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भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कानून की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, अधिकारों से संबंधित मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2:
शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध)

संदर्भ 

हाल ही में एक कंपनी के कर्मचारी की कथित तौर पर कार्य के दबाव के कारण मौत के बाद कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। ए.डी.पी. रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के अनुसार, कार्यस्थल पर तनाव 49% भारतीय श्रमिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है जोकि भारतीय संदर्भ में भी ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ (Right To Disconnect) की आवश्यकता को रेखांकित करती है। 

क्या है राइट टू डिस्कनेक्ट 

  • ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ कार्यक्षेत्र में एक उभरता हुआ दृष्टिकोण है जो कर्मचारियों को उनके नियमित कार्य घंटों (कार्यावधि) के बाद कार्य से संबंधित संचार के साथ-साथ कार्यों से मुक्त रहने की अनुमति देता है। यह कार्यस्थल एवं घर के बीच की सीमाओं को पुनः परिभाषित करने के लिए एक आवश्यक उपकरण है। 
  • इसमें कर्मचारियों को अपने सामान्य समय के अतिरिक्त कार्य-संबंधी संचार का उत्तर न देना, अपने व्यक्तिगत समय का अपने लिए प्रयोग करना, तनाव एवं थकावट को कम करना जैसे अधिकार शामिल हैं 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लगभग 15% कामकाजी वयस्क चिंता, अवसाद एवं अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित हैं जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं। 

अन्य देशों में राइट टू डिस्कनेक्ट की स्थिति

  • वर्ष 2017 में फ्रांस राइट टू डिस्कनेक्ट को लागू करने वाला पहला देश था। फ्रांस के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार किसी कर्मचारी पर कार्य संबधी फाइलें और काम करने के उपकरण ले जाने की कोई बाध्यता नहीं है। साथ ही, कार्यावधि के बाद अपने फोन पर उपलब्ध न होने को कदाचार नहीं माना जा सकता है।
  • पुर्तगाल में राइट टू डिस्कनेक्ट संबंधी कानून नियोक्ताओं के लिए आपात स्थिति को छोड़कर कार्यावधि के बाद कर्मचारियों से संपर्क करने को अवैध बनाता है।
  • स्पेन में व्यक्तिगत डाटा संरक्षण और डिजिटल अधिकारों की गारंटी पर ऑर्गेनिक लॉ के अनुसार कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए डिवाइस बंद करने का अधिकार होगा कि मानक कार्यावधि के बाद उनके अवकाश एवं उनकी व्यक्तिगत व पारिवारिक गोपनीयता का भी सम्मान किया जाए। इसका उद्देश्य एक बेहतर कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देना है। 
  • आयरलैंड ने भी कर्मचारियों के लिए राइट टू डिस्कनेक्ट के अधिकार को मान्यता दी है।
  • ऑस्ट्रेलिया ने ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ नामक एक नया विनियमन लागू किया है जो श्रमिकों को उनके नियमित कार्यावधि के बाद नौकरी से संबंधित संचार से अलग रहने की अनुमति देता है।

कार्य की बेहतर स्थिति के संदर्भ में भारत की स्थिति 

  • भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ को मान्यता देने वाले विशिष्ट कानून नहीं हैं। हालांकि, वर्ष 2018 में भारत में भी राइट टू डिस्कनेक्ट नाम से एक विधेयक प्रस्तुत किया गया था। इसका उद्देश्य कर्मचारियों को कार्यावधि के बाद कार्य से संबंधित कॉल एवं ईमेल का उत्तर न देने का अधिकार प्रदान करना था किंतु यह विधेयक पारित नहीं हो पाया।  
  • हालाँकि, भारत के संविधान में राज्य नीति निर्देशक सिद्धांत के प्रावधानों और विभिन्न न्यायिक घोषणाओं ने अनुकूल व स्वस्थ वातावरण में काम करने के अधिकार की बात की है। 
    • संविधान के अनुच्छेद 38 के अनुसार, राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा। 
    • अनुच्छेद 39(ई) राज्य को अपने श्रमिकों की शक्ति एवं स्वास्थ्य को सुरक्षित करने की दिशा में अपनी नीति-निर्देशित करने का निर्देश देता है। 
    • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इस निर्णय ने कार्यस्थल पर सम्मान के अधिकार को मान्यता दी और यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए कि महिलाओं व लैंगिक समानता के लिए एक सुरक्षित कार्य वातावरण हो। 

