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पैरोल और फर्लो के नियमों मे एकरूपता नहीं  

प्रारंभिक परीक्षा के लिए – पैरोल, फरलो, छूट
मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र:2 - सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय 

पैरोल और फर्लो

  • पैरोल और फर्लो, दोनों सशर्त रिहाई का एक रूप हैं, जिसका अर्थ है कि कैदी को फ़र्लो या पैरोल की अनुमति देने वाले आदेश में निर्धारित शर्तों का पालन करना होता है, जैसे- नियमित अंतराल पर नजदीकी पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना।
  • फर्लो और पैरोल हिरासत से एक अल्पकालिक रिहाई की परिकल्पना करते हैं, दोनों कैदियों के प्रति सुधारात्मक कदम हैं।
  • दोनों प्रावधान कैदी की परिस्थितियों के अधीन हैं, जैसे जेल व्यवहार, अपराधों की गंभीरता, सजा की अवधि और सार्वजनिक हित।
  • फर्लो को कैदियों के अधिकार के रूप में प्रदान किया जाता है, इसका मुख्य उद्देश्य कारावास की एकरसता को तोड़ना और कैदी को बाहरी दुनिया से संपर्क बनाए रखने की अनुमति देना है।
    • यह लंबी कैद की सजा काट रहे दोषियों को दिया जाता है।
  • पैरोल एक "विशिष्ट आवश्यकता" को पूरा करने के लिए प्रदान किया जाता है और अधिकार के रूप में इसका दावा नहीं किया जा सकता है।
    • यह एक कैदी को किसी विशेष कारण जैसे किसी रिश्तेदार की मृत्यु या परिवार के किसी सदस्य की शादी में शामिल होने के लिए दिया जाता है, और यह कैदी के व्यवहार के अधीन होता है।
  • पैरोल आमतौर पर प्रदान कर दिया जाता है, लेकिन जब सजा मामूली अपराधों के लिए दी गई हो और कारावास की अवधि कम हो तो यह जरूरी नहीं होता।
  • पुलिस रिपोर्ट के साथ पैरोल के लिए आवेदन जिला मजिस्ट्रेट को भेजा जाता है, जो राज्य सरकार के परामर्श से या तो अनुरोध को अस्वीकार या स्वीकार करता है।
  • पैरोल और फर्लो दोनों को देने से इनकार किया जा सकता है अगर सक्षम प्राधिकारी की राय है कि कैदी को रिहा करना समाज के हित में नहीं होगा।
  • हरियाणा राज्य बनाम मोहिंदर सिंह (2000) वाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया कि - "जब एक कैदी पैरोल पर होता है तो उसकी रिहाई की अवधि की गणना सजा की कुल अवधि में नहीं होती है, जबकि जब वह फर्लो पर होता है,तो उस अवधि की गणना उसके लिए निधारित की गई सजा की कुल अवधि के लिए की जाती है।"

कस्टडी पैरोल, अत्यधिक आपातकालीन मामलों के लिए कुछ घंटों के लिए पुलिस अनुरक्षण के तहत कैदी की रिहाई है।

छूट, फ़र्लो और पैरोल से कैसे अलग है

  • छूट, फर्लो और पैरोल दोनों से अलग है, क्योंकि यह जेल जीवन से ब्रेक के विपरीत सजा में कमी है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने की अनुमति देती है, इसमें कहा गया है कि "जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए सजा सुनाई गई है, तो उपयुक्त सरकार किसी भी समय, बिना किसी शर्त के या किसी भी शर्त पर, जिसे वह व्यक्ति स्वीकार करता है, उसकी सजा के निष्पादन को निलंबित कर सकती है या पूरी सजा या सजा के किसी हिस्से को माफ कर सकती है।" 
  • यदि राज्य सरकार चाहे तो एक कैदी को समय से पहले रिहा किया जा सकता है, लेकिन इस शक्ति का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को भी संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत, किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा को कम करने का अधिकार दिया गया है। 

