संदर्भ
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मलेन (UNFSS), 2021 संपन्न हुआ। इसमें ‘सतत विकास लक्ष्य 2030’ की प्राप्ति हेतु विभिन्न देश की सरकारों से उनकी खाद्य-प्रणाली में सुधार के महत्त्व को रेखांकित किया गया।
भारतीय खाद्य प्रणाली
- 1960 के दशक में भारत की हरित क्रांति न केवल चावल और गेहूँ की उन्नत उच्च उपज देने वाली किस्मों के विकास के माध्यम से हासिल की गई थी, बल्कि नीतिगत उपायों और संस्थागत संरचना के विकास के माध्यम से भी हासिल की गई थी।
- इसमें राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर एक विशाल कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रणाली भी शामिल थी।
- 1970 के दशक में विश्व बैंक की सहायता से शुरू की गई प्रशिक्षण एवं यात्रा प्रणाली ने स्थानीय स्तर पर कृषि विस्तार विशेषज्ञों का एक संवर्ग स्थापित किया था।
- वर्तमान में भारतीय खाद्य प्रणाली आत्मनिर्भर है तथा गरीबी रेखा से नीचे (Below Poverty Line : BPL) जीवनयापन करने वाले परिवारों को बाज़ार मूल्य से कम कीमत पर खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
- वर्ष 2013 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया, जिसका उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये लोगों को वहनीय मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता के खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराते हुए उन्हें मानव जीवन-चक्र दृष्टिकोण में खाद्य और पौषणिक सुरक्षा प्रदान करना है।
- इस अधिनियम में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) के अंतर्गत राजसहायता प्राप्त खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी के कवरेज का प्रावधान है ।
- इस अधिनियम के तहत पात्र व्यक्ति चावल, गेहूँ और मोटे अनाज क्रमश: 3, 2 और 1 रूपए प्रति किग्रा. के राजसहायता प्राप्त मूल्यों पर 5 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति व्यक्ति प्रति माह प्राप्त करने का हकदार है।
चुनौतियाँ
- स्वास्थ्य एवं पोषण से संबंधित
- यद्यपि भारत अब वृहद् अर्थों में खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर है, फिर भी देश में विश्व के लगभग एक चौथाई खाद्य असुरक्षित लोग निवास करते हैं।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार भारत में वृहद् और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के कारण कुपोषण व्यापक है। लगभग 18.7% महिलाएँ और 16.2% पुरुषों की बुनियादी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त भोजन तक पहुँच नहीं है। साथ ही, पाँच वर्ष से कम उम्र के 32% से अधिक बच्चे कम वजन के हैं।
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2021 में भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर है, जो यहाँ व्याप्त भुखमरी तथा खाद्यान की अपर्याप्त पहुँच को दर्शाता है।
- कृषि एवं पर्यावरण से संबंधित
- वर्तमान में भारत पोषण सुरक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ भूमि उपयोग में परिवर्तन के साथ घटती भूमि उत्पादकता, भूमि क्षरण और पारिस्थितिक सेवाओं के नुकसान की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है। इसलिये, गरीबी और कुपोषण के बारे में व्यापक चिंताओं के संदर्भ में दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता है।
- भारत की आधे से अधिक कामकाजी आबादी की आजीविका कृषि और संबद्ध गतिविधियों से जुड़ी हुई है। इन आश्रित समुदायों के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति पर खाद्य प्रणाली तंत्र का सीधा प्रभाव पड़ता है।
आगे की राह
उपयुक्त कृषि प्रणाली
- खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने वाली ‘कृषि’ दृष्टिकोण को ‘स्थिरता’ और ‘बेहतर पोषण’ के लिये ‘खाद्य प्रणालियों’ को बढ़ावा देना चाहिये। साथ ही, एक क्षेत्र के रूप में कृषि को अपने सामाजिक-आर्थिक और भौतिक संदर्भ में खाद्य उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण और खपत में शामिल गतिविधियों और हितधारकों की श्रेणी को अपनाना चाहिये।
- कृषि विकास के लिये कृषि-जलवायु दृष्टिकोण (Agro-Climatic Approach) स्थिरता और बेहतर पोषण के लिये महत्त्वपूर्ण है। कृषि उत्पादन प्रणालियों की स्थानिक विविधता का उपयोग करते हुए स्थिरता, संसाधन दक्षता और चक्रीय सिद्धांतों को अपनाने से हरित क्रांति की सीमाओं और अनपेक्षित परिणामों में सुधार किया जा सकता है।
- कृषि-जलवायु क्षेत्रों की सावधानीपूर्वक समीक्षा से छोटे किसानों की खेती एक लाभदायक व्यवसाय बन सकती है, जिससे कृषि दक्षता और सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ स्थिरता भी बढ़ सकती है।
- किसानों की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापार वृद्धि का समर्थन करने और पर्यावरण में सुधार के लिये किसानों को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
नीतिगत उपाय
- खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत और छोटा करना, क्षेत्रीय खाद्य प्रणालियों को मज़बूत करना, खाद्य प्रसंस्करण, कृषि लचीलापन और जलवायु-परिवर्तन की स्थिति में स्थिरता के साथ अनुसंधान और निवेश को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय और राज्य नीतिगत प्राथमिकताओं, जैसे कि किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देने के लिये कृषि मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय नीति दिशानिर्देश, 2012’ और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वर्ष 2019 की ‘राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति’ को एक साथ जोड़ा जाना चाहिये।