(प्रारम्भिक परीक्षा : भारतीय राज्यतंत्र और शासन, मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय – विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)
हाल ही में, केंद्रीय सरकार ने जम्मू और कश्मीर व लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों के लिये केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative Tribunal -CAT) की 18 वीं खंडपीठ का उद्घाटन किया है।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) क्या है?
- केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना अनुच्छेद 323-क के तहत,संविधान में भर्ती और सेवा की शर्तों के सम्बंध में विवाद और शिकायतों के समाधान के लिये की गई थी।
- इसका उद्देश्य पीड़ित लोक सेवकों को त्वरित, सस्ता और सुलभ न्याय प्रदान करना है।
- यह सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों के लिये न्याय की देख रेख करता है।
- अनुच्छेद 323-क के अनुसरण में, संसद ने वर्ष 1985 में प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम पारित किया था।
- यह अधिनियम लोक सेवा में नियुक्त कर्मियों के चयन तथा उनकी सेवा शर्तों से जुड़े विवादों तथा शिकायतों के अधिनिर्णयन के लिये केंद्र सरकार को एक केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण स्थापित करने के लिये अधिकृत करता है।
- केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना नवम्बर, 1985 में हुई थी। इसकी प्रमुख पीठ (बेंच) दिल्ली में है।अभी तक इसकी 17 नियमित न्यायपीठ थीं जिनमें से 15 उच्च न्यायालय के मुख्यालयों में कार्यरत थीं शेष दो जयपुर और लखनऊ में। जम्मू कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों के लिये नई न्यायपीठ के उद्घाटन के बाद अब इनकी संख्या 18 हो गई है।
- इस अधिनियम के अनुसार शिकायत कर्ता स्वयं अपनी पैरवी कर सकता है।
कैट की संरचना :
- कैट एक विशेषज्ञ निकाय है जिसमें प्रशासनिक सदस्य और न्यायिक सदस्य शामिल होते हैं जो अपने विशिष्ट ज्ञान के आधार पर त्वरित और प्रभावी न्याय करने के लिये प्रतिबद्ध होते हैं।
- केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का प्रमुख इसका अध्यक्ष होता है, जो उच्च न्यायालय का वर्तमान या सेवा निवृत्त न्यायाधीश हो सकता है।
- अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के लिये सेवा अवधि 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) होती है। सदस्यों के लिये आयु सीमा 62 वर्ष होती है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कैट का कोई भी सदस्य अपने कार्यकाल के बीच में ही अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को भेज सकता है।
कार्यप्रणाली :
- इसका अधिकार क्षेत्र, प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 से जुड़े सेवा मामलों तक ही है।
- ट्रिब्यूनल मामलों को तय करने में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होता है और सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होता है।
- प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 17 के तहत, उच्च न्यायालय के रूप में स्वयं की अवमानना के सम्बंध में समान अधिकार क्षेत्र और अधिकार का प्रयोग करने के लिये न्यायाधिकरण को शक्ति प्रदान की गई है।
काम करने की स्वतंत्रता :
- प्रशासनिक न्यायाधिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2006 के अनुसार कैट के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा की शर्तें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामान ही हैं।
- कैट के आदेशों को सम्बंधित उच्च न्यायालय (जिसके क्षेत्राधिकार में न्यायाधिकरण की खंडपीठ स्थित है) के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी जाती है।
- चन्द्र कुमार वाद (1997) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ सीधे उच्चतम न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है और इसके लिये पीड़ित व्यक्ति को पहले सम्बंधित उच्च न्यायालय से सम्पर्क करना चाहिये।
कैट से जुड़ी प्रशासनिक समस्याएँ :
- पर्याप्त कार्यबल की कमी।
- सुधार की तमाम अनुशंसाओं के बावजूद कभी उनका पालन ना होना।
- अपने पैतृक मंत्रालयों के अंतर्गत कार्य करते हुए उन्हीं के खिलाफ आदेश पारित करने के लिये उनकी दया पर निर्भर होना।
- अनेक गैर-न्यायिक सदस्यों के पास आवश्यक विधिक अर्हता का ना होना या योग्यता की कमी।
- कुछ मामलों में दंतहीन या शक्ति विहीन होना।
(स्रोत: द हिंदू)