(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्व की सामयिक घटनाएँ तथा आर्थिक विकास से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग, पशुपालन संबंधी अर्थशास्त्र तथा नई प्रोद्योगिकी के विकास से संबंधित विषय)
संदर्भ
- हाल ही में, अमूल ने उपभोक्ताओं के लिये दुग्ध उत्पादों की कीमतों में 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी की है।
- यह वृद्धि मौजूदा कीमतों के लगभग 4 प्रतिशत के बराबर है और ‘समग्र उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)’ में वृद्धि से काफी नीचे है, जो पहले से ही आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित सीमा (6 प्रतिशत पर) को पार कर चुका है।
- हालाँकि, डेयरी किसानों के लिये दुग्ध की कीमतों में यह वृद्धि उनके चारा और अन्य लागतों में वृद्धि के अनुरूप नहीं है और उन्हें लगता है कि उनका मार्जिन कम होता जा रहा है।
डेयरी उद्योग से संबंधित प्रमुख तथ्य
- डेयरी उद्योग भारत में सबसे बड़े कृषि-व्यवसायों में से एक है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- दुग्ध, मूल्य की दृष्टि से सबसे बड़ी कृषि-वस्तु है, जो धान, गेहूँ और गन्ने के संयुक्त योग से अधिक है।
- भारत 2020-21 में लगभग 208 मिलियन टन के अनुमानित उत्पादन के साथ दुनिया में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, जो अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी अमेरिका से काफी ऊपर है, जिसका दुग्ध उत्पादन लगभग 100 मिलियन टन है।
- भारत के डेयरी क्षेत्र में छोटे धारकों का वर्चस्व है, जिनका औसत आकार 4-5 पशुओं का है।
- विदित है कि दुग्ध के लिये कोई ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)’ तय नहीं है। यह कंपनी और किसानों के बीच एक अनुबंध की तरह कार्य करता है। इस प्रकार, दुग्ध कीमतें काफी हद तक ‘माँग और आपूर्ति’ की समग्र शक्तियों द्वारा निर्धारित होती हैं।
- उत्पादन की बढ़ती लागत, आपूर्ति पक्ष के माध्यम से प्रवेश करती है, लेकिन माँग पक्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
- परिणामस्वरूप, पिछले 20 वर्षों से डेयरी उद्योग में समग्र विकास 4-5 प्रतिशत प्रति वर्ष के बीच रहा है। हाल ही में, यह बढ़कर 6 प्रतिशत तक हो गया है। इसकी तुलना में, इसी अवधि में अनाज लगभग 1.6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है।
डेयरी उद्योग में निज़ीकरण की शुरुआत
वर्ष 1970, का दशक
- इस दशक में शुरू हुए ‘ऑपरेशन फ्लड’ से इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव आया है।
- वर्गीज कुरियन द्वारा संचालित ‘सहकारी मॉडल’ के संस्थागत नवाचार ने इस क्षेत्र की संरचना में बदलाव किया।
- हालाँकि, पाँच दशकों के बाद भी, सहकारी समितियों ने कुल दुग्ध उत्पादन का केवल 10 प्रतिशत ही संसाधित किया।
- वर्ष 1991 में डेयरी क्षेत्र में सुधारों के तहत आंशिक रूप से निजी निवेश को अनुमति प्रदान की गई।
- लेकिन, वर्ष 2002-03 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने डेयरी क्षेत्र को पूर्ण रूप से निज़ी निवेश की अनुमति दी और डेयरी क्षेत्र को पूरी तरह से लाइसेंस मुक्त कर दिया गया।
निज़ीकरण के माध्यम से डेयरी क्षेत्र में बदलाव
