(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- सम्बंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित और भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)
चर्चा में क्यों?
जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की पहली वर्ष गाँठ से एक दिन पूर्व 4 अगस्त को पाकिस्तान ने एक नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किया है।
पृष्ठभूमि
हाल के दिनों में, भारत और नेपाल के बाद पाकिस्तान एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी करने वाला तीसरा देश बन गया है। नए मानचित्र में पाकिस्तान ने उसकी सीमा से अपेक्षाकृत अधिक दूर स्थित और भारत के कुछ छोटे क्षेत्रों को भी अपने हिस्से के रूप में दर्शाया है। इस नए मानचित्र में जूनागढ़ और मानवादर जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं। ध्यातव्य है कि जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के प्रदेशों को अपने क्षेत्र के रूप में दिखाने वाला पाकिस्तान का नया राजनीतिक मानचित्र वहाँ के पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया जाएगा।
जूनागढ़ : संक्षिप्त इतिहास
1) जूनागढ़ काठियावाड़ प्रायद्वीप में स्थित गुजरात का एक जिला है। इसका क्षेत्र अरब सागर के तट तक फैला हुआ है। एक समय जूनागढ़ सैद्धांतिक रूप से पाकिस्तान में शामिल हो गया था, जब जूनागढ़ (नवाब मुहम्मद महाबत खानजी III) के शासक को उनके दीवान (प्रधानमंत्री) शाह नवाज़ भुट्टो ने पाकिस्तान में शामिल होने के लिये राज़ी कर लिया था।
2) जूनागढ़ के तीन जागीरदार राज्यों के निर्णय ने समस्या को अधिक जटिल बना दिया था। बंटवा-मानवादर जागीर ने पाकिस्तान में शामिल होने की पुष्टि की, जबकि दो अन्य रियासतों- मंगरोल और बबरियावाड़ ने भारत का हिस्सा बनने की घोषणा की।
3) पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा के एक महीने बाद आखिरकार पाकिस्तान ने जूनागढ़ को अपने क्षेत्र के रूप में स्वीकारने का फैसला किया। पाकिस्तान की आक्रामकता और कश्मीर के शासक द्वारा सहायता की माँग पर कश्मीर के साथ-साथ जूनागढ़ में भी भारतीय सेना को भेजा गया।
4) फरवरी 1948 में, जूनागढ़ के सभी जागीरदार राज्यों में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया। अधिकांश मतदाताओं की इच्छा के अनुसार इस क्षेत्र का भारत में विलय हुआ।
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पाकिस्तान का नया मानचित्र: प्रमुख बिंदु
- नए राजनीतिक मानचित्र में जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, सर क्रीक और जूनागढ़ को शामिल किया गया है।
- पाकिस्तान द्वारा जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को पहले विवादित क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता था, जिसे अब ‘भारत द्वारा अवैध कब्जे’ के रूप में वर्णित किया गया है।
- हालाँकि, पाकिस्तान द्वारा चीन के साथ लगने वाली कश्मीर और लद्दाख की सीमा को चिह्नित व स्पष्ट नहीं किया गया है और इसको खुला छोड़ते हुए ‘अनिर्धारित सीमा क्षेत्र’ के रूप में वर्णित किया गया है।
- नए मानचित्र में एक और बदलाव किया गया है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को सर क्रीक के पूर्वी किनारे पर दिखाया गया है। इसी प्रकार, सियाचीन को पाकिस्तान का हिस्सा दिखाते हुए, नियंत्रण रेखा को कराकोरम दर्रे तक बढ़ा दिया गया है।
- साथ ही, इस्लामाबाद में एक प्रमुख सड़क का नाम बदलकर श्रीनगर राजमार्ग कर दिया गया है। पहले इस सड़क को कश्मीर राजमार्ग के नाम से जाना जाता था। ऐसे कयास हैं कि कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने के इरादे से ये घोषणा की गई है।
भारत का पक्ष
भारत ने पाकिस्तान के ‘नए राजनीतिक मानचित्र’ को राजनीतिक अर्थहीनता का प्रयास कहा है। यह भारतीय राज्य के प्रदेशों पर पाकिस्तान का अपुष्ट और अस्थिर दावा है। इन हास्यास्पद दावों की न तो कोई कानूनी वैधता है, और न ही कोई अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता।
