(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास, राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 3: आपदा और आपदा प्रबंधन)
संदर्भ
ज़मीनी स्तर पर किये गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद उत्तरी बिहार में अभी भी बाढ़ की समस्या बनी हुई है।
पृष्ठभूमि
- बिहार में ‘आपदा प्रबंधन’ को मूर्त स्वरुप प्रदान करने का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिया जाता है।
- बिहार के मुख्यमंत्री (2005-2010) के रूप में अपने प्रथम कार्यकाल में, उन्होंने बाँधों और जलाशयों, डिटेंशन बेसिनों, तटबंधों तथा चैनल सुधार जैसे बुनियादी ढाँचे के साथ ‘संरचनात्मक परिवर्तन’ किये।
- बाद के वर्षों में बाढ़भूमि प्रबंधन, बाढ़ पूर्वानुमान एवं चेतावनी, बाढ़ बीमा तथा वित्तीय क्षतिपूर्ति जैसे ‘गैर-संरचनात्मक उपायों’ को भी अपनाया गया।
वर्तमान स्थिति
- कोविड-19 महामारी के कारण पहले से ही मानवीय संकट उत्पन्न हुआ है, ऐसे में अतिरिक्त वर्षा और बाढ़ ने नागरिकों के समक्ष एक और संकट उत्पन्न कर दिया है।
- दुर्भाग्य से यह पुराना मुद्दा उत्तर बिहार के पाँच करोड़ से अधिक लोगों तथा तराई क्षेत्र को और भी कमज़ोर बना रहा है। लेकिन नीति निर्माताओं द्वारा इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
- इस वर्ष मई के आरंभ में बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग ने दो दस्तावेज़ जारी किये, जिसका शीर्षक था: ‘बाढ़ से पूर्व की तैयारी और बाढ़ नियंत्रण आदेश, 2021’.
- इसका उद्देश्य स्थानीय प्रशासन को तैयारियों और राहत सहायता प्रणाली में मदद करना है।
- हालाँकि, बिहार में बाढ़ नियंत्रण तब तक संभव नहीं है, जब तक भारत और नेपाल के मध्य एक द्विपक्षीय तंत्र के माध्यम से एक समर्पित ‘अंतर-सरकारी पैनल’ का गठन नहीं किया जाता है, जो इस साझा संकट का अध्ययन, आकलन और समाधान प्रस्तुत कर सके।
बाढ़ और बिहार : ऐतिहासिक तथ्य
- बिहार को भारत के सबसे अधिक ‘बाढ़ संभावित राज्य’ के रूप में जाना जाता है।
- बाढ़ प्रबंधन सुधार सहायता केंद्र (FMISC), जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार का अनुमान है कि उत्तर बिहार की 76 प्रतिशत आबादी बाढ़ के आवर्ती जोखिम का सामना कर रही है।
- उत्तरी बिहार का एक बड़ा भू-भाग नेपाल से संलग्न है, जिसमें कई नदियों प्रवाहित होती हैं, जिनका जलग्रहण ‘स्टीप और भूगर्भीय’ रूप से ‘नवजात हिमालय’ (Nascent Himalayas) में होता है।
- नेपाल से उद्गमित; कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला बालन, महानंदा तथा अधवारा जैसी नदियाँ ‘हाई डिस्चार्ज और तलछट भार’ द्वारा नेपाल के तराई और बिहार के मैदानी क्षेत्रों में प्रत्येक वर्ष सामाजिक-आर्थिक नुकसान पहुँचाती हैं।
- एफ.एम.आई.एस.सी. के अनुसार इन नदियों के जलग्रहण क्षेत्र का लगभग 65 प्रतिशत नेपाल/तिब्बत तथा केवल 35 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र बिहार में स्थित है।
- काले समिति (1997) के अनुसार उत्तरी बिहार के मैदानी क्षेत्र में विगत 30 वर्षों के दौरान सबसे अधिक बाढ़ क्षेत्र दर्ज किया गया है।