पैरोल और फर्लो से संबंधित प्रावधान

  • चूंकि जेल, राज्य सूची के अंतर्गत आता है इसीलिए राज्य सरकार पैरोल और फर्लो से संबंधित विषयों पर कानून बनाती है।
  • जेल अधिनियम की धारा 59 राज्यों को अन्य बातों के साथ-साथ "सज़ा को कम करने" और "अच्छे आचरण के लिए पुरस्कार के लिए" नियम बनाने का अधिकार देती है।
  • हालाँकि, केंद्र सरकार भी इन विषयों पर गैर-बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी कर सकती है।
  • केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जेल प्रशासन के सभी पहलुओं पर 2016 में एक व्यापक मॉडल जेल मैनुअल जारी किया और सभी राज्यों से अनुरोध किया कि वे पैरोल, फर्लो और छूट पर मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करें। 
    • राज्य, इस नियमावली के आधार पर फर्लो, पैरोल और छूट पर अपने नियम बना सकते हैं।
  • इस मैनुअल में प्रावधान है कि निम्नलिखित लोगों को पैरोल या फर्लो नहीं दिया जा सकता है – 
    • कैदी जिनकी समाज में तत्काल उपस्थिति खतरनाक मानी जा सकती है 
    • जेल के अंदर आचरण के खराब रिकॉर्ड वाले कैदी
    • आतंकवादी गतिविधियों और डकैती जैसे जघन्य अपराधों के लिए सजायाफ्ता कैदी
    • वे कैदी, जो जिला मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक की राय में, छुट्टी के बाद जेल में वापस रिपोर्ट नहीं कर सकते हैं।

अलग-अलग राज्यों में पैरोल और फर्लो के लिए नियम 

  • उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा आम तौर पर एक महीने तक 'सजा के निलंबन' (पैरोल या फर्लो या छुट्टी शब्द का उल्लेख किए बिना) प्रदान किया जाता है,  राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से निलंबन की अवधि 12 माह से अधिक भी हो सकती है।
  • महाराष्ट्र सरकार के नियम एक दोषी को 21 या 28 दिनों के लिए फर्लो पर (सजा की अवधि के आधार पर), 14 दिनों के लिए 'आपातकालीन पैरोल' पर और 45 से 60 दिनों के लिए 'नियमित पैरोल' पर रिहा करने की अनुमति देते हैं।
  • हरियाणा सरकार के हाल ही में संशोधित नियमों (अप्रैल 2022) के अनुसार, एक अपराधी को 10 सप्ताह तक (दो भागों में) 'नियमित पैरोल', एक कैलेंडर वर्ष में तीन से चार सप्ताह के लिए 'फर्लो' और 'आपातकालीन पैरोल' की अनुमति दी जा सकती है।
  • 1982 के तमिलनाडु सरकार के नियम, 21 से 40 दिनों की अवधि के लिए 'साधारण अवकाश' की अनुमति देते हैं तथा 15 दिनों तक के आपातकालीन अवकाश की अनुमति देते है।
    • हालाँकि, असाधारण परिस्थितियों में, सरकार आपातकालीन अवकाश की अवधि बढ़ा सकती है।
  • आंध्र प्रदेश सरकार के नियम दो सप्ताह तक की 'फर्लो' और पैरोल/आपातकालीन अवकाश की अनुमति देते हैं, सरकार विशेष परिस्थितियों में पैरोल/आपातकालीन अवकाश बढ़ा सकती है।
  • ओडिशा सरकार के नियम चार सप्ताह तक फर्लो, 30 दिन तक 'पैरोल' और 12 दिन तक 'स्पेशल लीव' की अनुमति देते हैं।
  • पश्चिम बंगाल में किसी अपराधी को 'पैरोल' पर अधिकतम एक महीने की अवधि और किसी भी 'आपातकाल' की स्थिति में पांच दिन की अवधि तक रिहा करने का प्रावधान है।
  • केरल में कैदियों को चार चरणों में 60 दिनों की 'साधारण छुट्टी' और एक बार में 15 दिनों तक की 'आपातकालीन छुट्टी' प्रदान की जाती है।

आगे की राह 

  • राज्यों का मार्गदर्शन करने और दुरुपयोग को रोकने के लिए किसी सामान्य कानूनी ढांचे के बिना, मनमानी बढ़ने की संभावना है, जिससे पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली खतरे में पड़ जाएगी। 
  • जेल के राज्य सूची का विषय होने के कारण कम से कम आधे राज्यों को एक साथ आकर केंद्र सरकार से पैरोल और फरलो पर पूरे देश के लिए एक सामान्य कानून बनाने का अनुरोध किये जाने की आवश्यकता है।
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