(प्रारंभिक परीक्षा- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध)
संदर्भ
हाल ही में, सऊदी अरब के नेतृत्व वाले चार मध्य पूर्वी देशों के गठबंधन ने लगभग तीन वर्षों के बाद क़तर के साथ पूर्ण रूप से संबंधों को बहाल करने का निर्णय लिया है। विदित है कि सऊदी अरब और इसके सहयोगियों ने तीन वर्ष पूर्व क़तर से संबंध समाप्त कर लिये थे।
सऊदी अरब और क़तर
- कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के साथ संबंधों के चलते जून 2017 में क़तर के तीन पड़ोसी देशों- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात व बहरीनके साथ-साथ मिस्र (Egypt) ने क़तर के लिये सभी शिपिंग और हवाई मार्ग को बंद करते हुए इससे सभी कूटनीतिक और आर्थिक सम्बंधों को तोड़ लिया था। ये तीनों देश सऊदी अरब के बड़े सहयोगी माने जाते हैं।
- अरब क्षेत्र में सऊदी अरब के चिर प्रतिद्वंद्वी ईरान के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंधों को कम करने के लिये कतर पर दबाव बनाने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया था।
- गठबंधित देशों ने संबंधों को पुन: बहाल करने के लिये 13 माँगें रखीं थी, जिसमें अल जज़ीरा जैसे समाचार आउटलेट को बंद करना, क़तर स्थित तुर्की सैन्य अड्डे को बंद करने के साथ-साथ शिया-बहुलईरान के साथ संबंधों में कमी करना शामिल है।
- इस बीच क़तर ने इन प्रतिबंधों को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताते हुए ईरान और तुर्की के साथ अपने संबंधों को और मज़बूत किया। गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल के सदस्य कुवैत और ओमान ने भी सऊदी समूह के साथ अपने संबंधों में कमी कर दी थी।
क़तर और सऊदी के सम्बंधो में तनाव का कारण
- कतर ने लम्बे समय से अपनी विदेश नीति कोअन्य अरब पड़ोसियों से स्वतंत्र रखने का प्रयास किया है जो उसके क्षेत्रीय अरब पड़ोसियों की प्राथमिकताओं के साथ मेल नहीं खाती है।
- इस नीति में शिया बहुल ईरान के साथ घनिष्ठ आर्थिक और कूटनीतिक संबंध शामिल हैं। ईरान को सुन्नी बहुल सऊदी का एक बड़ा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी माना जाता है।
- इसके अलावा, क़तर और तुर्की भी एक-दूसरे के सहयोगीरहे हैं। रूस व तुर्की के संबंधों में घनिष्ठता तथा तुर्की व अमेरिका के बीच बढ़ती दूरी का असर सऊदी और तुर्की के सम्बंधों पर भी पड़ा है।
- गौरतलब है कि 6 सदस्यीय ‘खाड़ी सहयोग संगठन’ के अधिकतर कूटनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक मामलों की अगुवाई सऊदी अरबकरता है।
- इसी संदर्भ में 5 जून, 2017 को सऊदी अरब, यू.ए.ई. और बहरीन ने क़तर के साथ संबंधों में कटौती करने के साथ-साथ कतर के नागरिकों को 14 दिनों के भीतर देश छोड़ने का निर्देश दिया था। मिस्र ने भी क़तर के साथ कूटनीतिक संपर्क को तोड़ दिया था।
मध्य-पूर्व में क़तर
- पिछले चार दशकों में कतर सबसे गरीब खाड़ी देशों की श्रेणी से निकलकर सबसे धनी देशों की श्रेणी में आ गया है। बड़ी मात्रा में गैस भंडार की उपस्थिति ने क़तर के आर्थिक उभार के साथ-साथ इस क्षेत्र की राजनीति में भी प्रभावी भूमिका निभाने में मदद की। साथ ही, कतर ने वैश्विक मंच पर अपने धन और प्रभाव का व्यापक उपयोग किया है।
- ईरान के साथ कतर एक विशाल गैस क्षेत्र साझा करता है, जो ईरानी शासन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने का एक कारण है। यह कदम सुन्नी बहुल सऊदी अरब को उत्तेजित करने वाला है, जो मध्य-पूर्व की भू-राजनीति को नियंत्रित करना चाहता है।
- कतर का गाजा के फिलिस्तीनी संगठन हमास, मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड और सीरिया के इस्लामी समूह के लिये समर्थन भी विवाद के प्रमुख कारण हैं। हालाँकि, क़तर ने अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने से इनकार किया है।
इस संकट में निर्णायक कदम
- अमेरिका ने सऊदी के नेतृत्व वाले प्रतिबंध का समर्थन करते हुए कतर को ‘आतंक का वित्त पोषक’ कहा था। अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ कतर के करीबी संबंधों और अल-उदीद एयर बेस पर बड़े पैमाने पर अमेरिकी सैन्य सुविधा को देखते हुए यह एक आश्चर्यजनक कदम था। हालाँकि, बाद में अमेरिका के रूख में परिवर्तन देखा गया था।
- इसके अतिरिक्त, लगभग 60 वर्षों की सदस्यता के बादक़तर ने जनवरी 2019 में ‘ओपेक’ की सदस्यता त्याग दी थी। हालाँकि, क़तर ने इस कदम को पूर्ण रूप से व्यापारिक निर्णय बताया था। फिर भी, माना जाता है कि यह निर्णय सऊदी नेतृत्व वाले ओपेक को कमज़ोर करने का एक राजनीतिक प्रयास था।
- कुवैत द्वारा मध्यस्थता के निरंतर प्रयासों और खाड़ी देशों के गठबंधन पर बढ़ते अमेरिकी दबाव के कारण वर्ष 2020 के अंत में इस समस्या के समाधान में सफलता मिली और सऊदी अरब तथा कतर के बीच हवाई क्षेत्र, स्थलीय और समुद्री सीमाएँ खोलने पर सहमति व्यक्त की गई।