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न्यूरोएथिक्स

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 4; मानवीय क्रियाकलापों में नीतिशास्त्र का सार तत्त्व, इसके निर्धारक और परिणाम; नीतिशास्त्र के आयाम; निजी और सार्वजनिक संबंधों में नीतिशास्त्र)

संदर्भ

एलन मस्क के न्यूरालिंक प्रोजेक्ट ने दिव्यांग लोगों की खोई हुई कार्यक्षमता को बहाल करने के लिए मस्तिष्क-कंप्यूटर लिंक के उपयोग द्वारा एक नई आशा जगाई है। लेकिन इस प्रगति के साथ मनुष्य का स्वतंत्र चिंतन और मानसिक निजता का अधिकार खतरे में पड़ सकता है। अतः मानव न्यूरो-अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में एक वैश्विक विषय क्षेत्र के रूप में ‘न्यूरोएथिक्स’ के विमर्श को बढ़ावा मिल सकता है।

क्या है न्यूरोएथिक्स (Neuroethics)

  • न्यूरोएथिक्स शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के चिकित्सक एनेलिस ए.पोंटियस द्वारा 1973 में किया गया था। 
  • सामान्य शब्दों में, न्यूरोएथिक्स, तंत्रिका विज्ञान के उपयोग और मानव मस्तिष्क की समझ से संबंधित नैतिक मुद्दों का अध्ययन है।
  • न्यूरोएथिक्स जर्नल के अनुसार, न्यूरोएथिक्स ‘तंत्रिका विज्ञान की नैतिकता’ और ‘नैतिकता का तंत्रिका विज्ञान’ दोनों का अध्ययन है।
    • ‘तंत्रिका विज्ञान की नैतिकता’ तंत्रिका विज्ञान के नैतिक, कानूनी और सामाजिक प्रभाव से संबंधित है, जिसमें मानव व्यवहार की भविष्यवाणी करने या उसे बदलने के लिए तंत्रिका विज्ञान का उपयोग करने के तरीके शामिल होते हैं।
    • इसमें समाज के लिए मस्तिष्क के कार्य की यंत्रवत समझ के निहितार्थ और नैतिक एवं सामाजिक विचार के साथ तंत्रिका विज्ञान संबंधी ज्ञान को एकीकृत करना भी शामिल है।
  • न्यूरोएथिक्स का मुख्य विषय ऐसे नैतिक मानकों को अपनाने का प्रयास करना हैं, जिससे मानव जाति को तंत्रिका विज्ञान के उपयोग से अधिकतम लाभ हो और नुकसान कम से कम हो।
  • पिछले दो दशकों में न्यूरोएथिक्स शोध और कार्रवाई का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरा है। 

न्यूरोएथिक्स क्षेत्र में वैश्विक शोध कार्य

  • 2015 में, अमेरिका के बायोएथिक्स आयोग ने 'ग्रे मैटर्स' नामक दो-खंड की रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
    • इस रिपोर्ट के मुख्य विषय ‘संज्ञानात्मक वृद्धि, सहमति क्षमता, और तंत्रिका विज्ञान एवं कानूनी प्रणाली’ थे, जो न्यूरोटेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने के नैतिक तनाव और सामाजिक निहितार्थों को दर्शाते हैं।
  • 2019 में, OECD ने जिम्मेदार नवाचार की अवधारणा के आधार पर न्यूरोटेक्नोलॉजी के नैतिक विकास और उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए नौ सिद्धांतों की सिफारिश की थी।
    • उनमें से दो प्रमुख सिद्धांत “व्यक्तिगत मस्तिष्क डाटा की सुरक्षा” और “संभावित अनापेक्षित उपयोग और दुरुपयोग की आशंका एवं निगरानी” थे।
  • 2022 में प्रकाशित यूनेस्को के एक शोध पेपर के अनुसार, न्यूरोटेक्नोलॉजी सक्रिय रूप से मानव मस्तिष्क के साथ संवाद करती है और उसे बदलने की क्षमता रखती है; यह तकनीक मानवीय पहचान, विचार की स्वतंत्रता, स्वायत्तता, गोपनीयता और समृद्धि के मुद्दों को भी उठाती है।

