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भारतीय प्रशासन के मुख्य आधार में सुधार की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय)

पृष्ठभूमि

हाल ही में, सिविल सेवा परीक्षा के परिणाम घोषित किये गए हैं। कुल घोषित परिणाम में लगभग 150 महिलाएँ ही सफल हुई हैं। हमेशा की तरह ही कई इंजीनियर भी सफल हुए हैं। साथ ही, इसमें सफल हुए समाज के वंचित सदस्यों (जैसे- नेत्रहीन आदि) की कहानियाँ इनके खिलाफ पूर्वाग्रह को कम करने में मदद करेंगी। हालाँकि, इस परिणाम के साथ-साथ सिविल सेवा और सेवकों की दक्षता बढ़ाने की आधारभूत माँग में भी लगातार वृद्धि हो रही है।

प्रमुख प्रश्न व मुद्दे

  • इस परीक्षा, उसके परिणाम और सेवा के संदर्भ में कुछ मूलभूत प्रश्नों पर विचार किया जाना ज़रुरी है।
  • क्या सिविल सेवा की छवि को बदलने की दिशा में हासिल की गई वृद्धिशील प्रगति पर्याप्त है? क्या सही प्रकार से पुरुष और महिलाओं को उच्च नौकरशाही में शामिल किया जा रहा है?
  • क्या नौकरशाहों के कार्य प्रदर्शन को लेकर उनके सेवा काल के दौरान किसी प्रकार की कोई समीक्षा की जाती है।
  • क्या शारीरिक, मानसिक और आचरणगत रूप से अनुपयुक्त और भ्रष्टाचारी अधिकारियों को बाहर किये जाने या उनमें सुधार का कोई तरीका उपलब्ध है?
  • इस प्रकार के प्रश्न गरीबों की सेवा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता को देखते हुए अत्यंत प्रासंगिक हैं।

कारण

  • सिविल सेवा में भर्ती किये जाने वाले नए सदस्यों का मूल्यांकन उनकी बुद्धिमत्ता और सत्यनिष्ठता के आधार पर करना एक कठिन प्रक्रिया है क्योंकि एक विश्वसनीय और अच्छे प्रदर्शन करने वाले सिविल सेवकों के निर्माण में कई विशेषताओं व गुणों का समायोजन होता है।
  • इसके अलावा, एक राष्ट्र के रूप में भी भारत अत्यधिक विविधतापूर्ण है, जिसकी आबादी के एक बड़े हिस्से की अपेक्षाओं में वृद्धि हो रही है। इसके लिये एक ही प्रकार के सुधार ढाँचे जैसे फार्मूले का निर्माण बहुत युक्तिसंगत नहीं है।
  • वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा लाए गए प्रमुख और छोटे सराहनीय सुधारों के बावजूद, आम धारणा यह है कि सरकार के पिरामिड के निम्नतम स्तर पर बहुत कम ऐसी चीजें हैं जो बिना किसी अनधिकृत प्रयास के पूरी हो सकती हैं।

सिविल सेवाओं द्वारा निभाई गई भूमिका की आलोचना

  • गरीब नागरिकों के प्रति असंवेदनशीलता एक व्यापक मुद्दा है। गरीबों की आवश्यकताओं के बारे में सोचना और उनकी समस्याओं के प्रति संवेदनशील होने के लिये केवल बौद्धिकता तथा आर्थिक व तकनीकी नीति निर्माण ही पर्याप्त नहीं है।
  • यदि गरीब नागरिक किसी कलेक्टर और एस.पी. से मिलने में असमर्थ हैं (जैसा कि अधिकांश जिलों में देखा जाता है) तो यह पूरे प्रशासन की स्थिति को गलत तरीके से पेश करता है तथा अविश्वास की भावना पैदा करता है।
  • कलेक्टर और एस.पी. पर काम का अत्यधिक बोझ भी उन्हें नागरिकों के साथ सहभागिता के लिये समय निकालने से रोक सकता है।
  • हालाँकि, यह वास्तविकता उन नागरिकों को समझाने में असमर्थ है, जो वर्गीय पीड़ा महसूस करते हैं और सोचते हैं कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत में केवल अमीर ही अपने कार्य करवा सकने में सक्षम हैं।
  • दूसरा और एक अहम मुद्दा भ्रष्टाचार का है। आर्थिक मज़बूती और बहुत सी नीतियों के निर्माण और उसके क्रियान्वयन में आक्रामकता के बावजूद अंतिम परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहते हैं।
  • सरकार द्वारा सराहनीय सुधारों के बावजूद, नौकरशाही में भ्रष्टाचार की समस्या मौजूद है। नौकरशाही के निचले स्तर पर या तो असंवेदनशीलता विद्यमान हैं या वे कोई सेवा प्रदान करने के लिये अवैध तरीकों की माँग करते हैं, जबकि सेवा प्राप्त करना प्रत्येक नागरिक का अधिकार होता है।
  • तीसरा मुद्दा पुलिसिंग का है। अधिकांश पुलिस स्टेशनों में अभी भी गरीबों व निरक्षरों के साथ-साथ साक्षर व नियमों का पालन करने वाले लोगों से भी बुरा बर्ताव करने के रिकॉर्ड मौजूद हैं।
  • परिणामस्वरूप, पुलिस स्टेशन एक ऐसा संस्थान बन गया है, जिससे कानून का पालन करने वाले नागरिक अलगाव महसूस करते हैं।

आगे की राह

  • इस प्रकार की समस्या के निदान हेतु असहाय व असंदिग्ध नागरिकों के खिलाफ अन्याय या हिंसा के विरुद्ध आवाज उठाने की ज़रुरत है।
  • इससे नागरिकों को भी अवैध कार्यों व अत्याचार के विरोध में आवाज़ उठाने हेतु सम्बल प्राप्त होगा। साथ ही, यह अधीनस्थ रैंक के वर्गों के साथ-साथ उनके पर्यवेक्षकों में भी एक सकारात्मक भावना पैदा करने में सहायक होगा।
  • भारतीय पुलिस के लिये वास्तविक खतरा उसकी बिगड़ी हुई छवि है। इसमें और गिरावट हो सकती है, यदि आने वाले युवा अधिकारी सिर्फ अपने निश्चित कार्यों तक ही सीमित रहते हैं तथा अनैतिक कार्यों के मामलों में चुप बैठ जाते हैं। अतः नए अधिकारियों की नैतिक ज़िम्मेदारी को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • भारत में प्रबुद्ध वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारियों का एक बड़ा कोर है जो इस क्षेत्र में प्रवेश करने वाले नये अधिकारियों के चरित्र को ढाल सकते हैं।

निष्कर्ष

गरीब नागरिकों के प्रति असंवेदनशीलता तथा लालच दो ऐसे प्रमुख तत्त्व हैं, जो अभी भी सिविल सेवा के एक हिस्से को प्रभावित करते हैं। छोटे ज़िलों का निर्माण प्रशासनिक खर्च को बढ़ाता है फिर भी राज्य सरकारें प्रशासन में सुविधा प्रदान करने के लिये अधिक छोटे जिलों का निर्माण कर रही हैं। इससे संकट के समय आम आदमी के लिये अधिकारी अधिक आसानी से उपलब्ध हो सकतें हैं। इन सब प्रयासों के बावजूद अगली पीढ़ी के सुधार की आवश्यकता है जो कार्य कुशलता और पर्यवेक्षण के साथ-साथ प्रशासनिक पारिस्थितिकी में भी सुधार कर सके।

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