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अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल नवीन समुदाय 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए - अनुसूचित जनजाति, नारिकोरावन और कुरिविक्करन, बेट्टा कुरुबा
मुख्य परीक्षा के लिए : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2- केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ,इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय

संदर्भ 

  • हाल ही में राज्यसभा में, तमिलनाडु के नारिकोरावन और कुरिविक्करन समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने तथा कर्नाटक के बेट्टा कुरुबा समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में पहले से ही शामिल कडु कुरुबा जनजाति के पर्याय के रूप में शामिल करने के लिए एक विधेयक को अनुमति दी गयी।

नारिकोरावन और कुरिविक्करन (तमिलनाडु)

  • 1965 में लोकुर समिति ने इन्हें अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश की थी।
  • ये परंपरागत रूप से शिकार करने के पेशे में संलग्न है।

बेट्टा कुरुबा (कर्नाटक)

  • ये मुख्य रूप से कर्नाटक के मैसूर, चामराजनगर तथा कोडागु जिले में पाई जाती है, इनकी जनसख्या 1 लाख से भी कम है।

अनुसूचित जनजाति

  • संविधान अनुसूचित जनजाति की मान्यता के मापदंडो का उल्लेख नहीं करता है।
  • आदिम जीवनशैली, सामाजिक और भौगोलिक अलगाव, संकोची स्वाभाव तथा शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन कुछ ऐसे लक्षण है, जो इन्हें अन्य समुदायों से अलग साबित करते है।
  • संविधान के अनुच्छेद 366(25) के अनुसार अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदाय से है, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
  • अनुच्छेद 342(1) के अनुसार राष्ट्रपति किसी राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के मामले में वहां के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद किसी जनजाति या जनजातीय समूह को या उस के किसी हिस्से को उस राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश के मामले में अनुसूचित जनजाति के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगा।
  • अनुसूचित जनजाति की मान्यता राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश विशिष्ट होती है, अर्थात अनुसूचित जनजाति की सूची प्रत्येक राज्य के लिये अलग-अलग होती है।
  • कोई समुदाय जो एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत है, आवश्यक नहीं है, कि वो किसी अन्य राज्य में भी अनुसूचित जनजाति के रूप में ही वर्गीकृत हो।

अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की प्रकिया

  • राज्य सरकार समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया शुरु करती है और प्रस्ताव को जनजातीय मामलों के मंत्रालय के पास भेजती है, जो इस प्रस्ताव की समीक्षा करता है।
  • जनजातीय कार्यों का मंत्रालय इसे अनुमोदन के लिए भारत के महापंजीयक के पास भेज देता है।
  • इसके बाद प्रस्ताव पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की मंजूरी ली जाती है,तथा अंतिम निर्णय के लिए इसे कैबिनेट के पास भेज दिया जाता है।

अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के लाभ

  • सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए चलायी जा रही वर्तमान योजनाओं का लाभ प्राप्त करने की पात्रता।
  • सरकारी सेवाओं में आरक्षण का लाभ।
  • शिक्षा संस्थाओ में प्रवेश में आरक्षण।
  • अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम की तरफ से रियायती ऋण प्राप्त करने की पात्रता।
  • सरकार की तरफ से दी जा रही छात्रवृत्तियों का लाभ।
  • संविधान का अनुच्छेद 243(घ) पंचायतो में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटो के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 330 लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटो के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 332 विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटो के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए प्रावधान करती है।
  • संविधान की पांचवी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन के लिए प्रावधान करती है।

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG)

  • पीवीटीजी जनजातीय समूहों के बीच सर्वाधिक असुरक्षित समुदायों में से हैं।
  • ये समूह समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से हैं क्योंकि वे संख्या में कम हैं, उन्होंने सामाजिक और आर्थिक विकास का कोई महत्वपूर्ण स्तर हासिल नहीं किया है और आमतौर पर खराब बुनियादी ढांचे और वाले दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं। 
  • 1973 में, ढेबर आयोग ने ऐसे आदिम जनजातीय समूहों (पीटीजी) को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया, जो जनजातीय समूहों के बीच कम विकसित थे।
  • भारत में 75 समुदायों को कमजोर जनजातीय समूह(PVTG) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • PVTG कोई संवैधानिक श्रेणी नहीं है, न ही ये संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त समुदाय हैं।
  • यह विशेष रूप से कम विकास वाले कुछ समुदायों की स्थितियों में सुधार लाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा किया गया वर्गीकरण है।

अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल अन्य नवीनतम समुदाय 

हट्टी जनजाति (हिमाचल प्रदेश)

  • कस्बों में हाट नाम के छोटे बाजारों में घरेलु फल, सब्जी, मांस, ऊन बेचने का पारंपरिक कार्य करने के कारण इन्हें हट्टी कहा जाता है।
  • ये मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में निवास करते है,तथा उत्तराखंड के गिरी और टोंस नदियों के बीच के क्षेत्र में भी पाए जाते है।
  • उत्तराखंड के जौनसारी समुदाय के साथ ये सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक समानता रखते है, जिन्हें 1967 में ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल चुका है।
  • हट्टी समुदाय में खुंबली नाम की पारंपरिक परिषद् होती है, जो इनसे जुड़े मामलो को देखती है।

बिंझिया (छत्तीसगढ़)

  • बिंझिया द्रविड़ प्रजातीय समूह के अंतर्गत आते है।
  • इनके मुख्य देवता विंध्यवासिनी देवी है, विंध्य से ही बिंझिया शब्द की उत्पत्ति हुई है।
  • बिंझिया समुदाय में बस्तु विनिमय व्यवस्था मौजूद है, तथा आर्थिक गतिविधियों में महिलायें पुरुषों से अधिक भाग लेती है।
  • इनकी जीविका का मुख्य आधार कृषि है।
  • बिंझिया समुदाय में बाल विवाह भी प्रचलित है।
  • इनमे परिवार को डिबरिस, गाँव को जामा तथा कबीले को बरगा तथा कबीले का मुखिया गौतिया कहलाता है।
  • इनकी मूलभाषा बिंझबारी है, तथा ये ओड़िया और सादरी भी बोलते है।

गोंड (उत्तर प्रदेश)

  • उत्तर प्रदेश के 13 जिलो में रहने वाले गोंड समुदाय तथा इसकी 5 उपजातियों- धुरिया, नायक, ओझा, पठारी तथा राजगोंड को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्णय लिया गया है।
  • गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समुदायों में से एक है।
  • इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है, कृषि के साथ ये पशुपालन भी करते है।

पहाड़ी जातीय समुदाय

  • पहाड़ी समुदाय जम्मू और कश्मीर, में निवास करने वाले विभिन्न समुदायों के लिए प्रयोग किया जाने वाला एक व्यापक शब्द है, जिसमें विभिन्न जातियों तथा समुदायों के लोग शामिल है। 
  • जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी जातीय समूह की जनसंख्या लगभग 6 लाख है, इनमें से लगभग 55% हिंदू और 45% मुस्लिम है। 
  • यह समुदाय मुख्य रूप से राजौरी, हंदवाड़ा, पुंछ और बारामूला में निवास करता है। 
  • जम्मू-कश्मीर सरकार ने, 1989 में पहाड़ी भाषी लोगों के विकास और कल्याण के लिए एक सलाहकार बोर्ड की स्थापना की थी।

भोगता समुदाय(झारखंड)

  • भोगता को गंझू, और प्रधान के नाम से भी जाना जाता है, सदरी इनकी मातृभाषा है। 
  • बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्य में पाया जाने वाले इस समुदाय का मुख्य व्यवसाय कृषि है। 
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