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अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार : संस्थाओं का निर्माण और समृद्धि पर प्रभाव

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)  

संदर्भ 

वर्ष 2024 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार अमेरिकी अर्थशास्त्री डेरॉन ऐसमोग्लू, साइमन जॉनसन एवं जेम्स ए. रॉबिन्सन को प्रदान किया गया। इनको यह पुरस्कार इस बात के अध्ययन के लिए दिया गया है कि संस्थाएं किस प्रकार निर्मित होती हैं और समृद्धि को कैसे प्रभावित करती हैं। इन्होने देशों की सफलता या असफलता के मूल कारणों के बारे में समझ को बढ़ावा दिया है।

सामाजिक संस्थाओं का समृद्धि में अंतर पर प्रभाव 

  • औद्योगिक क्रांति ने पूर्व एवं पश्चिम के बीच जीवन स्तर में ‘अत्यधिक विचलन’ को जन्म दिया है। धनी बनाम निर्धन देशों में जीवन स्तर में अत्यधिक अंतर को समझाने के लिए विभिन्न सिद्धांत प्रस्तावित किए गए हैं।
  • कुछ लोगों ने पश्चिमी उपनिवेशवाद को पश्चिमी दुनिया की समृद्धि का मुख्य कारण माना है। हालाँकि, कुछ विद्वानों का तर्क है कि प्राकृतिक संसाधनों में असमानताएँ विभिन्न देशों में आर्थिक समृद्धि में अंतर का कारण हैं।
  • एक तर्क यह भी है कि बुद्धिमत्ता और यहाँ तक कि ऐतिहासिक घटनाएँ भी किसी राष्ट्र की समृद्धि की व्याख्या कर सकती हैं।

सामाजिक संस्थाओं एवं समृद्धि के मध्य अंतर्संबंध का विकास  

  • नोबेल समिति के अनुसार, आज दुनिया के सबसे धनी 20% देश औसत आय के मामले में सबसे निर्धन 20% देशों से 30 गुना अधिक धनवान हैं।  
  • इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं का तर्क है कि आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थानों की गुणवत्ता में अंतर ही देशों के बीच आर्थिक समृद्धि में अंतर की व्याख्या सबसे अच्छी तरह से करता है।
  • इस सिद्धांत को सबसे प्रसिद्ध रूप से वर्ष 2012 की पुस्तक ‘व्हाई नेशंस फेल: द ओरिजिन्स ऑफ पावर, प्रॉस्पेरिटी एंड पॉवर्टी’ में विस्तार से बताया गया है जिसे डेरॉन ऐसमोग्लू एवं जेम्स ए. रॉबिन्सन ने लिखा है। 
    • वर्ष 2004 के एक पेपर ‘इंस्टिट्यूशंस ऐज ए फंडामेंटल कॉज ऑफ लॉन्ग-रन ग्रोथ’ में भी इसकी व्याख्या की गई है, जिसे इस वर्ष के तीनों नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने मिलकर लिखा है।
  • अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्राय: ऐसे विषयों पर अभूतपूर्व अकादमिक शोध के लिए दिया जाता है जो वास्तविक दुनिया में महत्वपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले दो वर्षों में नोबेल पुरस्कार उन विद्वानों को दिया गया है जिन्होंने लैंगिक वेतन अंतराल एवं बैंकिंग प्रणाली की कमज़ोरी जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर कार्य किया है। 

