हाल ही में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लोनार झील (महाराष्ट्र) तथा सूर सरोवर (उत्तर प्रदेश) को रामसर स्थल घोषित किया गया है। रामसर अभिसमय के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के मान्यता प्राप्त स्थलों की सूची में अब भारत की आर्द्रभूमियों की संख्या 41 हो गई है, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है।
लोनार झील देश की एकमात्र क्रेटर झील है, जिसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल में उल्का पिंड के टकराने की वजह से हुआ था। खारे पानी की यह झील महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले में स्थित है।
सूर सरोवर को कीथम झील के नाम से भी जान जाता है और यह उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले में अवस्थित है। पंचकोणीय आकार वाली इस झील के किनारे अनेक पक्षी तथा मछलियाँ पाई जाती हैं। साथ ही, यहाँ मानव-निर्मित टापू भी बने हुए हैं। दंतकथाओं के अनुसार, इस झील का नाम नेत्रहीन कवि सूरदास के नाम पर पड़ा जिन्हें यहां पर भक्ति काव्य की रचना की प्रेरणा मिली थी। उत्तर प्रदेश की यह आठवीं आद्रभूमि है। इसे वर्ष 1991 में राज्य वन विभाग ने राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य भी घोषित किया था।
ध्यातव्य है की इससे पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा रामसर अभिसमय के तहत बिहार के बेगूसराय में स्थित काबरताल (राज्य में पहली आर्द्रभूमि) को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में मान्यता दी गई थी। साथ ही उत्तराखंड के पहले आर्द्रभूमि के रूप में देहरादून के आसन संरक्षण रिज़र्व को भी इस सूची में जोड़ा गया था।
रामसर अभिसमय
रामसर अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की पारिस्थितिक विशेषताओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से 2 फरवरी 1971 को सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षरित सबसे पुराने अंतर-सरकारी समझौते में से एक है।
ईरान के रामसर शहर में इस संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे इस कारण इसके तहत संरक्षण के लिये चुने गए स्थानों को 'रामसर स्थल' के नाम से जाना जाता है। रामसर कन्वेंशन के अंतर्गत 170 से अधिक सदस्य देशों के 2,000 से अधिक स्थलों को नामित किया गया है।