दोनों देशों के मध्य सहयोग
- हाल के वर्षों में बाढ़ और जल प्रबंधन के मामलों पर नेपाल द्वारा दिखाई गई उदासीनता के विपरीत 1950 के दशक में शुरू हुए तटबंधों के लिये भारत और नेपाल के मध्य सहयोग प्रशंसनीय है।
- जब वर्ष 1955 में कोसी तटबंधों पर काम शुरू हुआ था, तो सेवानिवृत्त नेपाली सैनिकों के एक समूह ने स्वेच्छा से भारतीय स्वयंसेवकों का सहयोग किया था।
- हालाँकि, यह प्रगतिशील सरकार-नागरिक इंटरफ़ेस खुद को बनाए नहीं रख सका और दोनों देशों के मध्य जल सहयोग कम हो गया।
- परिणामस्वरूप, जलविद्युत उत्पादन के लिये जल संसाधनों के उपयोग को छोड़कर अन्य सहयोग नहीं हो सका।
जल प्रबंधन की पुनर्रचना
- उत्तरी बिहार के लोगों के लिये बाढ़ उनके जीवन का हिस्सा है। वस्तुतः तटबंधों के निर्माण और धाराओं के परिवर्तन करने जैसे ढाँचागत हस्तक्षेपों ने धीमी जल प्रवाह के पारंपरिक प्रतिरूप को बिगाड़ दिया है।
- पूर्व में कृत्रिम अवरोधों के बिना जल का प्रवाह क्षेत्र कृषि में सहायता करता था।
- कोसी संधि (1954), जिसके तहत नेपाल में तटबंधों की स्थापना और रखरखाव का प्रावधान था, भविष्योन्मुखी नहीं थी, क्योंकि यह तटबंधों के रखरखाव और नदियों को अपना मार्ग बदलने के लिये पर्याप्त प्रावधान नहीं करती थी।
- पत्थरों, रेत, गाद और तलछट के जमाव के कारण नदी तल ऊपर उठ गया है और यह लगातार अपना मार्ग बदल रहा है, जिससे अकल्पनीय नुकसान हो रहा है।
- 18वीं और 20वीं सदी के मध्य में, कोसी का मार्ग 100 किलोमीटर से अधिक पश्चिम की ओर स्थानांतरित हो गया, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मानव विस्थापन हुआ।
- भारत के साथ जल प्रबंधन से संबंधित मामलों पर नेपाल के अड़ियल रवैये के बावजूद, नेपाल को अपनी नदियों से पानी छोड़ने के लिये दोषी ठहराना उचित नहीं होगा, क्योंकि भारत अतीत में शुरू की गई सभी परियोजनाओं से लाभ उठा रहा है।
- स्पष्टतः जल सहयोग को एक ‘कॉमन कॉज़’ के रूप में फिर से स्थापित करने और 1950 के दशक से संयुक्त कार्रवाई के लिये प्रेरणा लेने की आवश्यकता है।
नीतियों में परिवर्तन की आवश्यकता
- वर्ष 1937 की शुरुआत में बाढ़ नियंत्रण के पारंपरिक तरीके से तटबंध आधारित ब्रिटिश प्रणाली में के बारे में निर्णय लिया गया था।
- नेपाल के बाराहक्षेत्र में बाढ़ के पानी को नियंत्रित करने के लिये एक उच्च बाँध की योजना बनाई गई, जिसे अंततः वर्ष 1953 में विनाशकारी कोसी बाढ़ के बाद मूर्त रूप दिया गया।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1953 में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और प्रभावित लोगों के सुरक्षित पुनर्वास के लिये एक दूरदर्शी कोसी योजना की घोषणा की थी।
- मुख्यधारा के राजनीतिक और नीतिगत प्रतिष्ठानों द्वारा इस वार्षिक आपदा और आजीविका पर इसके विनाशकारी प्रभावों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
भारत और नेपाल को प्रत्येक वर्ष बाढ़ के संकट को समाप्त करने के लिये संवाद करने की आवश्यकता है। साथ ही, भारत और नेपाल के मध्य जल प्रबंधन सहयोग की दीर्घकालिक रणनीति के साथ इस मामले पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।