(प्रारंभिक परीक्षा : समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2; सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
सन्दर्भ
हाल ही में,केंद्र सरकार ने अपने अधीन आने वाले स्कूलों में कक्षा 5 और 8 के लिए 'नो-डिटेंशन नीति' को समाप्त कर दिया है।
नो-डिटेंशन नीति के बारे में
- प्रारंभ: यह नीति शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत वर्ष 2009 में शुरू की गई थी।
- RTE अधिनियम का उद्देश्य भारत में प्रत्येक बच्चे को कक्षा 8 तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है।
- प्रमुख प्रावधान: इस नीति के अनुसार, कक्षा 1 सेकक्षा 8 तक के किसी भी छात्र को प्राथमिक विद्यालय पूरा करने तक अनुत्तीर्ण (Fail) नहीं किया जा सकता और न ही स्कूल से निकाला जा सकता है।
- बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 16 में यह प्रावधान है कि 'किसी भी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा 1-8) पूरी होने तक किसी भी कक्षा में नहीं रोका जाएगा या स्कूल से नहीं निकाला जाएगा।
नो-डिटेंशन नीति लाने का कारण
- इस नीति का प्राथमिक लक्ष्य विद्यार्थियों को खराब शैक्षणिक प्रदर्शन के कारण पढ़ाई में पीछे रहने से रोकना था, क्योंकि इसे स्कूल छोड़ने ( School Dropout) में योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक माना जाता था।
- स्वचालित पदोन्नति की अनुमति देकर, इस नीति का उद्देश्य विविध पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए समान अवसर सृजित करना और उन्हें शैक्षणिक चुनौतियों के बावजूद प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने में सक्षम बनाना था।
- विशेषज्ञों का तर्क है कि यह नीति स्कूल छोड़ने की घटनाओं को रोकने तथा स्कूल में बने रहने की दर में सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण है।
नीति के विरोध में तर्क
- कई राज्यों ने इस नीति का विरोध किया, उनका तर्क था कि इससे छात्र बोर्ड परीक्षाओं के लिए ठीक से तैयार नहीं होते और कक्षा 10 में उनकी असफलता दर बढ़ जाती है।
- वर्ष 2015 में, केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक के दौरान, 28 में से 23 राज्यों ने इस नीति को खत्म करने की सिफारिश की थी।
- इसके परिणामस्वरूप, संसद ने मार्च 2019 में RTE अधिनियम में संशोधन किया, जिससे राज्यों को कक्षा 5 और 8 में नियमित परीक्षा आयोजित करने नो डिटेंशन पॉलिसी को आधिकारिक रूप से समाप्त करने की अनुमति मिल गई।
- स्कूली शिक्षा राज्य सूची का विषय होने के कारण राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की इस नीति के अनुरूप भी अपने राज्यों में इस नीति पर निर्णय लेना था।
राज्यों द्वारा इस नीति की समाप्ति
- 16 राज्यों ने नो-डिटेंशन पॉलिसी को समाप्त कर दिया है।
- इनमें असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
- इसके अलावा, दो केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली और दमन एवं दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली, ने भी इस नीति को समाप्त कर दिया है।
कौन से राज्यों में अभी भी यह नीति लागू है
- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मिजोरम, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, लद्दाख और लक्षद्वीप में कक्षा 1 से 8 तक नो-डिटेंशन नीति अभी भी लागू है।
- तमिलनाडु सरकार ने भीयह घोषणा की है कि राज्य में कक्षा 8 तक 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' का पालन जारी रहेगा।
- हरियाणा और पुडुचेरी ने अभी तक नीति के कार्यान्वयन के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया है।
नो-डिटेंशन नीति में हालिया परिवर्तन
- केंद्र सरकार द्वारा जारी हालिया अधिसूचना के अनुसार,केंद्र सरकार ने कक्षा 5 और 8 के विद्यार्थियों के लिए 'नो-डिटेंशन पॉलिसी' को समाप्त कर दिया है।
- अब साल के अंत में होने वाली परीक्षा में फेल होने वाले छात्रों को फेल माना जाएगा।
- अर्थात जो छात्र वर्ष के अंत की परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होंगे, उन्हें अनुत्तीर्ण मान लिया जाएगा और उन्हें दोबारा परीक्षा देनी होगी।
- हालांकि,जो बच्चे पदोन्नति के मानदंडों को पूरा नहीं करेंगे, उन्हें परिणाम घोषित होने के दो महीने के भीतर दोबारा परीक्षा देने का मौका मिलेगा।
- यदि छात्र पदोन्नति के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें दोबारा परीक्षा देने का मौका दिया जाएगा। यदि वे फिर से असफल होते हैं, तो उन्हें कक्षा 5 या कक्षा 8 में ही रखा जाएगा।
- इस अवधि के दौरान, कक्षा-शिक्षक छात्र के साथ और यदि आवश्यक हो तो उनके माता-पिता के साथ मिलकर काम करेंगे तथा सीखने में किसी भी कमी को दूर करने के लिए लक्षित सहायता प्रदान करेंगे।
- केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा वर्ष 2016 में इस नीति को समाप्त करने के सुझाव का एक प्रमुख कारण यह था कि छात्र अब अपनी पढ़ाई को गंभीरता से नहीं ले रहे थे।
- नीति में परिवर्तन को व्यापक रूप से समर्थन मिला है, क्योंकि यह शैक्षणिक रूप से संघर्षरत छात्रों को बुनियादी बातों में महारत हासिल किए बिना स्वचालित रूप से पदोन्नत होने के बजाय सुधार करने और परीक्षा उत्तीर्ण करने का अवसर देता है।
- इन परिवर्तनों के बावजूद, किसी भी बच्चे को तब तक स्कूल से नहीं निकाला जाएगा जब तक वह अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं कर लेता।
नो डिटेंशन नीति समाप्ति के निहितार्थ
- नो डिटेंशन नीति समाप्त होने से कक्षा 5और कक्षा 8 की परीक्षाएं और पुन: परीक्षाएं योग्यता-आधारित प्रारूप का पालन करेंगी, जिसका उद्देश्य याद करने और प्रक्रियात्मक कौशल पर निर्भर रहने के बजाय समग्र विकास को बढ़ावा देना होगा।
- स्कूल द्वारा फेल छात्रों का रिकॉर्ड रखने के साथ ही इन छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
- इस निर्णय से लगभग 3,000 केंद्रीय विद्यालय प्रभावित होंगे, जिनमें केन्द्रीय विद्यालय, जवाहर नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल (रक्षा मंत्रालय के अधीन) और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधीन) शामिल हैं।
- यह निर्णय शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में वर्ष 2019मेंहुए संशोधन के 5 साल बाद आया है, ताकि उपयुक्त सरकार को कक्षा 5 और 8 में छात्रों को रोकने की अनुमति मिल सके।
- वर्ष 2019 में किये गए संशोधन के तुरंत बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की घोषणा की गई थी, लेकिन स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने समग्र दृष्टिकोण अपनाने के लिए नए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे को अपनाने का इंतज़ार करना चुना।
- वर्ष 2023 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचे को अंतिम रूप दिए जाने के साथ ही शिक्षा मंत्रालय ने RTE नियमों में संशोधन किया, जिसके परिणामस्वरूप यह अधिसूचना जारी हुई।