भारत ने इस नक्शे को पाकिस्तान के द्वारा सीमा-पार आतंकवाद के बल पर अन्य देशों के क्षेत्रों पर अतिक्रमण करने के जुनून के रूप में संदर्भित किया है।
कारण- राजनीतिक, कूटनीतिक व रणनीतिक
कूटनीतिक कारण
- पाकिस्तान का नया नक्शा कूटनीतिक संकेतक बने रहने के लिये ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री के अनुसार, पकिस्तान का लक्ष्य श्रीनगर है।
- इस बीच, यह कदम भारत के पड़ोसी देशों को सीमा विवाद के मुद्दे पर एक साथ लाकर और चीन के साथ द्विपक्षीय साझेदारी का उपयोग करके भारत को घेरने का एक प्रयास भी है।
- पाकिस्तान की वर्तमान स्थित किसी भी प्रकार से सैन्य विकल्प का सीधा प्रयोग करने की नहीं है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान की यह रणनीति किसी सैन्य विकल्प की अनुपस्थिति पर आधारित है, जो पाकिस्तान के लोगों के साथ-साथ भारत के लिये भी इस मुद्दे को जीवित रखने का एकमात्र कूटनीतिक तरीका है।
- कश्मीर में पिछले वर्ष के बदलाव के बाद पाकिस्तान के पास इस मुद्दे को वैश्विक रूप से जीवित रखने के लिये, इसको कूटनीतिक रूप से लड़ने या एक प्रतिस्पर्धात्मक कहानी बनाने का ही विकल्प बचा था। इस मानचित्र के पीछे की भी सोच यही है।
रणनीतिक कारण
- जूनागढ़ के घटनाक्रम का उपयोग भारत और पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रीय विवादों में कानूनी, नैतिक और राजनीतिक बिंदुओं को उठाने के लिये किया जाता रहा है। मुख्य रूप से कश्मीर के मामले में जूनागढ़ का भारत में शामिल होने की घटना महत्त्वपूर्ण है।
- इसके अलावा, पाकिस्तान वहाँ सक्रिय विभिन्न कट्टरपंथी संस्थाओं का समर्थन करता है। हालाँकि, जूनागढ़ के मामले में ऐसा नहीं है।
- तथाकथित आज़ाद जम्मू-कश्मीर (AJK)के प्रमुखने हाल ही में कहा था कि 9/11 की घटना ने कश्मीर में संघर्ष (आतंकवाद) का आधार ही बदल दिया है। विश्व में अब धार्मिक उग्रवाद के प्रति सहानुभूति काफी कम हो गई है, मुद्दा चाहे कुछ भी हो। अत: अब पाकिस्तान विवादित मुद्दों को धार्मिक के साथ-साथ मानवाधिकार, ज़बरन कब्ज़े और सीमाई व राजनीतिक विवाद से जोड़ने के प्रयास में है।
- इसके अतिरिक्त, अमेरिका में अगले राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र भी पाकिस्तान इस मुद्दे की रणनीतिक प्रकृति को ज़िंदा रखना चाहता है। पाकिस्तान,अमेरिका में सत्ता परिवर्तन की स्थिति में कश्मीर मुद्दे पर अमेरिकी रुख में बदलाव की उम्मीद में है।
- यह भी एक तर्क है कि पाकिस्तान का नक्शा नवम्बर में भारत द्वारा जारी किये गए मानचित्र की प्रतिक्रिया है, जो गिलगिट-बाल्टिस्तान और ए.जे.के. को क्रमशः लद्दाख और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेशों के हिस्से के रूप में दिखाता है।विदित है किये क्षेत्र भारत द्वारा हमेशा जम्मू और कश्मीर राज्य के हिस्से के रूप में दिखाए जाते रहे हैं।
राजनीतिककारण
- पाकिस्तान का यह कदम इमरान खान और सेना प्रमुख की लोकप्रियता को बरक़रार रखने में सहायक होगा। इससे यह भी संदेश जाएगा कि सरकार और सेना कश्मीर मुद्दे पर किसी भी प्रकार का समझौता करने के पक्ष में नहीं है। इससे इमरान की साख मज़बूत होने के साथ-साथ रक्षा बजट में वृद्धि को भी तार्किक सिद्ध किया जा सकेगा।
- ए.जे.के. के प्रमुख फारुख हैदर, सेना और पाकिस्तान के धार्मिक कट्टरपंथियों ने बीते एक वर्ष में इमरान खान सरकार पर कश्मीर मामले में कुछ न कर पाने के कारण काफी दबाव बनाया है। यह कदम इसका भी एक नतीजा है।
- इसके अतिरिक्त, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की कार्यवाही से ध्यान हटाने तथा कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा के शिविर को मुज़फ्फराबाद से नीलम और झेलम घाटियों की ओर स्थानांतरित किया जाने का भी यह एक प्रयास है।
