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सीमा पार दिवालियापन पर अंकुश लगाने की आवश्यकता

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)

संदर्भ 

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सीमा पार दिवालियापन (Cross-border Insolvency) कानूनों को अपनाना महत्वपूर्ण है। किसी देश के कानूनी पारिस्थितिकी तंत्र में सीमा पार व्यवस्थाओं का एकीकरण मजबूत दिवालियापन कानूनों की पहचान माना जाता है। 
  • कानूनी निश्चितता प्रदान करने के अलावा, ये सीमा पार संचालन वाली व्यापारिक संस्थाओं के स्वास्थ्य में भी सुधार करते हैं, जिससे निवेश एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लाभ होता है। इसलिए, बहुपक्षीय या द्विपक्षीय मार्गों में वैश्विक व्यापार के साथ दिवालियापन कानूनों के महत्व पर दृष्टिकोण को एकीकृत करने की आवश्यकता है।

क्या है सीमापार दिवालियापन

  • जब किसी दिवालिया देनदार के पास एक से अधिक क्षेत्राधिकारों में अर्थात् कई अलग-अलग देशों में ऋण या देनदार होते हैं, तो उस स्थिति को 'सीमा पार दिवालियापन' या 'अंतर्राष्ट्रीय दिवालियापन' कहा जा सकता है।
  • यह एक कानूनी ढांचा है जो कई देशों में संपत्ति या लेनदारों के साथ वित्तीय रूप से संकटग्रस्त देनदारों को विनयमित करता है। 

सीमापार दिवालियापन कानूनों की आवश्यकता 

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सीमा पार दिवालियापन कानूनों को अपनाना महत्वपूर्ण है। 
  • किसी देश के कानूनी पारिस्थितिकी तंत्र में सीमा पार व्यवस्थाओं का एकीकरण मजबूत दिवालियापन कानूनों की पहचान माना जाता है। 
  • ये कानूनी निश्चितता प्रदान करके सीमा पार संचालन वाली व्यापारिक संस्थाओं की स्थिति में भी सुधार करते हैं जिससे निवेश एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लाभ होता है।
  • वर्तमान में बढ़ते मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) एवं व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के व्यापारिक महत्त्व के बावजूद उनमें विस्तृत सीमा-पार दिवालियापन प्रावधानों का अभाव है। 
    • उनके वर्तमान स्वरूप में अधिकांश में केवल सामान्य विवाद या व्यापार उपाय खंड होते हैं। 
  • सीमा-पार दिवालियापन कानून अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण घटक हैं और सुसंगत कानून को अपनाने तक प्रासंगिक खंडों को विभिन्न समझौतों में एकीकृत करने की आवश्यकता है।

मॉडल कानून का विकास 

  • सीमा पार दिवालियापन से निपटने के लिए सामंजस्यपूर्ण कानूनों को लागू करने पर चर्चा निरंतर होती रही है। 
  • 1990 के दशक के उत्तरार्ध से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग (UN Commission on International Trade Law : UNCITRAL) ने चार स्तंभों (पहुँच, मान्यता, सहयोग एवं समन्वय) पर विकसित अपने मॉडल कानून को राष्ट्रों में लागू करने का प्रयास किया है। 
    • दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (IBC), 2016 का मसौदा तैयार करते समय दिवालियापन कानून सुधार समिति द्वारा भारत सहित कई देशों में इसके संभावित लाभों को मान्यता दी गई है।
  • मॉडल कानून को अपनाने की प्रगति धीमी रही है। UNCITRAL के अनुसार, केवल 60 देशों ने इसे अपनाया है। 
  • इसकी गैर-बाध्यकारी प्रकृति के कारण इसके कार्यान्वयन में भिन्नताएँ रही हैं जिसमें राष्ट्रों ने पारस्परिकता/सार्वजनिक नीति अपवाद खंडों को शामिल करके इसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार ढाला है।

भारत की स्थिति 

  • सीमा पार दिवालियापन विषय पर कई समितियों की सिफारिशों के बावजूद भारत ने अभी तक मॉडल कानून नहीं अपनाया है। 
  • हालिया केंद्रीय बजट प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों/न्यायिक बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के माध्यम से IBC की दक्षता में सुधार करने के समर्थन में था। 
    • किंतु इसमें भी सीमा पार दिवालियापन के मुद्दे पर कोई स्पष्ट प्रावधान शामिल नहीं किया गया था। 
  • वर्तमान में भारत सीमित प्रावधानों के तहत सीमा पार दिवालियापन के लिए केस-दर-केस आधार पर द्विपक्षीय समझौतों की अनुमति देता है। हालाँकि, इन्हें अस्थायी एवं अपर्याप्त माना जाता है।
  • वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, भारत ने 54 से अधिक देशों के साथ ऐसे समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। 
  • चार नए FTA (2021-2024) पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत कई देशों के साथ इसी तरह के समझौतों पर काम कर रहा है। 
  • FTA या अन्य व्यापारिक समझौतों में सीमा पार प्रावधानों का एकीकरण किया जा सकता है। 
    • अपने वर्तमान स्वरूप में ये समझौते विवादों, IPR और यहाँ तक कि स्थिरता को भी शामिल करते हैं किंतु ज़्यादातर दिवालियापन को अनदेखा करते हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन द्वारा भी व्यापार के भविष्य को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा करते समय सीमा पार दिवालियापन पर स्पष्ट चर्चा नहीं की जाती है। 

आगे की राह 

  • सीमा पार आयामों के बिना FTA अधूरे हैं इसलिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए मजबूत दिवालियापन कानूनों के महत्व को और अधिक गहराई से समझने की आवश्यकता है। 
  • FTA और अन्य समझौतों को व्यापारिक संस्थाओं के दिवालियापन के परिणामों को कम करने के लिए उचित तंत्रों को ध्यान में रखना चाहिए। 
  • यह देशों द्वारा हस्ताक्षरित FTA की संरचना को और मजबूत करेगा। सीमा पार के परिणामों के साथ दिवालियापन की वास्तविकता को देखते हुए जितनी जल्दी इन मुद्दों को संबोधित किया जाता है वैश्विक व्यापार को उतना ही अधिक लाभ होगा।
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