न्यूरोटेक्नोलॉजी

  • ‘न्यूरोटेक्नोलॉजी’ किसी भी ऐसी तकनीक को संदर्भित करती है जो मस्तिष्क या तंत्रिका तंत्र की गतिविधि के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करती है, या मस्तिष्क एवं तंत्रिका तंत्र के कार्य को प्रभावित करती है।
  • न्यूरोटेक्नोलॉजी का उपयोग अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे कि मानसिक बीमारी या नींद के पैटर्न के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए प्रयोगात्मक मस्तिष्क इमेजिंग। 
  • इसका उपयोग मस्तिष्क या तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने के लिए व्यावहारिक अनुप्रयोगों में भी किया जा सकता है।

न्यूरोटेक्नोलॉजी की श्रेणियाँ

  • न्यूरोमॉड्यूलेशन तकनीक : ये तकनीकें तंत्रिका तंत्र संरचनाओं को उत्तेजित करने के लिए तंत्रिका इंटरफेस का उपयोग करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, न्यूरोमॉड्यूलेशन तकनीक का उपयोग पार्किंसंस रोग में कंपन को कम करने के लिए डीप ब्रेन स्टिमुलेशन में किया जाता है; पुराने दर्द के इलाज के लिए स्पाइनल कॉर्ड स्टिमुलेशन इत्यादि।
  • न्यूरोप्रोस्थेसिस : न्यूरोप्रोस्थेसिस “कृत्रिम” मस्तिष्क कार्यों के रूप में कार्य करते हैं, जिसमें वे संवेदी, मोटर या संज्ञानात्मक कार्यों को प्रतिस्थापित या पुनर्स्थापित करते हैं।
  • ब्रेन-मशीन इंटरफेस (BMI) : ये तकनीकें मस्तिष्क में सूचना पढ़ती और लिखती हैं, जिसका अंतिम परिणाम यह होता है कि व्यक्ति बाहरी सॉफ्टवेयर (ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस) या हार्डवेयर (रोबोटिक डिवाइस) को नियंत्रित करने में सक्षम हो जाता है।

न्यूरो-अधिकार (Neurorights) 

  • ‘न्यूरोराइट’ (Neuroright) शब्द पहली बार अप्रैल 2017 में ‘इन्का और एंडोर्नो’  द्वारा पेश किया गया था।
  • न्यूरो-अधिकारों को मानव अधिकारों के लिए एक नए अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचे के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसका उद्देश्य न्यूरोटेक्नोलॉजी के विकास के साथ मस्तिष्क और उसकी गतिविधियों की रक्षा करना है।
    • इसके अंतर्गत अनधिकृत हेरफेर या डाटा निष्कर्षण के खिलाफ व्यक्ति की गोपनीयता और पहचान की रक्षा के लिए नैतिक और कानूनी सीमाएँ निर्धारित करना शामिल है।
  • इस अवधारणा को न्यूयॉर्क स्थित न्यूरोसाइंटिस्टों के एक अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा संचालित एक मंच ‘न्यूरोराइट्स इनिशिएटिव’ द्वारा विकसित किया गया है।
    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता हासिल करना है कि डिजिटल प्रगति न्यूरो- अधिकारों में हस्तक्षेप न करे।
    • इस संगठन का कार्य न्यूरोटेक्नोलॉजी वैज्ञानिकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पाँच न्यूरो- अधिकारों के आधार पर आचार संहिता के विकास पर केंद्रित है।

अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त न्यूरो-अधिकार

  • व्यक्तिगत पहचान (Personal Identity): इस अधिकार में किसी भी ऐसी न्यूरोटेक्नोलॉजी को सीमित करना शामिल है जो किसी व्यक्ति की आत्म-भावना को बदल सकती है और बाहरी डिजिटल नेटवर्क से कनेक्शन के माध्यम से व्यक्तिगत पहचान को खोने से रोक सकती है।
  • मुक्त इच्छा (Free Will): इसका तात्पर्य लोगों की स्वतंत्र और स्वायत्त रूप से निर्णय लेने की क्षमता को संरक्षित करना है, अर्थात न्यूरोटेक्नोलोजी द्वारा किसी भी हेरफेर या प्रभाव के बिना निर्णय लेने का अधिकार। 
  • मानसिक गोपनीयता (Mental Privacy) : यह अधिकार व्यक्तियों की मस्तिष्क गतिविधि के मापन के दौरान प्राप्त आंकड़ों को उनकी सहमति के बिना उपयोग करने से बचाता है तथा इस डाटा से जुड़े किसी भी वाणिज्यिक लेनदेन पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाता है।
  • समान पहुँच (Equal Access) : इसका उद्देश्य मस्तिष्क की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए न्यूरोटेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग को विनियमित करना है, ताकि वे केवल कुछ लोगों के लिए ही उपलब्ध न रहें और समाज में असमानता उत्पन्न न करें।
  • पूर्वाग्रहों के विरुद्ध सुरक्षा (Protection against biases) : यह लोगों को किसी भी कारक, जैसे कि मात्र एक विचार या पूर्वाग्रह, के आधार पर भेदभाव से बचाता है, जिसे न्यूरोटेक्नोलोजी के उपयोग के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।

भारत में न्यूरो-अधिकारों की क़ानूनी स्थिति 

  • ‘न्यूरो-अधिकार कानून’ मानव मस्तिष्क और मन की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए स्पष्ट सीमाओं और मानक नियमों की मांग करता है। 
  • हालांकि, भारत में इस संबंध में कोई स्पष्ट नियम या कानून नहीं है, लेकिन के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ वाद में निर्धारित गोपनीयता के अधिकार के फैसले से पर्याप्त कानूनी समर्थन प्राप्त किया जा सकता है।
    • निजता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में एक मौलिक अधिकार है।
    • इस संदर्भ में निजता के अधिकार के दो पहलू महत्वपूर्ण हो जाते हैं - सूचनात्मक निजता और सूचनात्मक आत्मनिर्णय।
    •  सूचनात्मक निजता का अधिकार व्यक्तिगत सामग्री के अनुचित प्रसार से सुरक्षा को बढ़ावा देता है; यह व्यक्ति के दिमाग की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। 
  • पुट्टस्वामी वाद में मान्यता दी गई है, कि “दिमाग व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक अविभाज्य तत्व है, और दिमाग की पवित्रता व्यक्ति के निजी स्थान को संरक्षित करने के अधिकार की नींव में निहित है”।
  • भारतीय डाटा संरक्षण कानून (DPA 2021) “नुकसान” (Harm) को मान्यता देता है, जिसमें “मनोवैज्ञानिक हेरफेर शामिल है, जो व्यक्ति की स्वायत्तता को बाधित करता है”, और यह “न्यूरो डाटा” को व्यक्तिगत डाटा की एक विशेष श्रेणी के रूप में परिभाषित करने का विकल्प भी प्रदान करता है।

न्यूरो-अधिकार के लिए वैश्विक कानूनी ढांचा

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानवाधिकार सिद्धांत और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा व्यक्तियों के तंत्रिका अधिकारों के बारे में कुछ संकेत प्रदान करती है। लेकिन वे किस हद तक लागू किए जा सकते हैं यह प्रत्येक देश के क्षेत्राधिकार में कानूनों पर निर्भर करता है।
  • 2021 में, चिली अपने नागरिकों के न्यूरोराइट्स को कानूनी रूप से मान्यता देने वाला पहला देश बन गया। 
  • अमेरिका में, कोलोराडो राज्य ने व्यक्तियों की न्यूरोलॉजिकल गोपनीयता की रक्षा के लिए अप्रैल 2024 में एक कानून बनाया है, जबकि कैलिफ़ोर्निया भी एक ऐसे कानून पर विचार कर रहा है।
  • यूनेस्को ने “न्यूरोटेक्नोलॉजी की नैतिकता पर पहला वैश्विक फ्रेमवर्क” विकसित करने के लिए एक विशेषज्ञ समूह नियुक्त किया है, इस फ्रेमवर्क को 2025 के अंत तक अपनाए जाने की उम्मीद है।

