(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का इतिहास कला एवं संस्कृति के संदर्भ में)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल की कला के रूप तथा वास्तुकला के मुख्य पहलू से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
- केरल में पलक्कड़-गुरुवायुर मार्ग पर 1,000 वर्ष पुराने स्मारक ‘कट्टिलमदम मंदिर’, प्रारंभिक चोल स्थापत्य शैली में निर्मित एकमात्र मंदिर है।
- यह पलक्कड़ के नागलास्सेरी पंचायत में चलिपुरम में स्थित, केरल के सबसे पुराने पत्थर के मंदिरों में से एक के रूप में दर्जा प्राप्त भवन, जीर्णता की स्थिति में है।
प्रमुख बिंदु
- यह मंदिर 71 सेंट भूमि पर अवस्थित था लेकिन स्मारक ने अपनी अधिकांश भूमि अतिक्रमण के कारण खो दी है।
- राज्य पुरातत्त्व विभाग के पूर्व निदेशक का मानना है कि यह केरल में स्थित एकमात्र मंदिर ‘प्रारंभिक चोल शैली’ में बनाया गया था, जो अपने मूल चरित्र को खोता जा रहा है।
- पुरात्त्वविदों को इस स्थापत्य कला का संरक्षण प्रारंभ करने के लिये ‘लोक निर्माण विभाग’ से मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
- हालाँकि, उन्हें डर है कि संबंधित अधिकारी संरचना को स्थानांतरित करने की मांग कर सकते हैं, जो इसकी अखंडता को अपूरणीय क्षति पहुँचाएगा।
- पुरात्त्वविद् एच. सरकार ने वर्ष 1968-71 में किये गए केरल के मंदिरों के विस्तृत वास्तुशिल्प सर्वेक्षण में कट्टिलमदम मंदिर को सभी पत्थर संरचनाओं में सबसे शुरुआती संरचना में शामिल किया था।
- चूँकि संरचना सड़क के किनारे पर स्थित है, इसलिये लगातार वाहनों की आवाजाही ने इसे क्षतिग्रस्त कर दिया है।
- इसके कारण मंदिर के पश्चिमी भाग में टूटे हुए घनाद्वार और घनाद्वार की नक्काशी वाले जीर्ण-शीर्ण फलक, टूटी हुई पत्थर की दीवारों के साथ मंदिर उपेक्षित नज़र आता है।
कट्टिलमदम मंदिर से संबंधित प्रमुख बिंदु
- भिट्टी (दीवारें) तीन फलक द्वारा बनाई गई हैं, जिनमें से प्रत्येक तीनों तरफ से 22 से.मी. से 25 से.मी. तक की ऊँचाई पर स्थित हैं।
- अन्य दो फलक, जो एक के ऊपर एक रखे गए हैं, की क्रमशः ऊँचाई 53 से.मी. से 58 से.मी. और 69 से.मी. से 71 से.मी. है। साथ ही, फर्श के फलक से छत तक मंदिर के अंदरूनी हिस्से की ऊँचाई लगभग 2.75 मीटर है।
- खूबसूरती के लिये दीवारों पर वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं को उकेरा गया है तथा तहखाने और दीवारों के लिये उपयोग किये जाने वाले पत्थर के फलक के मध्य व्यापक अंतर मौजूद है। साथ ही, दीवार के ऊपर की प्रस्तरप्रतिमा मिटती हुई प्रतीत होती है।
- ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल व अवशेष अधिनियम, 1958’ के तहत इस स्थान को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है, लेकिन ऐसा लगता है कि इसे संरक्षित करने के लिये कोई प्रयास नहीं किया गया है।
- बिना चूने के, ईंट या लकड़ी के बने पत्थर के स्मारक, छठी शताब्दी के पल्लव शासक महेंद्रवर्मन प्रथम द्वारा किये गए एक प्रयोग थे।
चोल मंदिर से संबंधित प्रमुख बिंदु
- तमिलनाडु के दक्षिणी राज्य में स्थित यह विश्व विरासत स्थल 11वीं और 12वीं शताब्दी के चोल मंदिरों से मिलकर बना है। जिसमें बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर, गंगाईकोंडाचोलीश्वरम और एरातेश्वर मंदिर शामिल हैं।
- यह तीनों चोल मंदिर भारत में मंदिर वास्तुकला के उत्कृष्ट स्थापत्य और द्रविड़ शैली को दर्शाते हैं।
- बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण महाराजा राजा राज चोल ने दसवीं शताब्दी में करवाया था। चोल राजाओं को अपने कार्यकाल के दौरान कला का महान संरक्षक माना गया, इसके परिणामस्वरूप अधिकांश भव्य मंदिर और विशिष्ट ताम्र मूर्तियाँ दक्षिण भारत में निर्मित की गईं।
- गंगाईकोंडाचोलीश्वरम और एरातेश्वर मंदिर भी चोल अवधि में निर्मित किये गए। ये वास्तुकला, शिल्पकला, चित्रकला और तांबे की ढलाई की सुंदर उपलब्धियों को दर्शाते हैं।
चिंताएँ
- नागलास्सेरी पंचायत के अध्यक्ष का कहना है कि इस मंदिर के महत्त्व को सरकार को समझना चाहिये और सड़क के 10 मीटर चौड़ीकरण की योजना को स्थगित करना चाहिये।
- स्मारक को वर्ष 1976 में एक संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। तब से सड़क विकास ने संरक्षण के प्रयासों में बाधा उत्पन्न की है।
- राजस्व अधिकारी के सामने एक नई समस्या यह है कि वह वर्ष 1976 से पहले मंदिर के कब्जे में सही भूमि की पहचान करने में असमर्थ हैं और तभी से भूमि पर अतिक्रमण किया गया है।