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नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व हाथियों के आवास का क्षरण 

प्रारंभिक परीक्षा – एशियाई हाथी, नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व
मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र 3 – पर्यावरण संरक्षण

सन्दर्भ 

  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ओपन-एक्सेस जर्नल कंजर्वेशन में प्रकाशित एक अध्ययन “फेंसिंग कैन ऑल्टर जीन फ्लो ऑफ एशियन एलिफेंट पॉपुलेशन्स इन प्रोटेक्टेड एरियाज” के अनुसार नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व में लुप्तप्राय एशियाई हाथी के अधिकांश अनुकूल आवास का क्षरण हो चुका है।
  • अध्ययन में कहा गया है, कि मानव बस्तियों और फसल की खेती ने हाथियों की आवाजाही को बाधित किया है और उन्हें उप-इष्टतम आवास माने जाने वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित कर दिया है।

महत्वपूर्ण तथ्य 

west-coast

  • पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी तटरेखा के सामानांतर एक तटबंध है, इसमें पालघाट एक प्रमुख दर्रा है।  
  • पालघाट दर्रा पश्चिमी घाट में उत्तर तथा दक्षिण की हाथी आबादी को विभाजित करता है, इस विभाजन को कई शताब्दियों से कृषि गतिविधयों द्वारा परिवर्तित किया जा रहा है, इसकी सबसे संकरी दूरी 3 किमी और इसकी सबसे चौड़ी दूरी 40 किमी है। 
  • पालघाट के उत्तरी भाग में नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व और इसके आसपास के संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें जंगली हाथियों की सबसे बड़ी शेष आबादी निवास करती है।
  • पालघाट दर्रा, पहाड़ियों में एक गैप है जिसके अपेक्षाकृत सपाट होने के  कारण हाथियों द्वारा इसे आसानी से पार कर लिया जाता है, हालांकि मानव बस्तियों और फसलों की खेती ने हाथियों के आवागमन में बाधा डाली है,  और उन्हें पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित रखा है, जो उनके लिए उप-अनुकूल आवास माना जाता है।
  • इन उप-अनुकूल आवासों में, हाथियों के लिए खतरनाक क्षेत्र होने के कारण उनके जीवित रहने की संभावना कम होती है। 
  • अध्ययन के अनुसार जब ढलान वाले क्षेत्रों में हाथियों के रास्तों में बाधाएं उत्पन्न होती हैं तो उनका आवागमन अवरुद्ध हो जाता है। 
    • आवागमन के प्रतिबंधित होने से जीन प्रवाह कम हो जाता है, जो अधिक आंतरिक प्रजनन और कम आनुवंशिक विविधता का कारण बनता है, जिससे बीमारी की संभावना बढ़ जाती है, और प्रजनन दर कम हो जाती है, इससे इनके विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है।
  • हजारों वर्षों से हाथी दक्षिण-पूर्व एशिया में स्वतंत्र रूप से घूमते थे, लेकिन मानवजनित दबाव ने उन्हें पर्वत श्रृंखलाओं तक सीमित कर दिया है। 

नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व

  • नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व पश्चिमी घाट में स्थित है इसमें तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्से शामिल हैं। 
  • यह वर्ष 1986 में स्थापित  भारत का पहला बायोस्फीयर रिजर्व था।
  • मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली इस बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर मौजूद संरक्षित क्षेत्र हैं। 
  • नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व प्रायद्वीपीय भारत के महत्वपूर्ण जलग्रहण क्षेत्रों में से एक है, कावेरी नदी की कई प्रमुख सहायक नदियाँ जैसे भवानी, मोयार, काबिनी और अन्य नदियाँ जैसे चालियार, पुनमपुझा आदि का  जलग्रहण क्षेत्र इस आरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं।
  • नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व, उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों, पर्वतीय शोलों और घास के मैदानों, अर्ध-सदाबहार वनों, नम पर्णपाती वनों, शुष्क पर्णपाती वनों और कंटीले वनों जैसे पारिस्थितिक तंत्रों को आश्रय देता है। 
  • नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है, इसमें फूलों के पौधों की लगभग 3500 प्रजातियाँ, स्तनधारियों की 100 से अधिक प्रजातियाँ, पक्षियों की 550 प्रजातियाँ, सरीसृप और उभयचरों की 30 प्रजातियाँ, तितलियों की 300 प्रजातियाँ, और बड़ी संख्या में अकशेरूकीय और कई अन्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • नीलगिरी तहर, नीलगिरी लंगूर, पतला लोरिस, ब्लैकबक, बाघ, गौर, और भारतीय हाथी यहां पाए जाने वाले प्रमुख जानवर हैं।
  • नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व में टोडस, कोटा, इरुल्लास, कुरुम्बास, पनियास, अदियान, एडानाडन चेट्टी, चोलनाइकेन, अलार, मलायन आदि जैसे जनजातीय समूह भी पाए जाते हैं।

एशियाई हाथी

  • एशियाई हाथी, एशिया महाद्वीप पर सबसे बड़ा स्थलीय स्तनपायी है।
  • एशियाई हाथी अपने अफ्रीकी समकक्षों की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे होते हैं।
  • एशियाई हाथियों की तीन उप-प्रजातियां हैं – भारतीय हाथी, सुमात्रा हाथी और श्रीलंका हाथी।
  • IUCN रेड लिस्ट स्थिति - संकटग्रस्त
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम - अनुसूची I 
  • CITES - परिशिष्ट I
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