( प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विषय- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष।)
हाल ही में,वैज्ञानिकों ने शुक्र के कठोर अम्लीय बादलों में फॉस्फीन नामक एक गैस का पता लगाया है, जो यह दर्शाता है कि पृथ्वी के इस सबसे दुर्गम पड़ोसी ग्रह पर सूक्ष्म जीवों का जीवन भी सम्भव है।
मुख्य बिंदु:
- अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने पहली बार हवाई में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप (James Clerk Maxwell Telescope-JCMT) का उपयोग करते हुए फॉस्फीन गैस को देखा और चिली में अटाकामा लार्ज मिलिमीटर / सबमिलिमीटर एरे (Atacama Large Millimeter/Submillimeter Array -ALMA) रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करके इसकी पुष्टि की।
- JCMT दुनिया की सबसे बड़ी खगोलीय दूरबीन है, जिसे विशेष रूप से स्पेक्ट्रम के सबमिलिमेट्री तरंगदैर्ध्य क्षेत्र में संचालित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- अल्मा (ALMA) वर्तमान में दुनिया में सबसे बड़ी रेडियो दूरबीन है।
- वैज्ञानिकों ने ‘बायोसिग्नेचर्स (जीवन के अप्रत्यक्ष संकेतों)’ की अन्य ग्रहों पर खोज के लिये दूरबीनों और विभिन्न जाँच सामग्रियों का प्रयोग किया है।
फॉस्फीन:
- तीन हाइड्रोजन परमाणुओं व एक फास्फोरस परमाणु से मिलकर बनी फॉस्फीन गैस (PH3)अत्यधिक विषाक्त गैस मानी जाती है।
- ऐसा माना जाता है कि चट्टानी जगहों पर यह केवल एक जैविक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न हो सकती है, प्राकृतिक रूप से होने वाली किसी भी रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से नहीं।
- हालाँकि, शुक्र पर फॉस्फीन का पाया जाना आश्चर्यजनक है, क्योंकि शुक्र की सतह और वहाँ का वातावरण ऑक्सीजन यौगिकों से समृद्ध हैं , जो तेज़ी से फॉस्फीन के साथ अभिक्रिया करके उसे आसानी से नष्ट कर सकते हैं।
- शुक्र के वायुमंडल में फॉस्फीन की सांद्रता 20 भाग-प्रति-बिलियन (parts-per-billion) की पाई गई है।
- शोधकर्ताओं ने सम्भावित गैर-जैविक स्रोतों, जैसे-ज्वालामुखी, उल्कापिंड, बिजली और विभिन्न प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रियाओं की जाँच की, लेकिन इनमें से कोई भी इस गैस की उत्पत्ति के कारक के रूप में दृष्टिगत नहीं हुआ।
- इससे पहले वर्ष 2011 में, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के मिशन ‘वीनस एक्सप्रेस’ को शुक्र के ऊपरी वातावरण में ओज़ोन के रूप में जैव-चिन्ह (बायो-सिग्नेचर) के संकेत मिले थे।
- फॉस्फीन प्राकृतिक रूप से एनरोबिक बैक्टीरिया की कुछ प्रजातियों द्वारा उत्पन्न हो सकती है – विशेषकर उन जीवों द्वारा,जो लैंडफिल, मार्शलैंड जैसे अति निम्न ऑक्सीजन वातावरण में रहते हैं।
- फॉस्फीन का उत्पादन करने के लिये, पृथ्वी के बैक्टीरिया खनिजों या जैविक सामग्री से फॉस्फेट लेते हैं और हाइड्रोजन को जोड़ते हैं।
- कुछ औद्योगिक कार्यों के लिये फॉस्फीन गैर-जैविक रूप में भी उत्पन्न की जाती है।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रासायनिक हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल किया गया था।
- फ़ॉस्फ़ीन का अभी भी कृषि फ्यूमिगेंट (Agricultural Fumigant) के रूप में उत्पादन किया जाता है। इसका उपयोग अर्धचालक उद्योग में किया जाता है और यह मेथ लैब का एक उप-उत्पाद भी है।
शुक्र का अध्ययन क्यों?
- शुक्र पृथ्वी का निकटतम ग्रह है। इसकी संरचना पृथ्वी के समान ही है, लेकिन यह पृथ्वी से थोड़ा छोटा व सूर्य से दूसरे नम्बर का ग्रह है। इस क्रम में पृथ्वी तीसरे नम्बर पर आती है।
- शुक्र एक मोटे, विषैले वातावरण से घिरा हुआ है जो गर्मी को सोखता है। इसकी सतह का तापमान अत्यधिक होता है, जो 880 डिग्री फ़ारेनहाइट (471 डिग्री सेल्सियस) तक पहुँच जाता है। ध्यातव्य है कि इस तापमान पर लोहा भी पिघल जाता है।
- पृथ्वी से दूर किसी अन्य ग्रह पर फॉस्फीन का पाया जाना वहाँ जीवन की सम्भावना के लिये सबसे विश्वसनीय प्रमाण है।
शुक्र पर जीवन की खोज:
- शुक्र के बारे में कई ऐसी बातें हैं,जिनसे शुक्र पर जीवन के अस्तित्व का पता चलता है।
- लेकिन शुक्र के तापमान का बहुत अधिक होना और इसके वातावरण का अत्यधिक अम्लीय होना, यह दो ऐसी चीजें हैं जो शुक्र पर जीवन को असम्भव बना देती हैं।
- यद्यपि पृथ्वी से बाहर किसी अन्य ग्रह पर व्यवस्थित जीवन की कल्पना करना अभी बहुत जल्दी होगी।
भविष्य की राह:
- शुक्र पर मिशन का भेजा जाना कोई नई बात नहीं है। फॉस्फीन गैस की यह खोज शुक्र पर भेजे जाने मिशनों की सम्भावना को बढ़ा सकती है।
- 1960 के दशक से तमाम अंतरिक्ष यान ग्रह के पास से गुज़रे हैं और उनमें से कई ने बाकायदा शुक्र पर लैंडिंग भी की है।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भी निकट भविष्य में शुक्र ग्रह के लिये एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसका सम्भावित नाम शुक्र यान रखा गया है।
- यद्यपि इस योजना पर अभी कार्य शुरू नहीं हुआ है। अब शुक्र के सभी भविष्य के मिशनों को जीवन की उपस्थिति और सुबूतों की जाँच करने के लिये तैयार किया जाएगा।