(प्रारंभिक परीक्षा : कला एवं संस्कृति से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 1 - भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप से संबंधित प्रश्न)
संदर्भ
हाल ही में, कथकली के प्रसिद्ध कलाकार नेल्लीयोड वासुदेवन नंबूथिरी का कैंसर के कारण निधन हो गया।
परिचय
- नेल्लियोड का जन्म केरल के ‘एर्नाकुलम ज़िले के चेरनल्लूर’ में हुआ था।
- इन्हें शास्त्रीय नृत्य नाटक में नकारात्मक ‘चुवन्ना ताड़ी’ (लाल दाढ़ी) के लिये एवं नकारात्मक एवं शक्तिशाली पात्रों को हास्य रूप देने के लिये भी जाना जाता है।
- इसके अलावा इनको ‘वट्टमुड़ी’ और ‘पेनकारी’ जैसी भूमिकाओं को निभाने के लिये भी जाना जाता है।
- नेल्लियोड ने अपने जीवन काल में दुशासन, नरकासुर जैसे नकारात्मक पुरुष पात्रों तथा शूर्पणखा, पूतना और नकरतुंडी जैसे राक्षसों तथा सुदामा (कुचेलावृत्तम) एवं असारी (बकावधाम) जैसे पात्रों में अपनी प्रस्तुति के माध्यम से नवीनता प्रदान की।
- इन्हें केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, केरल संगीत नाटक कथकली पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
कथकली
- कथकली एक प्रचलित शास्त्रीय नृत्य रूप है, जिसका विकास प्राचीन काल में दक्षिणी प्रदेशों में प्रचलित सामाजिक और धार्मिक रंगमंचीय कला रूपों से हुआ माना जाता है।
- कथकली शब्द की उत्पत्ति ‘कथा’ अर्थात् कहानी एवं ‘कली’ अर्थात् नाटक से हुई है।
- केरल के मंदिरों में सामंतों के संरक्षण में चाकियारकुत्त्, कूडियाट्टम, कृष्णानाट्टम और रामानाट्टम के रूप में लोकनृत्य-नाट्यकलाओं का विकास हुआ, जो आगे चलकर कथकली के उद्भव के स्रोत बनें।
- सोलहवीं सदी के मट्टानचेरी मंदिर के भित्तिचित्रों में कथकली की विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया है।
- कथकली नृत्य मूल रूप से पुरुष प्रधान नृत्य था, जिसे रागिनी देवी ने महिलाओं का नृत्य भी बना दिया।
- इसके अंतर्गत अच्छाई एवं बुराई के मध्य शाश्वत संघर्ष की प्रस्तुति दी जाती है। इस नृत्य में ‘पाचा’ एवं ‘केथी’ दो प्रमुख पात्र होते हैं। इसमें पाचा ‘नायक’ की भूमिका में एवं केथी ‘खलनायक’ की भूमिका में होता है।
- इस नृत्य की विषयवस्तु महाकाव्यों और पुराणों से संबंधित कहानियों पर केंद्रित है, जिसे पूर्व का ‘गाथागीत’ भी कहा जाता है।
- इसमें रंगमंचीय सामग्रियों का न्यूनतम प्रयोग होता है, लेकिन विभिन्न चरित्रों/पात्रों के लिये मुकुट का प्रयोग किया जाता है।
- मुख पर प्रयुक्त हरा रंग कुलीनता और दिव्यता को प्रदर्शित करता है, जबकि नाक के निकट प्रयुक्त लाल रंग प्रभुत्व को दिखाता है। इसके अतिरिक्त, काला रंग बुराई एवं दुष्ट शक्तियों को निरुपित करता है।
- इस नृत्य में केरल के परंपरागत ‘सोपान’ संगीत का प्रयोग होता है। साथ ही, कर्नाटक रागों का भी गायन होता है।
कथकली में कठोर शारीरिक प्रशिक्षण
- कथकली कलाकार, जो 60 या 80 वर्ष की उम्र में भी शारीरिक लोच वाली भूमिकाएँ निभाते हैं, वह इसका श्रेय छात्र रूप में प्राप्त कठोर शारीरिक प्रशिक्षण को देते हैं, जिसमें विशेष रूप से, पारंपरिक तेल मालिश या उझिचिल है, जो उन्हें कलारी में दी जाती है।