भारत में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ की आवश्यकता और लाभ  

  • इनडीड के एक नए सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय कार्यस्थलों में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ नीतियों को लागू करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। लगभग 79% भारतीय नियोक्ता अब इस कदम का समर्थन करते हैं। साथ ही वे ‘हमेशा काम पर’ (Always on) रहने की संस्कृति के कारण बढ़ते तनाव के स्तर एवं कर्मचारियों की थकान को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया सहित लगभग 13 से अधिक यूरोपियन और लैटिन अमेरिकी देशों में इस प्रकार के कानून लागू हैं। भारत में भी एक बेहतर कार्यसंस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ जैसे कानूनों की आवश्यकता है जिसके निम्नलिखित लाभ होंगे :  
    • बर्नआउट कम करना : कर्मचारियों को उनके नियमित समय के अलावा कार्य-संबंधी संचार से अलग रहने की अनुमति से तनाव एवं थकान को कम करने में मदद मिलती है जो उसकी व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन दोनों के लिए ही बेहतर है।   
    • उत्पादकता में वृद्धि : विशेषज्ञों के अनुसार जिन कर्मचारियों को आराम करने एवं ऊर्जा प्राप्त करने का समय मिलता है उनमें कार्य अवधि के दौरान अधिक ऊर्जावान व उत्पादक होने की संभावना होती है। 
    • बेहतर कार्य-जीवन संतुलन : कर्मचारियों को अपने काम के अतिरिक्त बचे हुए समय में निजी जीवन के लिए पर्याप्त समय मिलता है जिससे वे अपने परिवार को भी समय दे पाते हैं जो एक बेहतर कार्य-जीवन संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
    • मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य : आमतौर पर जब कर्मचारी ‘हमेशा काम पर’ नहीं रहते हैं तो उन्हें कुछ समय के लिए निश्चिंतता के साथ आराम करने का समय मिलता है, जिससे उनमें कार्य का दबाव और तनाव का स्तर कम होता है तथा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। साथी ही, शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम आदि का भी समय मिल पता हैं। 
    • कर्मचारी संतुष्टि एवं प्रतिधारण : राइट टू डिस्कनेक्ट से कर्मचारियों में कंपनी के प्रति भी सकारात्मक संतुष्टि का भाव होता है। चूंकि कंपनी द्वारा उनके निजी समय का सम्मान करने का प्रभाव उनके काम व कंपनी के लाभ पर भी होता है।
    • मानवीय मूल्यों का संरक्षण : इसे मनुष्य को मशीन नहीं, बल्कि मनुष्य बने रहने में सहायता मिलती है क्योंकि इससे मनुष्य की आराम व संतुलन की आवश्यकता का सम्मान होता है। 

राइट टू डिस्कनेक्ट के समक्ष चुनौतियाँ 

  • कार्यान्वयन में चुनौतियाँ : स्वास्थ्य सेवा या आपातकालीन सेवाओं जैसे कुछ क्षेत्रों में डिस्कनेक्ट के अधिकार को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके अलावा अलग-अलग टाइम जोन में काम करने वाली कंपनियों के लिए भी इस प्रकार के कानून चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
  • लचीलेपन में कमी की संभावना: इस अधिकार के लागू होने के साथ कुछ कंपनियाँ अधिक कठोर नियम लागू कर सकती हैं जिससे कर्मचारियों में कार्य का दबाव भी अधिक हो सकता है। इसके अलावा, कर्मचारी अपने कार्यावधि के बाद मिलने वाले अवसरों से भी वंचित रह सकते हैं।
  • कानूनी एवं अनुपालन संबंधी मुद्दे : इस प्रकार के कानून का नकारात्मक प्रभाव अंतरराष्ट्रीय कंपनियों पर पड सकता है क्योंकि अलग-अलग देशों व क्षेत्रों में एक समान कोड लागू करना मुश्किल होगा। इससे कर्मचारी नए कानून का दुरुपयोग भी कर सकते हैं और समग्र उत्पादकता में कमी आ सकती है।
  • त्वरित निर्णय में बाधा : भारत जैसे देश में यह कानून प्रौद्योगिकी एवं वित्त जैसे तीव्र गति वाले उद्योगों में संचालन को बाधित कर सकता है जहां त्वरित निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।
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