(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: विषय- भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना, संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से सम्बंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ, संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)
हाल ही में, गृह मंत्रालय (MHA) ने केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में प्रशासन के लिये नए नियमों की अधिसूचना जारी की है। इन नियमों द्वारा उपराज्यपाल (Lieutenant Governor– LG) तथा मंत्रिपरिषद को कार्य संचालनके लिये विभिन्न निर्देश दिये गएहैं।नियमों को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत अधिसूचित किया गया है।
पृष्ठभूमि:
- 6 अगस्त, 2019 को, भारत की संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया गया था एवं संविधान के अनुच्छेद 370 को संशोधित कर राज्य को जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख, दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभक्त कर दिया गया था।
- इस कदम के बाद कई नागरिक समूहों ने विरोध जताया था और जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली की माँग की थी। उच्चतम न्यायालय में एक याचिका भी दाखिल की गई थी,जिसमें धारा 370 में हुए फेरबदल की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
- जम्मू कश्मीर में इस बड़े राजनैतिक, प्रशासनिक बदलाव के बाद हाल ही में पाकिस्तान ने अपना एक नया राजनीतिक मानचित्र भी जारी किया था, जिसमें पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, सर क्रीक और जूनागढ़ को अपना हिस्सा बताया था।
- चीन ने भारत के इस कदम को अवैध ठहराते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में इस मुद्दे को उठाया था।
- ध्यातव्य है कि जम्मू-कश्मीर में जून, 2018 से कोई मुख्यमंत्री नहीं है एवं जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेशों में परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अगले वर्ष नए चुनाव कराए जाएँगे।
नए नियम-एक नज़र:
उपराज्यपाल की भूमिका एवं शक्तियाँ:
- उपराज्यपाल का केंद्र शासित प्रदेश की पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवाओं और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) पर सीधा नियंत्रण रहेगा अर्थात यदि वहाँ चुनाव होते हैं और मुख्यमंत्री चुने जाते हैं तो मुख्यमंत्री या उनकी मंत्रिपरिषद का उपराज्यपाल के कार्य में किसी भी प्रकार का कोई दखल नहीं होगा।
- ऐसे सभी प्रस्ताव या मामले मुख्यमंत्री को सूचित करते हुए मुख्य सचिव के माध्यम से अनिवार्यतः उपराज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किये जाएंगे, जिनसे केंद्र शासित प्रदेश की शांति-व्यवस्था प्रभावित हो सकती है या वे किसी अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के हितों को प्रभावित करते होंगे या करते हुए प्रतीत होंगे।
- यदि उपराज्यपाल तथा किसी मंत्री के बीच किसी प्रकार के मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है और यदि एक महीने के बाद भी वे लोग किसी समझौते पर नहीं पहुँच पा रहे हैं तो ‘उपराज्यपाल के फैसले को मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकृत’ माना जाएगा।
राष्ट्रपति की भूमिका:
- यदि किसी मामले में उपराज्यपाल तथा परिषद के बीच मतभेद होता है तो सम्बंधित मामले को उपराज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय के लिये केंद्र के पास भेजा जाएगा तथा तदोपरांत उपराज्यपाल राष्ट्रपति के निर्णयानुसार कार्य करेगा।
- ऐसी स्थिति में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को दिशा-निर्देश जारी करने के सभी अधिकार दिये गए हैं तथा मंत्रिपरिषद द्वारा की गई कार्रवाई भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्बंधित मामलों पर निर्णय लेने तक निलम्बित रहेगी।
मुख्यमंत्री तथा मंत्रिपरिषद की भूमिका:
- मुख्यमंत्री के नेतृत्त्व में मंत्रिपरिषद अखिल भारतीय सेवा के अलावा अन्य सेवाओं (राज्य स्तर)के अधिकारियों के सेवा मामलों, नए कर लगाने सम्बंधी प्रस्ताव, सरकारी सम्पत्ति की बिक्री, भूमि राजस्व, अनुदान अथवा पट्टे, विभागों और कार्यालयों के पुनर्गठन तथा कानूनों के मसौदों से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेगी।
- ऐसा कोई भी मामला जो केंद्रशासित प्रदेश की सरकार तथा किसी अन्य राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार के साथ विवाद उत्पन्न कर सकता हैउसे अति शीघ्र सम्बंधित सचिव के द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल तथा मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाएगा।
केंद्र सरकार की भूमिका:
नए नियमों के अनुसार उपराज्यपाल द्वारा निम्नलिखित प्रस्तावों के सम्बंध में केंद्र सरकार को पहले से सूचित किया जाएगा:
- किसी अन्य राज्य, भारत के उच्चतम न्यायालय अथवा किसी अन्य उच्च न्यायालय के साथ केंद्र के सम्बंधों को प्रभावित करने वाले सभी प्रस्ताव;
- मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति से जुड़े प्रस्ताव;
- ऐसे मामले जिनसे प्रदेश की शांति-व्यवस्था के भंग अथवा प्रभावित होने की सम्भावना हो; तथा
- ऐसे मामले जिनसे किसी अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्गों के हितों के प्रभावित होने की सम्भावना हो।
नए नियमों के निहितार्थ:
- जब जम्मू कश्मीर को एक राज्य के रूप में विशेष दर्जा प्राप्त था तब यहाँ के मुख्यमंत्री को निर्णय लेने की प्रक्रिया में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था।
- नए नियमों के द्वारा मुख्यमंत्री को मात्र एक अलंकारिक पद बना दिया गया है। इन नियमों के लागू हो जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्य मंत्री के पास जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक कांस्टेबल को स्थानांतरित करने की शक्ति भी नहीं होगी।
आगे की राह:
- अनुच्छेद 370 में संशोधन और विशेष राज्य का दर्जा लिये जाने के बाद से जम्मू कश्मीर क्षेत्र में सेना द्वारा ही शांति-व्यवस्था और प्रशासन की देख-रेख की जा रही थी, नए नियमों के आने के बाद अब यहाँ गैर-सैन्य प्रशासन की राहखुली है।
- प्रदेश के बहुत से क्षेत्रों में नए नियमों को लेकर रोष देखा जा सकता है लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के हालात अभी तक सुधरे नहीं हैं इसलियेवहाँ प्रशासन केमज़बूत होने से शांति व्यवस्था बहाली में कठिनाई नहीं आएगी।
- लोकतांत्रिक संघीय ढाँचे में राज्यों को भी स्वायत्तता प्राप्त होती है, लेकिन कई कानूनविदों का कहना है कि वर्तमान नियम संघीय ढाँचे के खिलाफ हैं और मुख्यमंत्री एवं उसकी मंत्रिपरिषद को भी पर्याप्त स्वायत्तता एवं अधिकार मिलने चाहियें।
- ऐसा हो सकता है कि भविष्य में केंद्र सरकार यहाँ के मुख्यमंत्री एवं उनकी मंत्रिपरिषद को और अधिकार प्रदान करे लेकिन शायद केंद्र सरकार उससे पहले क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना चाह रही है।
(स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस)