(मुख्य परीक्षा- सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)
संदर्भ
जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य से कम होना न केवल भारत बल्कि दुनिया के कई देशों के लिये स्वास्थ्य से जुड़ा एक बहुत बड़ा मुद्दा है। इस संदर्भ में भारत में नवजातों को लेकर किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि जन्म के समय बच्चे का वजन सामान्य से कम होना उसके बौद्धिक और मानसिक विकास पर असर डाल सकता है। जो आगे चलकर अर्थव्यवस्था के लिये भी हानिकारक हो सकता है, क्योंकि भविष्य में ये बच्चे ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनेंगे।
वजन का सामान्य से कम होना
- मानक: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार जन्म के समय यदि किसी बच्चे का वजन ढाई किलोग्राम (2,500 ग्राम) से कम होता है तो उसे सामान्य वजन से कम माना जाता है।
- शोधकर्ता एजेंसी: सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (CDDEP) के शोधकर्ताओं द्वारा सैम ह्यूस्टन विश्वविद्यालय और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS) से किये गए इस अध्ययन के मुताबिक भारत में करीब 18 फीसदी नवजातों का वजन उनके जन्म के समय सामान्य से कम होता है।
- वैश्विक स्थिति: अध्ययन के अनुसार विश्व भर में लगभग 15 से 20 फीसदी बच्चे कम वजन के साथ पैदा होते हैं। ऐसे शिशुओं में जन्म के पहले महीने में मृत्यु का जोखिम अन्य बच्चों की तुलना में कहीं अधिक होता है। इनमें से जो बच्चे जीवित रह जाते हैं, उनके मानसिक और बौद्धिक विकास पर इसका बुरा असर पड़ता है।
बौद्धिक और संज्ञानात्मक विकास पर प्रभाव
- इस शोध में भारत में जन्म के समय नवजात बच्चों के वजन और पाँच से आठ वर्ष की आयु में उनके बौद्धिक और संज्ञानात्मक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया गया है।
- निष्कर्ष के अनुसार, बच्चों में जन्म के समय शारीरिक विकास पूरी तरह न हो पाने का प्रभाव उनकी बौद्धिक क्षमता पर भी पड़ता है। जन्म के समय बच्चे के वजन में आई सिर्फ 10 फीसदी की वृद्धि, 5 से 8 वर्ष की आयु में उसके संज्ञानात्मक परीक्षण स्कोर में 0.11 अंक की वृद्धि कर सकती है।
स्वस्थ बच्चा-स्वस्थ समाज
- शोध के अनुसार संज्ञानात्मक परीक्षण स्कोर में जन्म के समय कम वजन का प्रभाव बच्चियों, ग्रामीण परिवारों सहित उन बच्चों के बौद्धिक विकास पर ज्यादा देखने को मिला था, जिनकी माताएँ कम शिक्षित थी।
- भारत में नवजातों की एक बड़ी आबादी का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। भारत में हर साल पैदा होने वाले 2.6 करोड़ बच्चे देश के आर्थिक विकास के लिये बहुत मायने रखते हैं। हालाँकि जन्म से पूर्व माताओं को समुचित पोषण न मिल पाने के कारण यह बच्चे जन्म के समय कुपोषित पैदा होते हैं।
- इस लिये यह अत्यावश्यक है कि भारत सहित दुनिया के उन पिछड़े देशों में स्वास्थ्य संबंधी नीतियों को इस तरह बनाया जाए, जिससे इन बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास सुनिश्चित हो सके। इसके लिये प्रसवपूर्व देखभाल और मातृ पोषण को सुदृढ़ किया जाना आवश्यक है।
- मातृ पोषण में सुधार होने से बच्चे स्वस्थ होंगे और तभी वे आगे चलकर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकेंगे। इस रूप में देश का आर्थिक विकास भी सुनिश्चित होगा।