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भ्रामक विज्ञापनों पर मजबूत निगरानी की आवश्यकता

संदर्भ 

  • आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली पतंजलि कंपनी को भ्रामक विज्ञापनों के लिए सर्वोच्च न्यायालय की नाराजगी का सामना करना पड़ा है। इसके अतिरिक्त वाणिज्य मंत्रालय ने भी 10 अप्रैल, 2024 के एक आदेश में कहा है कि ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने पोर्टल पर सभी पेय पदार्थों को ‘स्वास्थ्यवर्द्धक पेय’ की श्रेणी में नहीं रखना चाहिए। यह आदेश राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (NCPCR) की एक वर्ष तक चली जांच के बाद आया है। NCPCR ने मोंडलीज के 78 वर्ष पुराने बॉर्नविटा ब्रांड को लेकर यह जांच की थी। 
  • खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने भी 2 अप्रैल, 2024 को ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों से अनुरोध किया कि वे डेयरी, अनाज या माल्ट आधारित पेय पदार्थ को ‘स्वास्थ्यवर्द्धक पेय’ या ‘ऊर्जावर्द्धक पेय’ के रूप में वर्गीकृत न करें। ऐसा वर्गीकरण ग्राहकों को भ्रमित करता है।

भ्रामक विज्ञापन से तात्पर्य

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अनुसार, भ्रामक विज्ञापन को ऐसे विज्ञापन के रूप में परिभाषित किया जाता है जो किसी उत्पाद या सेवा का गलत वर्णन करता है, झूठी गारंटी देता है, उसकी प्रकृति या गुणवत्ता के बारे में उपभोक्ताओं को गुमराह करने की संभावना रखता है, अनुचित व्यापार प्रथा का प्रतिनिधित्व करता है या जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी छुपाता है।
  • विज्ञापन को वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रचार का माध्यम माना जाता है किंतु जब विज्ञापनकर्ता जानबूझ कर मिथ्या प्रचार करते हैं और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं, तब यह आपत्तिजनक हो जाता है। 
  • जब कोई उत्पादक अथवा विज्ञापनकर्ता किसी उत्पाद के बारे में कोई दावा करता है, तो उसको उसे सिद्ध भी करना चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है तो इसे भ्रामक विज्ञापन माना जाएगा तथा देश के विभिन्न कानूनों के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

भ्रामक विज्ञापनों के दुष्प्रभाव

  • उपभोक्ताओं के सूचना, सुरक्षा एवं चयन के मौलिक अधिकारों का हनन 
  • भ्रामक विज्ञापनों के प्रभाव में कई बार स्वास्थ्य व जीवन के लिए घातक वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोग
  • शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति की संभावना 
  • विज्ञापनों के दृश्यों का बच्चों के मन व मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव 
    • विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले हिंसक व उत्तेजक दृश्यों की नक़ल कई बार बच्चों द्वारा किया जाने लगता है।

भ्रामक विज्ञापनों पर निगरानी की आवश्यकता 

  • कई ब्रांड्स अपने उत्पादों के पैकेट पर ‘स्वास्थ्यवर्द्धक उत्पाद’ लिख देते हैं, जबकि NCPCR ने पाया है कि खाद्य संरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत ‘स्वास्थ्यवर्द्धक पेय’ की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है।
  • भारत में बच्चों को लक्षित करने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थों के विज्ञापनों को लेकर ज्यादा चिंता है। देसी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियां रणनीति के तहत तथ्यों से छेड़छाड़ करती हैं और अपने उत्पादों को स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद की लेबलिंग के साथ बाजार में बेचती है। 
    • उदाहरण के लिए; एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ने बॉर्नविटा में अधिक मात्रा में चीनी (शर्करा) होने और बच्चों पर उसके प्रभाव की बात कही थी। इसकी शिकायत NCPCR के पास भी पहुंची। उसने कंपनी को निर्देश दिया कि बॉर्नविटा के भ्रामक विज्ञापन, पैकेजिंग व लेबल हटाए जाएं। कंपनी ने स्पष्टीकरण में कहा कि बॉर्नविटा में चीनी की मात्रा दैनिक उपयोग की तय मात्रा से काफी कम है। कंपनी के दावों के उलट NCPCR ने कहा कि बॉर्नविटा ने ‘माल्टॉडेक्स्ट्रिन’ एवं ‘लिक्विड ग्लूकोज’ जैसे लेबल का इस्तेमाल करके चीनी की सीमा को कम करके दिखाया है। FSSAI के लेबलिंग एवं डिस्प्ले नियमन, 2020 के अनुसार इन्हें भी चीनी के लेबल के अंतर्गत ही दिखाया जाना चाहिए। इसके बाद बोर्नविटा को अपने उत्पाद में चीनी के स्तर को कम करना पड़ा।
    • इसी प्रकार का अन्य उदहारण पतंजलि कंपनी का है। पतंजलि ने 'एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां’ नामक शीर्षक से समाचार-पत्र में अपना विज्ञापन दिया था, जिसके कारण कंपनी को सर्वोच्च न्यायालय में माफ़ी मांगनी पड़ी है। 
  • साथ ही, वैकल्पिक दवाओं एवं पैकेट बंद भोजन का बाजार (खासकर बच्चों पर केंद्रित) तेजी से बढ़ रहा है इसलिए उपभोक्ता कल्याण के लिए अधिक मजबूत निगरानी संस्था की जरूरत है।

