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 भूमंडलीकरण  पर पुनर्विचार की आवश्यकता

(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-1 और 3 : भूमंडलीकरण)

पृष्ठभूमि

वर्तमान में कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर खुली सीमाओं एवं अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिरोध हो रहा है, यहाँ तक कि वैश्वीकरण को इस महामारी के फैलने का प्रमुख कारण माना जा रहा है।

ऐतिहासिक परिदृश्य

  • कोरोना वायरस संकट से पूर्व ही, विभिन्न मुद्दों को लेकर विश्व में भूमंडलीकरण का विरोध होता रहा है।
  • वर्ष 1945 में ब्रेटनवुड्स संस्थाओं की स्थापना से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को एक नई दिशा मिली थी, जिसका लाभ मुख्यतः अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान और यूरोपीय देशों ने उठाया, किंतु शीतयुद्ध के दौर में राष्ट्रवादी प्रवृतियों के प्रसार से संरक्षणवादी नीतियों के अपनाए जाने के कारण वैश्विक आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगाने की शुरुआत हुई।
  • शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् 1990 के दशक में एक नए सिरे से विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के जुड़ाव (Interlinking of Economies) की शुरुआत हुई, इसी दौर में भारत में भी आर्थिक सुधारों का सिलसिला आरम्भ हुआ। परंतु, इसके बाद की कुछ घटनाओं जैसे, 1998 का एशियाई आर्थिक संकट, 2008-09 की मंदी, चीन एवं अमेरिका के मध्य व्यापार युद्ध एवं ब्रेग्ज़िट ने  वैश्वीकरण की अवधारणा को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया।

क्यों बढ़ा रुझान ?

  • चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस आज एक वैश्विक महामारी बन चुका है। यद्यपि, इसके स्त्रोत एवं संक्रमण की प्रणाली अभी तक पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो पाई है।
  • महामारियाँ सिर्फ असहनीय पीड़ा और मृत्यु ही लेकर नहीं आतीं, बल्कि आर्थिक बदहाली तथा लोगों के विचार एवं व्यवहार में भी व्यापक बदलाव लाती हैं। साथ ही, वर्तमान वैश्वीकरण के दौर में इनका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व पर पड़ना स्वाभाविक है।
  • इस प्रकार के संकटों से वैश्विक आपूर्ति श्रंखला प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है।
  • वैश्वीकरण से दूसरे देशों पर निर्भरता बढ़ती है, फलस्वरूप किसी प्रकार के संकट की स्थिति में उनकी अनुचित शर्तों को स्वीकार करना पड़ता है।

भारत के लिये अवसर का समय

  • भारत को मेक इन इंडिया कार्यक्रम को नई दिशा देते हुए विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि चीन के अविश्वास के कारण विस्थापित होते उद्योगों को भारत में स्थापित किया जा सके।
  • इस महामारी से उत्पन्न तनाव के माहौल में भारतीय योग और आयुर्वेद पद्धति अत्यंत सहायक सिद्ध हो रही हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
  • कोरोना महामारी का स्त्रोत माँस उद्योग को माना जा रहा है, भारत प्राचीनकाल से ही शाकाहारी जीवन-शैली की विरासत को अपनाए हुए है जो प्रकृति और पर्यारण के दृष्टिकोण से तो अच्छा है ही; साथ ही मानव शारीर के लिये भी उपयुक्त है। इस जीवन-शैली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे अपनाने से जंतुओं से मानव में प्रसारित होने वाले बहुत से रोगों से बचा जा सकता है।
  • भारत ने खसरा और पोलियो जैसे रोगों को पूर्णतः समाप्त किया है, इसी क्षमता एवं विश्वसनीयता को आधार बनाकर भारत कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में नेतृत्वकर्त्ता की भूमिका निभा सकता है।

क्या हो आगे की राह

  • भूमंडलीकरण की शुरुआत वैश्विक एकता तथा साझेदारी को प्रोत्साहित  करने के लिये की गई थी, किंतु वर्तमान समय में यह अवधारणा सिर्फ कारोबार तथा लाभ अर्जन तक ही सीमित रह गई है।
  • कोरोना महामारी जैसे संकटों ने सम्पूर्ण विश्व को इस वास्तविकता से अवगत करा दिया है कि इस प्रकार के संकट से कोई भी देश अकेला नहीं लड़ सकता है। अतः भूमंडलीकरण के एक नए आर्थिक मॉडल के साथ नई सोच विकसित करने की आवश्यकता है।
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