(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से जुड़े समझौते)
संदर्भ
अप्रैल 2021 के प्रथम सप्ताह में रूसी विदेश मंत्री की भारत यात्रा के बाद कई विशेषज्ञों ने इस ओर ध्यानाकर्षित किया कि दोनों देशों के मध्य संबंधों में ‘पहले जैसी गर्मजोशी’ नहीं रह गई है।
भारत-रूस संबंधों का रूपांतरण
- रूसी विदेश मंत्री की भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य रूसी राष्ट्रपति की आगामी भारत यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार करना था। इस यात्रा के दौरान भारत ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित ‘भारतीय अवधारणा’ से रूसी विदेश मंत्री को अवगत कराया।
- भारत ने रूस को इस बात से भी अवगत कराया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र से संबंधित ‘क्वाड’ राजनीतिक-सैन्य गठबंधन न होकर इस क्षेत्र में सहयोगपूर्ण संबंधों को बढ़ाने की एक पहल है।
- ध्यातव्य है कि द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती प्रदान करने की दिशा मेंभारत ने पहल करते हुए वर्ष 2019 में ‘चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मेरीटाइम कॉरिडोर’ के लिये 1 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ़ क्रेडिट की घोषणा की थी।
- भारत की उक्त पहल चीन को प्रति-संतुलित करने के साथ-साथ रूस की महत्त्वाकांक्षी यूरेशियाई भागीदारी के भी अनुकूल है। हालाँकि, रूस अभी भी इस बात से असहमत है;ऐसा भारत के कार्य उसके ‘शब्दों के समतुल्य’ नहीं है याचीन के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण है।
भारत-रूस संबंधों में चीनी दृष्टिकोण
- भारत की एक प्रमुख चिंता रूस-चीन संबंधों की घनिष्ठता को लेकर भी है। रूस-चीन के मध्य बढ़ते राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा सहयोग का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि चीन अपने समग्र हथियारों के आयात का 77 प्रतिशत केवल रूस से आयात करता है।
- रूस द्वारा चीन को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ-साथ आसूचनासाझा करने को लेकर भी भारत आशंकित रहता है। इस बिंदु के अतिरिक्त राष्ट्रपति पुतिन द्वारा चीन के साथ भविष्य में सैन्य गठबंधन की संभावनाओं की स्वीकारोक्ति भी भारत की आशंकाओं को बढ़ाता है।
- भारत के सुदूर उत्तर में अवस्थित यूरेशियाई भू-भाग पर रूस और चीन का प्रभुत्व है। मध्य एशिया में सामरिक और सुरक्षा हितों तथा अफगानिस्तान एवं पश्चिम एशिया में भारत विभिन्न संपर्क परियोजनाओं के माध्यम से जुड़ रहा है, जैसे ईरान के रास्ते ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारा’।
- इस संबंध विशेषज्ञों ने भारत को आगाह किया है कि उक्त क्षेत्र में रूस-चीन तथा पाकिस्तान के सम्मिलन से संभावित सुरक्षा परिणामों को संबोधित किये बिना भारत को रिक्त नहीं छोड़ना चाहिये।
रूस-पाकिस्तान संबंध
- भारतीय यात्रा के तुरंत बाद रूसी विदेशी मंत्री ने पाकिस्तान की भी यात्रा की। इस कदम को आश्चर्यजनक इसलिये माना जा रहा है क्योंकि पूर्व में ऐसा किसी भी रूसी मंत्री ने नहीं किया था।
- इस यात्रा के दौरान पाकिस्तान की ‘आतंकवाद के विरुद्ध क्षमता’ को मज़बूत करने की रूसी विदेश मंत्री द्वारा पुष्टि की गई। रूस वर्तमान में पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश बन गया है।
- दोनों देश संयुक्त तौर पर आतंकवाद के विरुद्ध अभ्यास करने के साथ-साथ सैन्य रणनीतियों के परिप्रेक्ष्य में भी सहयोग कर रहें हैं।
रूस के साथ भारत का रक्षा सहयोग
- चीन और पाकिस्तान का मुख्य रक्षा सहयोगी होने के बावजूद रूस अभी भी भारत को अत्याधुनिक रक्षा उपकरणों के साथ-साथ प्रौद्योगिकी आपूर्ति करता है।
- ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (S.I.P.R.I.) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत ने वर्ष 2016-2020 के मध्य रूस से कुल 46 प्रतिशत हथियारों का आयात किया है।
- दोनों देशों के मध्य रक्षा उपकरणों से संबंधित व्यापार महज़ एक सौदा न होकर दोनों के मध्य गोपनीयता के संरक्षण से भी संबंधित है। स्थाई रक्षा सहयोग के लिये आवश्यक है कि हथियार निर्यातक देश, आयातक देश के किसी विरोधी को ऐसे उपकरण न बेच दें जिससे आयातक की गोपनीयता प्रभावित हो।
भू-राजनीतिक मुद्दे
- भू-राजनीतिक मुद्दों की जटिलता का मुख्य कारण ‘शक्तिशाली व मुखर’ चीन है। इसके विपरीत पहले से ‘सुपरपॉवर’ के रूप में विद्यमान संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन के इस नज़रिये को अवरुद्ध करना चाहता है।
- भू-राजनीति की पारंपरिक धारणा से अलग हटकर अमेरिका,चीन और रूस पर एक साथ नियंत्रण स्थापित करने हेतु प्रयासरत है। फलतः चीन और रूस मिलकर पुनः द्विध्रुवीय विश्वके निर्माण की दिशा में अग्रसर हैं।
- विश्व के प्रमुख देशों में विद्यमान राजनीतिक, आर्थिक तथा सैन्य विविधता, दो ध्रुवों के उदय को और जटिल बना सकती है।
- यदि पश्चिमी देशों के साथ रूस का तनाव कम हो जाए तथा वह चीन के प्रभाव से बाहर निकलकर बहुध्रुवीय विश्व में एक ध्रुव बन जाता है तो स्थिति और भी जटिल हो जाएगी।
निष्कर्ष
उपर्युक्त परिस्थितियों के आलोक में भारत को अपनी ‘नीतिगत स्वायत्तता को भी बरकरार रखते हुए इन घटित प्रक्रियाओं के बीच का रास्ता निकालने के साथ-साथ वैश्विक गठबंधनों में शामिल होने के लिये अपने वैश्विक प्रभाव को और बढ़ाना चाहिये।
रूस के साथ भारत की साझेदारी महाद्वीपीय हितों एवं रक्षा क्षमता को संवर्धित करने के दृष्टिकोण से बेहद महत्त्वपूर्ण है। निष्कर्षतः दोनों देशों के संबंधों का स्थायित्व एक-दूसरे की मुख्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं की संवेदनशीलता पर निर्भर करेगा हैं।