निगरानी से संबंधित संस्थाएँ 

  • ASCI : भारतीय विज्ञापन मानक परिषद् (ASCI ) भारत में विज्ञापन उद्योग का एक स्वैच्छिक स्व-नियामक संगठन है। वर्ष 1985 में स्थापित ASCI कंपनी अधिनियम की धारा 25 के तहत एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में पंजीकृत है।
  • FSSAI : FSSAI स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत (खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत) स्थापित एक वैधानिक निकाय है। यह खाद्य सुरक्षा के विनियमन व पर्यवेक्षण के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा एवं प्रसार के लिए जिम्मेदार है।
  • NCPCR : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की स्थापना मार्च 2007 में संसद के एक अधिनियम (दिसंबर 2005) के तहत बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी। आयोग का जनादेश यह सुनिश्चित करना है कि सभी कानून, नीतियां, कार्यक्रम एवं प्रशासनिक प्रणालियाँ भारत के संविधान के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय में उल्लिखित बाल अधिकारों की दृष्टि के अनुरूप हैं। एक बच्चे को 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।

ASCI द्वारा तैयार विज्ञापन नियमावली के मूलभूत सिद्धांत 

  • विज्ञापन के कथन में सत्य एवं ईमानदारी का समावेश करके भ्रामक प्रचार से बचना
  • विज्ञापन से समाज की शालीनता की मान्यताओं को ठेस न पहुँचने को सुनिश्चित करना
  • मानव मात्र को अमान्य और समाज व व्यक्तियों के हितों के विपरीत विज्ञापनों से बचना
  • विज्ञापन में व्यापार के प्रतिस्पर्धात्मक पक्ष का पालन सुनिश्चित करना 
    • इससे उपभोक्ताओं के चुनाव विकल्प एवं विवेक क्षमता में बाधा नहीं उत्पन्न होगी तथा इस प्रतिस्पर्धा से उत्पादकों एवं ग्राहकों दोनों को लाभ होगा।

सरकार द्वारा बनाए गए प्रमुख कानून 

  • खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खाद्य अपमिश्रण उन्मूलन अधिनियम, 1955 
  • केबल, टेलीविजन, नेटवर्क नियंत्रण अधिनियम, 1995 
  • वस्तु बिक्री अधिनियम, 1930

आगे की राह

  • केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विज्ञापन एवं संबंधित दावे सच्चे, स्पष्ट एवं सार्थक हो न कि भ्रामक हो तथा उपभोक्ताओं को प्रदान की गई जानकारी को समझने में मददगार हों।
  • बड़ी कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों के दावों को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया जाना चाहिए।
  • उपभोक्ताओं को विज्ञापनों के तथ्यों के विषय में पूरी जानकारी के बाद ही विज्ञापित वस्तु या सेवा का प्रयोग करना चाहिए।
  • झूठे विज्ञापनों के प्रति अन्य उपभोक्ताओं, उपभोक्ता समूहों तथा गैर सरकारी संस्थाओं का ध्यान आकर्षित कराना चाहिए ताकि उसके खिलाफ आवाज उठायी जा सके।
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