(प्रारंभिक परीक्षा : भारतीय राज्य तंत्र और शासन – अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा; सामान्य अध्ययन प्रश्पत्र -3 : उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सरकार द्वारा पेश की गईं तीन श्रम संहिताओं, औद्योगिक सम्बंध संहिता विधेयक, 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020 और उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता, विधेयक, 2020 को लोकसभा द्वारा स्वीकृति दे दी गई है।
पृष्ठभूमि
सरकार द्वारा 44 पुराने श्रम कानूनों को मिलाकर चार श्रम संहिता बनाने का निर्णय लिया गया था, जिनमें से मज़दूरी सम्बंधी संहिता को संसद द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है और यह लागू भी हो चुकी है।
नए प्रावधान
- औद्योगिक सम्बंध संहिता विधेयक, 2020
- इस संहिता का उद्देश्य निश्चित अवधि वाले कर्मचारियों की सेवा-शर्तों, वेतन, छुट्टी और सामाजिक सुरक्षा को नियमित कर्मचारियों के समान करना है।
- इस संहिता में औद्योगिक विवाद निपटान प्रणाली को सुगम बनाया गया है।
- इस संहिता में हड़ताल पर जाने से पूर्व 14 दिन की नोटिस अवधि की सीमा सभी संस्थानों में लागू होगी।
- श्रमिकों के लिये आचार संहिता को लागू करने के लिये औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्रमिकों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 300 कर दिया गया है।
- छंटनी (Retrenchment) किये गए श्रमिकों के पुनः कौशल हेतु नियोक्ता द्वारा श्रमिक के पिछले 15 दिनों के बराबर की राशि के योगदान से रि-स्किलिंग फंड स्थापित किया जाएगा।
सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों तथा स्वरोज़गार श्रमिकों के लिये ‘सामाजिक सुरक्षा कोष’ के निर्माण का प्रावधान किया गया है।
- कर्मचारी राज्य बीमा निगम की सुविधाओं का विस्तार अब असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों, गिग श्रमिकों (ऐसे श्रमिक, जिन्हें केवल ज़रूरत के समय ही रखा जाता है) और प्रवासी श्रमिकों तक किया जाएगा।
- जोखिम से जुड़े क्षेत्रों में कार्य करने वाले सभी प्रतिष्ठान कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) के दायरे में आएँगे तथा किसी संगठन में 20 से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं तो वहाँ कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के प्रावधान लागू होंगे।
- विभिन्न वर्गों के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और अनुबंधित श्रमिकों के लिये उपयुक्त योजना के निर्माण हेतु केंद्र सरकार को सिफारिश करने के लिये ‘राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड’ की स्थापना की जाएगी।
- विधेयक में करियर सेंटर, एग्रीगेटर, गिग वर्कर और वेज सीलिंग जैसे कई शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता, 2020 विधेयक
- इस संहिता में कर्मचारियों के लिये नियोक्ता के कर्तव्यों का जिक्र किया गया है, जैसे- सुरक्षित कार्यस्थल, कर्मचारियों की मुफ्त सालाना स्वास्थ्य जाँच व्यवस्था और असुरक्षित कार्य स्थितियों के बारे में सम्बंधित श्रमिकों को सूचित करना आदि।
- अवकाश के नए नियमों के तहत अब कोई श्रमिक 240 दिन के स्थान पर 180 दिन कार्य करने के पश्चात ही छुट्टी प्राप्त करने का हकदार बन जाता है।
- कार्यस्थल पर किसी कर्मचारी को चोट लगने पर उसे 50% का हर्ज़ाना मिलेगा।
- सभी प्रतिष्ठानों में सभी प्रकार के कार्यों हेतु महिलाओं को रोज़गार प्रदान करना होगा। नए प्रावधानों के अंतर्गत वे अपनी सहमति और शर्तों के साथ रात में भी कार्य कर सकती हैं।
नए प्रावधानों से लाभ
- नए प्रावधानों से श्रमिकों, उद्योग जगत और अन्य सम्बंधित पक्षों के मध्य सामंजस्य स्थापित होगा।
- सामाजिक सुरक्षा कोष की सहायता से असंगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले श्रमिकों को मृत्यु बीमा, दुर्घटना बीमा, मातृत्व लाभ और पेंशन का लाभ प्राप्त होगा।
- प्रवासी श्रमिक की परिभाषा में विस्तार से उन्हें कई सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। साथ ही प्रवासी मज़दूरों के लिये मालिक को वर्ष में एक बार यात्रा भत्ता देना होगा।
- नए परिवर्तनों से मज़दूरों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होने के साथ ही कारोबारी सुगमता के कारण विदेशी निवेशक भारत में निवेश के लिये आकर्षित होंगे।
चुनौतियाँ
- नए प्रावधान नियोक्ताओं के हितों के अनुकूल दिखाई पड़ते हैं। ये नियोक्ताओं को सरकार की अनुमति के बिना श्रमिकों को कार्य पर रखने और निकालने सम्बंधी प्रावधानों में अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं।
- विभिन्न सुरक्षा उपायों के बावजूद महिलाओं को रात के समय कार्य करने की अनुमति देने से उनके प्रति यौन शोषण की प्रवृत्ति में वृद्धि हो सकती है।
- संशोधित प्रावधान हड़तालों और प्रदर्शनों पर प्रतिबंध से औद्योगिक कर्मियों की स्वंत्रता को सीमित करते हैं।
- नए प्रावधानों के तहत श्रमिकों को निर्माण कार्यस्थल के समीप अस्थाई आवास की व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया है, जिससे इन श्रमिकों के आवास तथा परिवहन की समस्या उत्पन्न होगी।
निष्कर्ष
- काफी समय से लम्बित और बहुप्रतीक्षित श्रम सुधार संसद द्वारा पारित किये गये हैं। ये सुधार श्रमिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के साथ ही आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देंगे। वास्तव में ये श्रम सुधार न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के उम्दा उदाहरण हैं।
- कोविड-19 महामारी के बाद बदले हुए आर्थिक परिदृश्य में श्रमिकों के अधिकारों और आर्थिक सुधारों में संतुलन आवश्यक है। किसी एक पक्ष का समर्थन करने से दीर्घकाल में देश के समावेशी विकास के लक्ष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।