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आर्कटिक महासागर संबंधी नया अध्ययन

(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- जलवायु परिवर्तन)

संदर्भ 

नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2030 से पहले आर्कटिक महासागर में फर्स्ट आइस-फ्री डे (First Ice-Free Day) अर्थात कोई एक दिन ऐसा हो सकता है जो हिमरहित हो। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ गोथेनबर्ग (स्वीडन) की सेलिन ह्यूजे और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर (अमेरिका) की एलेक्जेंड्रा जहान ने किया।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष 

  • अध्ययन के अनुसार शुरुआत में हिमरहित दिन तेजी से बर्फ पिघलने की घटना के दौरान होते हैं। शुरुआत में हिमरहित स्थिति के लिए तीव्र परिवर्तन केवल गर्मियों में ही नहीं होता है, बल्कि इसमें शरद ऋतु, शीतकाल एवं वसंत के दौरान समुद्री बर्फ के आवरण में कमी भी शामिल होती है।
    • इसके अलावा तूफानी मौसम भी तेजी से पिघलने का कारण बन सकता है। 
  • हालाँकि, पहली बार ‘फर्स्ट आइस-फ्री डे’ की तिथि को लेकर अनिश्चितता है किंतु इस परिघटना के घटित होने को लेकर वैज्ञानिकों में आम सहमति है। ऐसी स्थिति की रोकथाम का एकमात्र तरीका ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन में शीघ्रता से कमी लाना है। 
  • अध्ययन के अनुसार, फर्स्ट आइस-फ्री डे अगले कुछ वर्षों में होगा। हालांकि इसके बाद इस प्रकार की स्थिति कई बार भी बन सकती है। 
    • जलवायु मॉडल सिमुलेशन के अनुसार आइस-फ्री डेज की अवधि 11 से 53 दिनों के बीच रह सकती है।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन एवं नाइट्रस ऑक्साइड की वैश्विक औसत सतह सांद्रता पहले ही बहुत तेजी से बढ़ चुकी है। 
  • एम.आई.टी. क्लाइमेट पोर्टल की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 40 वर्षों में समुद्री बर्फ की मात्रा प्रत्येक दशक में 12.6% की दर से घट रही है, जो कि कम-से-कम विगत 1,500 वर्षों में कभी नहीं हुआ। 

आर्कटिक महासागर में समुद्री बर्फ के समाप्त होने के दूरगामी परिणाम 

  • जलवायु परिवर्तन की तीव्रता में वृद्धि : आर्कटिक महासागर में बर्फ के समाप्त होने से जलवायु परिवर्तन की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है जो एल्बिडो में होने वाले परिवर्तन के कारण हो सकता है। 
    • एल्बिडो सौर विकिरण का वह अंश होता है जो पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष में वापस परावर्तित हो जाता है जिससे पृथ्वी के तापमान में संतुलन बना रहता है। बर्फ का एल्बिडो सर्वाधिक होता है क्योंकि इसकी चमकदार व सफेद सतह द्रवित जल की तुलना में सूर्य के अधिक प्रकाश को अंतरिक्ष में वापस परावर्तित करती है।
    • वैज्ञानिकों के अनुसार, बर्फ के लुप्त हो होने से आर्कटिक अतिरिक्त रूप से अधिक गर्म हो जाएगा, जिससे मध्य अक्षांशों में और अधिक चरम मौसमी घटनाएं शुरू हो जाएंगी।
  • समुद्र के जलस्तर में वृद्धि : इसका एक अन्य परिणाम समुद्र के स्तर में होने वाली वृद्धि है। विगत 10 वर्षों में वैश्विक समुद्र स्तर 1990 के दशक की तुलना में 1.5 गुना तेज़ी से बढ़ रहा है। वर्तमान में समुद्र का औसत स्तर वार्षिक 3.6 मिमी. की दर से बढ़ रहा है।
    • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अटलांटिक एवं आर्कटिक महासागर के बीच स्थित ग्रीनलैंड का हिमक्षेत्र पूर्णतया पिघल जाए तो वैश्विक समुद्र स्तर छह मीटर बढ़ सकता है। इससे विश्व भर के तटीय समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव : समुद्री बर्फ के लुप्त होने से उस पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्रों पर नकारात्मक प्रभाव होगा। 
  • वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फ़ंड (WWF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘बर्फ का कम होना और पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना ध्रुवीय भालू, वालरस, आर्कटिक लोमड़ी, बर्फीले उल्लू, बारहसिंगा एवं कई अन्य प्रजातियों के लिए परेशानी का कारण बनता है। जैसे-जैसे वे प्रभावित होते हैं, वैसे-वैसे उन पर निर्भर रहने वाली अन्य प्रजातियाँ भी प्रभावित होती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, समुद्री बर्फ पिघलने के कारण कई प्रजातियों को शिकार के लिए ज़मीन पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। समुद्री जानवर ठंडे पानी की तलाश में उत्तर की ओर बढ़ रहे हैं।
  • ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवीय क्षेत्रों में आर्कटिक बाकी ग्रह की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है जिससे वहां रहने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र, बुनियादी ढांचे व आजीविका को खतरा हो रहा है।
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