(प्रारंभिक परीक्षा के लिए - शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन, गेटिंग इंडिया टू नेट जीरो रिपोर्ट)
(मुख्य परीक्षा के लिए सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र:3 - सरकारी नीतियाँ, पर्यावरण प्रदूषण और संरक्षण)
संदर्भ
- उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भारत के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक मथुरा-वृंदावन को वर्ष 2041 तक "शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन" पर्यटन स्थल बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन की स्थिति प्राप्त करने के लिए, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जितना संभव हो उतना कम किया जाना चाहिए, शेष उत्सर्जन को महासागरों और वनों द्वारा वायुमंडल से अवशोषित किया जाना चाहिए।
महत्वपूर्ण तथ्य
- ब्रज क्षेत्र में वार्षिक तीर्थयात्री-पर्यटकों की संख्या 2041 तक 2.3 करोड़ के वर्तमान स्तर से बढ़कर छह करोड़ होने की उम्मीद है।
- इसे ध्यान में रखते हुए, क्षेत्र के पर्यावरण के अनुकूल विकास की आवश्यकता है।
- इस योजना के तहत पूरे ब्रज क्षेत्र जिसमें वृंदावन और कृष्ण जन्मभूमि जैसे प्रसिद्ध तीर्थ केंद्र शामिल हैं, में पर्यटक वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।
- पर्यटक अपने वाहनों को शहरों के बाहर पार्क करेंगे और शहरों के अंदर यात्रा करने के लिए केवल ई-रिक्शा और मिनी बसों जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग किया जाएगा।
- इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए मथुरा और वृंदावन में तीन से पांच चार्जिंग पॉइंट और अन्य प्रमुख शहरों में दो-दो चार्जिंग पॉइंट का निर्माण किया जाएगा।
- मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, बलदेव, गोकुल, नंदगांव, गोवर्धन और महावन को एक अंतर्देशीय जलमार्ग प्रणाली और एक संकीर्ण गेज रेलवे लाइन के माध्यम से भी जोड़ा जाएगा।
- शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए, यह योजना पूरे क्षेत्र को चार क्लस्टरों में विभाजित करती है, जिनमें से प्रत्येक में आठ प्रमुख शहरों में से दो शहर शामिल है।
- सम्पूर्ण क्षेत्र में परिक्रमा पथ नामक छोटे सर्किट बनाये जाएंगे , तीर्थयात्री पैदल या इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग कर इनका भ्रमण कर सकते है।
- प्रत्येक परिक्रमा पथ में वाटर कियोस्क, प्रसाद वितरण केंद्र, भोजन कक्ष और पर्यटकों के लिए विश्राम स्थल भी शामिल होंगे।
- योजना के अंतर्गत ब्रज क्षेत्र के सभी 252 जल निकायों तथा 24 जंगलों को भी पुनर्जीवित किया जाएगा।
- यह भारत में किसी पर्यटन स्थल के लिए इस तरह का पहला कार्बन न्यूट्रल मास्टर प्लान है।
- इस योजना को लागू करने के लिए ब्रज तीर्थ विकास परिषद, नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन
- इसे कार्बन तटस्थता भी कहा जाता है।
- इसका अर्थ अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाना नहीं, बल्कि वायुमंडल में कार्बन के उत्सर्जन और कार्बन सिंक द्वारा उसके अवशोषण के मध्य संतुलन या साम्यता का होना है।
- इसमें वनों जैसे अधिक कार्बन सिंक बनाकर कार्बन उत्सर्जन के अवशोषण को बढ़ाया दिया जाता है।
- वातावरण से गैसों को हटाने के लिये आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
- कार्बन हटाने की सबसे प्रसिद्ध तकनीकें हैं- कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस), डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज (डीएसीएस) और कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (बीईसीसीएस) के साथ बायोएनर्जी।
- सीसीएस के तहत कारखानों या जीवाश्म ईंधन बिजली संयंत्रों जैसे बड़े स्रोतों से अपशिष्ट कार्बन को कैप्चर किया जाता है, और इसे जमीन के अंदर संग्रहीत कर दिया जाता है।
- डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज (डीएसीएस), तकनीक के अंतर्गत कार्बन को सीधे वायु से ही अवशोषित किया जाता है।
- बायो-एनर्जी कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (बीईसीसीएस), के तहत बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों से कार्बन को कैप्चर किया जाता है।
- भारत ने COP-26 शिखर सम्मेलन के सम्मेलन में वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शुद्ध शून्य करने लक्ष्य निर्धारित किया है।
- गेटिंग इंडिया टू नेट जीरो रिपोर्ट के अनुसार 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने से 2036 तक वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद में 4.7% तक की वृद्धि होगी और 2047 तक 15 मिलियन नए रोजगार सृजित होंगे।
- 2021 तक भूटान और सूरीनाम केवल दो देश हैं, जिन्होंने शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल किया है।