न्यूरोएथिक्स से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • मौलिक अधिकारों का हनन : न्यूरोटेक्नोलॉजी के माध्यम से संज्ञानात्मक व्यवहार को नियंत्रित करना गोपनीयता, आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता के अधिकारों के विरुद्ध है। 
    • प्रदर्शन निगरानी और दक्षता का आकलन करने की आड़ में, अलग-अलग संस्थाएँ व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से आबादी के विभिन्न वर्गों की गतिविधियों और व्यवहार को ट्रैक एवं मॉनिटर करने में सक्षम हो सकती हैं।
  • न्यूरो-डाटा की गोपनीयता : न्यूरो-डाटा का डिजिटलीकरण बड़े अवसरों के साथ-साथ चिंताओं को भी जन्म देता है।
    • उपयोगकर्ताओं के उपकरणों द्वारा आंकड़ों को एकत्र करने के बाद अलग-अलग उद्देश्यों के लिए अनेक स्रोतों से निगरानी का जोखिम भी बढ़ जाता है। 
    • न्यूरोमार्केटिंग सहित डिजिटल स्वास्थ्य डाटा के विज्ञापन और विपणन में भी वृहद स्तर पर व्यावसायिक नैतिक मूल्य का मुद्दा समाहित है।
  • विनियमन संबंधी चिंताएं : न्यूरोटेक्नोलॉजी में निजी क्षेत्र द्वारा बढ़ते निवेश के कारण उनके प्रशासन और विनियमन के बारे में भी चिंताएँ पैदा हुई हैं।
    •  डाटा सुरक्षा और गोपनीयता के लिए अभी तक कोई मानकीकृत प्रणाली या विनियमन मौजूद नहीं है, जैसे- रोगी की जानकारी पर स्वामित्व अधिकार, ऐसे डाटा तक पहुँच और डाटा साझा करने के लिए दिशानिर्देश।
  • न्यूरो-साक्ष्य (Neuroevidence) का मुद्दा : निकट भविष्य में न्यूरोटेक्नोलॉजी किसी व्यक्ति की यादों, विश्वासों (memories & beliefs) आदि के बारे में निजी जानकारी निकालना संभव बना सकता है।
    • इस निकाली गई जानकारी का इस्तेमाल व्यक्तियों को नुकसान पहुँचाने के लिए किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, यदि मानवीय यादों को सफलतापूर्वक निकाला और डिकोड किया जाता है, तो उन्हें न्यायालयों में न्यूरो-साक्ष्य के रूप में अनुमति दी जा सकती है।

आगे की राह 

  • विकसित हो रही न्यूरोटेक्नोलॉजी मानव जाति के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है, लेकिन इसके साथ आने वाली चिंताओं और आशंकाओं को उचित कानूनों के माध्यम से नियंत्रित किया जाना चाहिए।
  • मूल रूप से, न्यूरल डाटा को एक विशेष प्रकार के डाटा के रूप में देखा जा सकता है जो आंतरिक रूप से मानव व्यक्तित्व की परिभाषा से जुड़ा हुआ है। अतः सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श और स्पष्ट रूप से न्यूरल डाटा के संरक्षण को परिभाषित करने के बाद ही इसे कानूनी रूप से मान्यता दी जानी चाहिए। 
    • इसके अलावा, कानून को ऐसी न्यूरोटेक्नोलॉजी को भी सीमित करने की कोशिश करनी चाहिए जो मानव संज्ञानात्मक कार्यों में हस्तक्षेप कर सकती है।
  • भारत के लिए अब ऐसे कानून लागू करने का समय आ गया है और सरकार को इस मामले पर कार्रवाई करनी चाहिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।
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