- केरल के मार्शल आर्ट, कलारीपयट्टू से अनुकूलित कठिन प्रशिक्षण ‘आहार, मेयुरप्पू’ को प्राप्त करने के लिये है, जिसका अर्थ है ‘लचीलापन, संतुलन, नियंत्रण और ताकत’।
- कथकली की गतिविधियों के अनुरूप शरीर को तैयार किया जाता है।
- कथकली की एक अन्य विशेषता 12 किलोग्राम तक की भारी पोशाक है, जिसमें किरीदम या केवल मुकुट का वजन 2.5 किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम के बीच होता है, जो चरित्र पर निर्भर करता है।
- इसके साथ ही, पिंडली (Calf) से लेकर माथे तक 64 तंग गांठें हैं, जो विभिन्न सामानों को सुरक्षित करती हैं।
कलारी दिनचर्या
- इसकी शुरूआत सुबह लगभग 3 बजे होती है, जब आँखों में घी डाला जाता है और पूरे शरीर पर तेल लगाया जाता है।
- इसके उपरांत छात्र आँखों का, कूदने और झुकने का व्यायाम करते हैं एवं सत्र का समापन छात्र के चेहरे को छोड़कर पूरे शरीर पर गुरु के पैरों से मालिश के साथ होता है।
- कलाकार, युवा और अनुभवी दोनों, मालिश की प्रभावकारिता की पुष्टि करते हैं, भले ही यह एक दर्दनाक अनुभव और कभी-कभी चोट का कारण भी बनता है।
- मालिश में विशेषज्ञता गुरु से शिष्य को सौंपी जाती है, लेकिन आयुर्वेद चिकित्सक इस पद्धति को अवैज्ञानिक मानते हैं।
- आयुर्वेद में तेल मालिश एक वास्तविक उपचार है, जो त्वचा के नीचे के परिसंचरण में सुधार करता है, त्वचा को चमकदार बनाता है, अंगों को मजबूत करता है, और अधिक से अधिक शरीर में लोच लाता है।
- ऊर्जा के स्तर को बनाए रखने और कोमलता में वृद्धि के लिये इसे कथकली प्रशिक्षण में लागू किया जा सकता है।
- हालाँकि, इसे सही मात्रा में दबाव के साथ अत्यधिक सावधानी से किया जाना चाहिये।
मालिश आहार
जब पैरों से पीठ के निचले हिस्से की मालिश की जाती है, तो पहले घुटनों को दो छोटे तकियों द्वारा उठाया जाता था जिन्हें ‘टेरिका’ कहा जाता था। आजकल एक ही तकिये का प्रयोग किया जाता है।
केरल से संबंधित लोक नृत्य
- मईलट्टम केरल का लोक नृत्य है, इसे मयूर नृत्य के रूप में भी जाना जाता है। इस नृत्य में युवतियाँ रंगीन केश सज्जा, चोंच तथा पंख लगाकर मयूर के वेश में सजती हैं। कालाईअट्टम (वृषभ नृत्य), कराडीअट्टम (भालू नृत्य), आलीअट्टम (राक्षस नृत्य) तथा पम्पूअट्टम (सर्प नृत्य) भी इसी प्रकार के नृत्य से संबंधित हैं।
- कइकोट्टीकली केरल का लोकप्रिय मंदिर नृत्य है। जिसे ओणम के समय पुरुष एवं महिला दोनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। ऐरुकाली तथा तट्टामकाली इस नृत्य की मिलती जुलती विधाएँ हैं।
- पढ़यनि दक्षिणी केरल के भगवती मंदिरों में प्रस्तुत किया जाने वाला एक युद्ध कला संबंधी नृत्य है। इस नृत्य का आयोजन देवी भद्रकाली की पूजा करने के लिये किया जाता है।
- कोलकलि-परिचाकलि, दक्षिणी केरल तथा लक्षद्वीप में किया जाने वाला युद्ध कला नृत्य है। इसमें नृतक लकड़ी के बने छद्म शस्त्रों का प्रयोग करते हैं तथा युद्ध शृंखलाओं का अभिनय करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, चक्यार कुथु, केरल का एकल नृत्य है, जिसमें कलाकार स्वयं को साँप की भांति सजाते हैं। यह गद्य और पद्य का संयोजन होता है और सामान्यतः मलयालम में वर्णित किया जाता है। पारंपरिक रूप से यह चक्यार समुदाय (पुरोहित जाति) द्वारा किया जाता है।