संस्थानों की गुणवत्ता का महत्व

  • नोबेल पुरस्कार विजेता एवं न्यू इंस्टीट्यूशनल इकोनॉमिक्स के अग्रणी डगलस नॉर्थ के अनुसार, संस्थाएँ ‘खेल के नियम’ हैं जो व्यक्तियों को एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते समय मिलने वाले प्रोत्साहनों को परिभाषित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, जो संस्थाएँ राज्य को ईमानदार नागरिकों की संपत्ति जब्त करने से रोकती हैं, वे आम नागरिकों को ज़ब्ती के डर के बिना कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी और बदले में राष्ट्र को आर्थिक समृद्धि की ओर ले जाएँगी। 
    • दूसरी ओर, जो संस्थाएँ ज़ब्ती को वैध बनाती हैं, वे व्यक्तिगत प्रोत्साहनों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेंगी और आर्थिक गतिहीनता का कारण बनेंगी।
  • ऐसमोग्लू एवं जॉनसन ने अपनी पुस्तक में तर्क दिया कि संस्थाएँ या तो ‘समावेशी’ हो सकती हैं या ‘शोषक’ हो सकती हैं। 
    • समावेशी संस्थाओं की विशेषता निजी संपत्ति की सुरक्षा का अधिकार एवं लोकतंत्र है जबकि शोषक संस्थाओं की विशेषता निजी संपत्ति की असुरक्षा व राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी है। 
  • इन्होंने अनुभवजन्य रूप से यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया कि समावेशी संस्थाएँ दीर्घकालिक आर्थिक विकास एवं उच्च जीवन स्तर की ओर ले जाती हैं जबकि शोषक संस्थाएँ आर्थिक गिरावट व गरीबी की ओर ले जाती हैं।
  • इसके लिए इन्होंने विभिन्न उपनिवेशों में उपनिवेशवादियों द्वारा स्थापित की गई संस्थाओं के प्रकारों और इन उपनिवेशों के दीर्घकालिक आर्थिक भाग्य पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया। 
  • जब कोई औपनिवेशिक शक्ति विभिन्न कारणों (जैसे- भूगोल के कारण उच्च मृत्यु दर) के कारण किसी निश्चित देश में बसना नहीं चाहती थी, तो उसने ऐसी संस्थाएँ स्थापित कीं जो प्रकृति में शोषक थीं और दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए हानिकारक थीं। 
  • भारत में ऐसा हो सकता है जहाँ अंग्रेजों ने ऐसी संस्थाएँ स्थापित कीं जो अधिकतर दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के बजाए अल्पावधि में अधिकतम संसाधनों को लूटने के लिए बनाई गई थीं। 
    • हालांकि, जिन देशों में उपनिवेशवादी लंबे समय तक बसना चाहते थे, उन्होंने समावेशी संस्थाएँ स्थापित कीं जो अल्पकालिक लूट के बजाए निवेश एवं दीर्घकालिक आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती थीं। 
  • अमेरिका में ऐसा हो सकता है जहाँ अंग्रेजों ने समावेशी संस्थाएँ स्थापित कीं जो दीर्घकालिक आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देती थीं।
  • यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संस्थाओं में संस्कृति जैसे कारक भी शामिल हो सकते हैं जो राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाओं द्वारा व्यक्त किए गए अधिक स्पष्ट ‘खेल के नियमों’ को प्रभावित करते हैं।

विकास के लिए महत्वपूर्ण होने के बावजूद समावेशी संस्थाओं की कमी का कारण  

  • नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ‘समावेशी संस्थाओं’ को दुनिया के अधिक देशों द्वारा क्यों नहीं अपनाया गया है।
  • वे इसका कारण अपने-अपने देशों में शासकों के सामने आने वाले विभिन्न विकल्पों को मानते हैं। जब किसी देश के शासक शोषणकारी संस्थाओं के माध्यम से अपने निजी लाभ के लिए पर्याप्त संसाधन सुरक्षित रूप से निकालने में सक्षम होते हैं, तो उनके पास राजनीतिक एवं आर्थिक सुधार (या समावेशी संस्था) के लिए कोई कारण नहीं होता है, जिससे लंबे समय तक व्यापक आबादी को लाभ पहुँच सके। 
  • ऐसे में शोषणकारी संस्थाएँ वास्तव में दीर्घकाल तक बनी रह सकती हैं, जब तक कि जनता यथास्थिति के विरुद्ध विद्रोह न करे। हालाँकि, अगर शोषणकारी संस्थाओं के विरुद्ध जन विद्रोह का वास्तविक खतरा है, तो कम-से-कम कुछ शासक लोकप्रिय माँग को मान सकते हैं और अनिच्छा से अधिक समावेशी संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं जो आर्थिक विकास में सहायता करती हैं।
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