- वित्तीय समस्याओं और एक नकारात्मक छवि के बीच पाकिस्तान का यह प्रयास सुरक्षा बनाम विकास के मुद्दे को जारी रखने का एक तरीका है।
- इसको भारत के मुस्लिम-विरोधी घरेलू नीति और कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रचार द्वारा मुस्लिम देशों का सहयोग पाने के रूप में भी देखा जा रहा है। मानवाधिकारों के मुद्दे पर अधिक सफलता न मिलने के बाद पाकिस्तान, भारत को पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद करने वाले देश के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है।
प्रभाव
- इस मानचित्र द्वारा पाकिस्तान के सिंध प्रांत और गुजरात के पास स्थित सर क्रीक के एक पुराने सीमा विवाद को पुनः जन्म दे दिया गया है।विशेष रूप से, कश्मीर और सर क्रीक में पाकिस्तान की कुछ क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाओं के लिये कानूनी कवर प्रदान करने में इस मानचित्र का उपयोग किया जा सकता है।
- सर क्रीक जल निकायों का एक संग्रह है, जो अरब सागर से कच्छ के इलाके के भीतरी क्षेत्र तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र जैव विविधता और मैंग्रोव जंगलों से समृद्ध है।
- सर क्रीक पर भारत की स्थिति वर्ष 1966-69 के कच्छ मध्यस्थता मामले पर आधारित है।नए नक्शे का उपयोग पाकिस्तान के उन दावों को पुनः पुष्ट करने के लिये किया जा सकता है। सर क्रीक के बारे में भारत की स्थिति इस तथ्य पर आधारित है कि मध्यस्थता द्वारा पूरे रण और उसके दलदली क्षेत्रों को भारत को सौंप दिया था।
- पाकिस्तान का नया कदम सैद्धांतिक रूप से आक्रामक परंतु व्यावहारिक रूप से कमज़ोर है। इस प्रयास को पाकिस्तान की सैन्य विकल्पों पर अधिक निर्भरता से हटकर कूटनीति की ओर बढ़ने के रूप में देखा जा रहा है।
- नक्शे में भारत के साथ क्षेत्रीय विवादों पर पाकिस्तान की स्थिति में बदलाव की सम्भावना है। पाकिस्तान कश्मीर सम्बंधी बातचीत की मुख्य विशेषताओं को बदल रहा है क्योंकि इस नक़्शे में जम्मू क्षेत्र को प्रमुखता से शामिल किया गया है।
- पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के पूर्वी छोर पर सीमा को रेखांकित नहीं कियाहै, जो कश्मीर मुद्दे में चीन को तीसरा पक्ष बनाने की मंशा को दर्शाता है। यह स्पष्ट रूप से शिमला समझौते का विरोध करना है, जिसमें कश्मीर को द्विपक्षीय मामला माना गया है। चीन-भारत संघर्ष के बीच इस प्रयास द्वारा पाकिस्तान, कश्मीर मुद्दे को वैश्विक स्तर पर पुनः वापस लाने की कोशिश में है।
- पाकिस्तान सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर के लिये तो दावा करता है परंतु सम्पूर्ण लद्दाख के लिये नहीं। यह जम्मू-कश्मीर के पूर्ववर्ती शाही राज्य के सभी छह हिस्सों (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, गिलगिट-बाल्टिस्तान, पी.ओ.के. और अक्साई चिन) के भविष्य के बारे में भारत के साथ मिलकर निर्णय करने की उसकी प्रतिबद्धता के खिलाफ है।
- दक्षिण एशियाई देशों और भारत के बीच बढ़ती दूरी पाकिस्तान के लिये फायदेमंद है। साथ ही, चीन, ईरान और पाकिस्तान के बीच सम्बंधों को सुचारू बनाने की कोशिश में है।
निष्कर्ष
‘कश्मीर मुद्दे’ के बारे में कहा जाता था कि भारत के पास कश्मीर है, जबकि पाकिस्तान के पास मुद्दा। वास्तविक डर यह है कि कुछ भी न कर पाने की स्थिति में पाकिस्तान के पास मुद्दों को ज़िंदा रखने में भी कठिनाई भी होगी। पाकिस्तान निश्चित रूप से इच्छा और वास्तविकता के बीच एक बड़ी खाई का भी सामना कर रहा है। यह एक तथ्य है कि अनुच्छेद 370 के निरसन ने पाकिस्तान को बलपूर्वक प्रतिक्रिया देने का बहुत कम अवसर दिया है। हालाँकि, पाकिस्तान के क्षेत्रीय दावे अतीत की समझ और संधियों से कई गुना अधिक हैं। मानचित्र में ज़मीनी वास्तविकता को भी स्वीकार किया गया है क्योंकि कश्मीर में नियंत्रण रेखा को लाल-बिंदीदार रेखा से दर्शाया गया है।