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सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों के तकनीकी उन्नयन की आवश्यकता 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय, बुनियादी ढाँचा आदि)

संदर्भ

केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री के अनुसार, एम.एस.एम.ई. (MSME) क्षेत्र के विकास के लिए फोकस क्षेत्रों के रूप में छह स्तंभों की पहचान की गई है। 4.3 करोड़ से अधिक (उद्यम) पंजीकृत एम.एस.एम.ई. देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें से अधिकांश उद्यम क्लस्टर में स्थित हैं।

एम.एस.एम.ई. के लिए छह स्तंभ 

  • औपचारिकीकरण एवं ऋण तक पहुंच
  • बाजार तक पहुंच में वृद्धि और ई-कॉमर्स को अपनाना
  • आधुनिक तकनीक के माध्यम से उच्च उत्पादकता
  • सेवा क्षेत्र में कौशल स्तर में वृद्धि एवं डिजिटलीकरण
  • खादी, ग्राम एवं कॉयर उद्योग को वैश्विक बनाने के लिए इनका समर्थन
  • उद्यम निर्माण के माध्यम से महिलाओं एवं कारीगरों का सशक्तिकरण

भारतीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों की स्थिति

  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम निर्यात ने पिछले छह वर्षों में 8.5% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दर्ज की है। यह वित्त वर्ष 2024 में 778 बिलियन डॉलर हो गया है।
  • मौजूदा स्थिति में एम.एस.एम.ई. को बढ़ावा देने का महत्व अधिक बढ़ गया है क्योंकि यह क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और रोजगार सृजन का एक प्रमुख स्रोत है। 
  • एम.एस.एम.ई. क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30% का योगदान, विनिर्माण उत्पादन में 45% योगदान और भारत की 11 करोड़ आबादी को रोजगार प्रदान करता है। 

भारत में एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ 

  • तकनीकी परिवर्तन : तेजी से हो रही तकनीकी प्रगति और डिजिटल व्यवधान एम.एस.एम.ई. के लिए चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं। सीमित तकनीकी क्षमता एवं निम्न डिजिटल साक्षरता वाले एम.एस.एम.ई. के लिए यह अधिक चिंताजनक है। 
  • अधिक प्रतिस्पर्धा : एम.एस.एम.ई. को बड़ी कंपनियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं अधिक वित्तीय संसाधनों व बाजार पहुंच वाले वैश्विक हितधारकों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। 
  • आधारभूत संरचना : अपर्याप्त बुनियादी ढांचा एम.एस.एम.ई. की दक्षता एवं उत्पादकता को बाधित करता है। बुनियादी ढांचे की समस्याओं में अविश्वसनीय बिजली आपूर्ति, खराब परिवहन नेटवर्क और प्रौद्योगिकी व दूरसंचार तक सीमित पहुंच शामिल है। बुनियादी ढांचे की कमी बाजार पहुंच आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और व्यापार विस्तार के अवसरों को सीमित करती है।
  • निम्न उत्पादकता : एम.एस.एम.ई. को प्राय: पुरानी तकनीक, अकुशल प्रक्रियाओं एवं अपर्याप्त कौशल प्रशिक्षण जैसे कारकों के कारण निम्न उत्पादकता व दक्षता से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

सरकार के द्वारा एम.एस.एम.ई. क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयास

  • ECLGS की शुरुआत : आपातकालीन ऋण सुविधा गारंटी योजना (Emergency Credit Line Guarantee Scheme : ECLGS) ने 130 लाख से अधिक एम.एस.एम.ई. को अतिरिक्त ऋण उपलब्ध करवाया है।
  • RAMP कार्यक्रम : 6,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ एम.एस.एम.ई. निष्पादन को बढ़ाने व त्वरित करने (Raising and Accelerating MSME Performance : RAMP) का कार्यक्रम शुरू किया गया है।
  • आत्मनिर्भर भारत कोष : एम.एस.एम.ई. आत्मनिर्भर भारत कोष के माध्यम से 50,000 करोड़ रुपए का इक्विटी निवेश किया गया गया है।
  • पोर्टल को आपस में जोड़ना : उद्यम, ई-श्रम, नेशनल कैरियर सर्विस (NCS) और आत्मनिर्भर स्किल्ड एम्प्लॉयी एम्प्लॉयर मैपिंग (Aatamanirbhar Skilled Employee-Employer Mapping : ASEEM) पोर्टल को आपस में जोड़ा गया है। इससे ये लाइव, ऑर्गेनिक डाटाबेस वाले पोर्टल के रूप में काम करेंगे, जो क्रेडिट सुविधा, कौशल एवं भर्ती से संबंधित सेवाएं प्रदान करते हैं।
  • UAP का शुभारंभ : अनौपचारिक सूक्ष्म उद्यमों (IME) को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए और औपचारिक दायरे में लाने के लिए उद्यम सहायता प्लेटफार्म (UAP) का शुभारंभ किया गया है।