- तमिलनाडु में स्थित ‘हेटसन एग्रो प्रोडक्ट लिमिटेड ‘(HAP)’ भारत में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी है। जिसमें लगभग 20 प्रसंस्करण संयंत्रों के साथ 32 लाख लीटर प्रति दिन (LLPD) की खरीद है। ने वर्ष 1995 में में प्रवेश किया।
- वर्तमान में ‘पराग मिल्क फूड्स लिमिटेड (महाराष्ट्र)’, ‘प्रभात डेयरी (महाराष्ट्र)’, ‘हेरिटेज फूड्स लिमिटेड (हैदराबाद)’, ‘डोडला डेयरी लिमिटेड (हैदराबाद)’, ‘आनंदा (उत्तर प्रदेश)’ और ‘नेस्ले इंडिया लिमिटेड’ जैसी कई अन्य निजी डेयरी कंपनियाँ का 10-20 एल.एल.पी.डी. दुग्ध खरीद सकती हैं।
- कई स्टार्ट-अप ‘डेयरी उद्यमी’ दुग्ध की ‘फार्म-टू-होम’ डिलीवरी कर रहे हैं।
- कंट्री डिलाइट एक ऐसी कंपनी है, जो उपभोक्ताओं के दरवाजे पर ताजा दूध पहुँचाती है और घर पर ‘गुणवत्ता जाँच किट’ भी प्रदान करती है।
- ‘स्टेलैप्स टेक्नोलॉजी’ डेयरी कंपनियों के लिये दुग्ध आपूर्ति शृंखला में ट्रेसबिलिटी को सक्षम करके भारत में डेयरी आपूर्ति शृंखला को डिजिटलाइज़ करने की दिशा में काम कर रही है।
- यद्यपि, ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)’ और सेंसर-आधारित ‘SmartMoo क्लाउड’ के माध्यम से मवेशियों के स्वास्थ्य, दुग्ध उत्पादन, दुग्ध खरीद, दुग्ध परीक्षण और कोल्ड चेन प्रबंधन को डिजिटलाइज़ किया गया है।
चारे के उत्पादन के लिये नवीन तकनीक
- ‘इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के ‘विज़न 2050’ का अनुमान है कि भारत में वर्ष 2030 तक ‘हरे चारे की कमी’ लगभग 30 प्रतिशत हो जाएगी।
- ‘हाइड्रोग्रीन्स’ नामक एक कृषि-तकनीक स्टार्टअप ने ‘कंबाला’ नामक मशीन को विकसित किया है, जो ‘हाइड्रोपोनिक तकनीक’ पर कार्य करती है। इसके माध्यम से हरे चारे की कमी को दूर किया जा सकता है।
- यह किसानों को नियंत्रित वातावरण में और सीमित जल संसाधनों के साथ के बिना मृदा वर्ष भर ताजा हरा चारा उगाने में मदद करती है।
- हरे चारे की कमी को किफायती तरीके से दूर करने के लिये देश भर में 130 से अधिक इकाइयों को स्थापित किया गया है।
आगे की राह
- ‘यौन वीर्य तकनीक (Sexed semen technology)’, प्राकृतिक शुक्राणु मिश्रण से X और Y गुणसूत्रों को छाँटकर संतान के लिंग को पूर्व निर्धारित करने में मदद करती है। इससे सड़कों पर घूमने वाले अवांछित सांडों की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
- हालांकि, लिंग के आधार पर छांटे गए वीर्य की वर्तमान लागत अधिक है; लेकिन, महाराष्ट्र सरकार ने ‘कृत्रिम गर्भाधान’ के लिये सब्सिडी देने का एक साहसिक कदम उठाया है।
निष्कर्ष
- दुग्ध कीमतों को बाज़ार की ताकतों द्वारा सरकार या सहकारी समितियों से मामूली समर्थन के साथ निर्धारित किया जाता है।
- लागत में कटौती, उत्पादकता बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के लिये नवाचारों पर प्रमुख ध्यान केंद्रित होना चाहिये, ज़िससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को समान रूप से मदद मिल सके।
- ऑपरेशन फ्लड के दौरान सहकारी समितियों ने बहुत अच्छा काम किया है और अब भी कर रही हैं; लेकिन डेयरी उद्योग में बड़े पैमाने पर निज़ी निवेश के प्रवेश से ‘रचनात्मकता और प्रतिस्पर्धा’ को प्रोत्साहन मिला है।