प्रारंभिक परीक्षा – जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 – जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ |
सन्दर्भ
- हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 (7) को अवैध घोषित करने की मांग करने वाली याचिका को ख़ारिज कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया कि यह राजनीतिक लोकतंत्र से संबंधित एक मुद्दा है और इसे संसद को तय करना चाहिए।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 (7) के विरुद्ध यह कहते हुए याचिका दायर की गई थी कि यह धारा एक व्यक्ति, एक वोट, एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र के लोकतंत्र के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) एक व्यक्ति को एक ही समय में अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति देती है।
- 2018 में केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर आपत्ति जताई थी।
- केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि कानून किसी उम्मीदवार के चुनाव लड़ने के अधिकार को और उम्मीदवारों की राजनीतिक पसंद को कम नहीं कर सकता है।
- सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि एक उम्मीदवार द्वारा एक चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के लिए एक विधायी संशोधन की आवश्यकता होगी।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33(7)
- संविधान द्वारा संसद को संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव से संबंधित प्रावधान करने की अनुमति प्रदान की गयी है।
- इसके अंतर्गत संसद ने निम्नलिखित कानून बनाए हैं -
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951
- परिसीमन आयोग अधिनियम 1952
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 जनप्रतिनिधियों की योग्यता और अयोग्यता से संबंधित है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) एक व्यक्ति को एक ही समय में अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति देती है।
- जब कोई उम्मीदवार दो सीटों से चुनाव लड़ता है, तो उसे दोनों सीटों पर जीत हासिल करने पर दोनों में से एक को छोड़ना पड़ता है, इसके बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव कराया जाता है।
धारा 33(7) की संवैधानिक वैधता
- राजा जॉन बंच बनाम भारत संघ वाद (2014) में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 33(7) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
- अदालत ने पाया कि संविधान के अनुच्छेद 101 में किसी व्यक्ति के एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से नामांकन दाखिल करने या चुनाव लड़ने पर कोई रोक या प्रतिबंध नहीं है।
- अनुच्छेद 101 में कहा गया है कि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए संसद विधि द्वारा उपबंध करेगी।
- अदालत ने कहा कि धारा 33(7) और अनुच्छेद 101 के बीच कुछ भी असंगत नहीं है।
चुनाव आयोग का सुझाव
- चुनाव आयोग ने नेताओं को केवल एक सीट से चुनाव लड़ने से रोकने के लिए धारा 33(7) में संशोधन करने का सुझाव दिया था।
- आयोग ने वैकल्पिक रूप से सुझाव दिया कि यदि प्रावधान में संशोधन नहीं किया जाता है, तो दो सीटों से चुनाव लड़ने और जीतने वाले व्यक्ति के लिए अनिवार्य रूप से एक स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए कि उसके द्वारा सीट खाली करने के बाद होने वाले उप-चुनाव की लागत को उसके द्वारा ही वहन किया जायेगा।
- एक अन्य विचार जिसे एक संभावित समाधान के रूप में माना जाता है, कि यदि कोई उम्मीदवार दोनों सीटों से जीत जाता है, तो उपचुनाव कराने की जगह पर, दूसरे सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाना चाहिए।