग 1.1 मिलियन कर्मचारियों के साथ एन.एच.एस. यूनाइटेड किंगडम में सबसे बड़ा नियोक्ता है। इसका वर्तमान बजट जी.डी.पी. का लगभग 7.6% है।
  • भारत वर्तमान में, आजादी के बाद संभवतः सबसे गंभीर स्वास्थ्य संकट के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में, किसी भावी स्वास्थ्य संकट की परिस्थिति से निपटने के लिये भोरे द्वारा परिकल्पित भारतीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के गठन पर विचार किया जाना चाहिये।

केंद्रीय बजट 2021-22 में स्वास्थ्य सेवाएँ 

  • आत्मनिर्भर भारत के 6 प्रमुख स्तंभों में ‘स्वास्थ्य और देखभाल’ भी एक प्रमुख स्तंभ है।
  • पिछले वित्त वर्ष के 94,452 करोड़ रुपए की अपेक्षा इस वित्त वर्ष का स्वास्थ्य बजट 2,23,846 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 137% अधिक है।
  • स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये महत्वपूर्ण 3 क्षेत्रों– रोकथाम, उपचार और देखभाल पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • 6 वर्षों में 64,180 करोड़ रुपए के व्यय के साथ केंद्र प्रायोजित ‘प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना’ का शुभारंभ किया जाएगा।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में एक क्षेत्रीय अनुसंधान प्लेटफॉर्म, एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान, 9 बायो सुरक्षा स्तर-III प्रयोगशालाओं  और 4 क्षेत्रीय राष्ट्रीय विषाणु संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव।
  • कोविड-19 वैक्सीन के लिये 35,000 करोड़ रुपए का प्रस्ताव।
  • देशभर के 112 आकांक्षी जिलों में पोषण बढ़ाने के लिये ‘मिशन पोषण 2.0’ का आरंभ।
  • नर्सिंग व्यवसाय में पारदर्शिता और प्राशसनिक सुधार करने के उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवायफरी आयोग विधेयक’ लाने का प्रस्ताव।
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