एम.एस.एम.ई. क्षेत्र की प्रगति के लिए सुझाव

  • एम.एस.एम.ई. को बढ़ावा देने के लिए विकास को बढ़ावा देने, मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने, रोजगार सृजन, व्यापार को आसान बनाने तथा विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाना होगा।
  • सतत आर्थिक विकास के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में विशेष रूप से औद्योगिक समूहों में को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • भारत ने वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया है जिसके लिए 14.4% की सी.ए.जी.आर. (CAGR) की आवश्यकता है। इसके लिए निर्यातकों और एम.एस.एम.ई. क्षेत्र को सक्षम और सहायक पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करके समर्थन देने की आवश्यकता है। 
  • मौजूदा स्थिति में इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए एम.एस.एम.ई. की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की समयसीमा को 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने की आवश्यकता है। इसी के साथ विनिर्माण क्षेत्र में सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए ऋण गारंटी योजना को भी नया रूप दिया जाना चाहिए।
  • ब्याज समतुल्यीकरण योजना से निर्यात को अत्यधिक बढ़ावा मिला है, अत: इस योजना को पांच वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। 
  • एम.एस.एम.ई. के प्रभुत्व वाले कपड़ा एवं परिधान क्षेत्र के लिए निर्यात उत्पादों पर शुल्कों व करों में छूट तथा राज्य एवं केंद्रीय करों व शुल्कों में छूट योजनाओं को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।
  • एम.एस.एम.ई. जॉबवर्क के भुगतान की समयसीमा को वर्तमान सीमा 45 दिनों से बढ़ाकर 120 दिन किया जाना चाहिए, क्योंकि आर.बी.आई. ने निर्यात आय की प्राप्ति के लिए 180 दिनों की समयसीमा की अनुमति दी है।
  • कपड़ा एवं परिधान क्षेत्र के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत निवेश की सीमा को घटाया जाना चाहिए। इससे एम.एस.एम.ई. निर्यातकों को अपनी तकनीक को उन्नत करने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी।

एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में हरित परिवर्तन, अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन

  • जलवायु परिवर्तन ने एम.एस.एम.ई. को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। एम.एस.एम.ई. को हरित परिवर्तन का प्रयास करने और हरित संसाधनों के साथ विकास को बढ़ावा देने के लिए अधिक सॉफ्ट फंड उपलब्ध कराए जाने चाहिए। 
  • निर्यात को बनाए रखने के लिए अनुसंधान, विकास एवं नवाचार महत्वपूर्ण हैं। वैश्विक स्तर पर अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित किया जाता है। 38 में से 35 OECD (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) देश अनुसंधान एवं विकास व्यय पर या तो निम्न कर लगाते हैं या अधिक कटौती प्रदान करते हैं।
  • बुनियादी ढांचे के निर्माण, प्रौद्योगिकी उन्नयन और जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए धन उपलब्ध कराने वाली योजनाओं से एम.एस.एम.ई. क्षेत्र अर्थव्यवस्था में और भी अधिक योगदान करने में सक्षम होगा।

एम.एस.एम.ई. क्षेत्र के तकनीकी उन्नयन से लाभ 

  • उत्पादकता में वृद्धि और आत्मनिर्भरता में सहायक 
  • उत्पादों का वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में सहायक होना
  • उत्पादों का वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप होना 
  • उत्पादों में गतिशीलता एवं वैश्विक परिवर्तन के लिए त्वरित अनुकूलन 
  • हरित तकनीक के विकास पर बल 
  • निर्यात भागीदारी में वृद्धि
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